विद्वान कैयट का विवाह तो हो गया था पर पति पत्नी ने मिलकर एक समझौता किया था कि पत्नी सच्चे अर्थों में उनकी सहयोगिनी रहेगी। उनके साहित्य सृजन कार्य में गृहस्थ का जंजाल बढ़ाकर बाधक ना बनेगी।
कैयट सृजन कार्य में निरत रहते। पत्नी आश्रम के समीप से मूँज काट कर रस्सी बंटती और उसे बाजार में बेच कर भोजन वस्त्र का सामान खरीद लाती।
इस प्रकार बीस वर्ष हो गये। पति के बाल सफेद हो चले। पुस्तक पूरी हुई तो कैयट ने ध्यानपूर्वक पत्नी का चेहरा देखा। प्रथम बार ही ऐसा अवसर आया जब दोनों ने एक दूसरे को पति पत्नी की आँखों में देखा हो। अब तक वे दोनों मित्र-मात्र बनकर रह रहे थे।
कैयट का मन पत्नी की गृहस्थ संबंधी इच्छा जाँचने का हुआ। उत्तर में भामती ने कहा अब तक आपने लिखा है। अब आप इस साहित्य को अन्य विद्वानों तक पहुँचाने और छात्रों को पढ़ाने में लगायें। लेखन और अध्यापन दोनों कार्य मिलकर समग्र बन जायेंगे।
कैयट ने आश्रम बना लिया गुरुकुल चलाया। विद्वानों और छात्रों के लिए भामती सारी व्यवस्था जुटाती। कैयट अध्यापन कार्य में लगे रहते। दोनों ने ब्रह्मज्ञानी और ब्रह्मवादिनी का आदर्श जीवन जिया।