ठन-ठन पाल (Kahani)

May 1991

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नई वधू विवाह होकर आई। उसने अपने पति का नाम पूछा, बताया गया -”ठन-ठन पाल”। यह नाम उसे बुरा लगा ‘ठन-ठन पाल’ तो दरिद्र को कहते हैं। दरिद्र की पत्नि बन कर मैं क्यों रहूँ।

उनने साथ रहने से इन्कार कर दिया और पिता के घर लौट पड़ी। रास्ता लम्बा था। एक खेत की मेंड़ पर मजदूर महिला घास काट रही थी। वधू ने उसका नाम पूछा उसने बताया ‘लक्ष्मी’। नाम और स्तर की तुलना करते हुए उसे आश्चर्य तो बहुत हुआ। पर चलना आगे ही था सो चलती रही।

आगे चलकर एक फटे कपड़े वाला किसान हल जोतते पाया। उससे भी वधू ने नाम पूछा। धनपाल और स्थिति का तालमेल यहाँ भी कहाँ खा रहा है।

यात्रा आगे चलती गई। कुछ कोस जाने पर लोग एक मुर्दे को श्मशान घाट ले जा रहे थे। साथ वालों से वधू ने पूछा जो मर गये हैं उनका नाम क्या था? लोगों ने बताया इनका नाम अमरसिंह था।

वधू एक घनी छाया वाले पेड़ के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगी। साथ ही यही विचार करने लगी कि नाम के साथ ये आवश्यक नहीं की गुण भी वैसा हो। उसमें जमीन आसमान तक का अन्तर भी हो सकता है।

पेड़ की छाया में ही उसने एक दोहा गाया और वापस ससुराल की ओर लौट पड़ी। अपने घर जा कर रही। नाम और स्तर की भिन्नता वाला वह स्व निर्मित दोहा अकसर बहुतों को सुनाया करती थी।

घास खोदे लक्ष्मी, हल जोते धनपाल। अमर सिंह काठी कसे, सबसे भले मेरे ठन-ठन पाल।

ठन-ठन पाल वस्तुतः इतने गरीब नहीं थे जितना उनके नाम से प्रतीत होता था।


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