अमर क्रान्तिकारी सरदार भगत सिंह को कुछ दिनों एक जगह ठहर कर काम करना था। इसके लिए उन्हें काँग्रेस दफ्तर का काम करने के लिए 150 / वेतन वाली जगह मिल गई।
पर उनने मात्र 30/- मासिक ही वेतन लिया। इतने में ही वे मितव्ययिता पूर्वक अपना खर्चा चला लेते थे, पर सार्वजनिक संस्था पर अतिरिक्त भार डालने की बात कैसे की जाय?