दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो। रात से मत तिलमिलाओ, प्रात की हंसती किरण दो॥
भावनाओं से भरा मन, साधनाओं से हरा मन,
हारते पग को समय की चेतना के नव चरण दो। दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो॥
तप-प्रभा से फट रही पौ, युग-निशा में जल रही लौ,
तुम सृजन के देवता को खिलखिलाता आचरण दो। दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो॥
यदि पिघल कर प्राण बहने, चल पड़े हों लहर बनने,
हों जगी बेचैनियां तो दर्द-दुख को सन्तरण दो। दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो॥
व्यष्टि में जो बिन्दु बन्दी, कर सके जो सिन्धु बन्दी,
उस समष्टि उपासना को, भक्ति के गीले नयन दो। दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो॥
व्यक्ति में विस्तार कितना, बूँद, पारावार जितना,
प्यास कुंभज-सी जगाकर, तुम तृषा की तृप्ति कण दो। दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो॥
प्यास को वरदान कर दे, तृप्ति को जो दान कर दे,
त्यागमय उस चेतना को भावनाओं के नमन दो। दो न आँसू की दुहाई, साधनाओं के सुमन दो॥
*समाप्त*