एक छोटा-सा कुत्ता अपने पूरे वेग से गाड़ी के साथ दौड़ा जा रहा था। वह जी तोड़ दौड़ रहा था। हिजहाइनेस आगाखाँ का घोड़ा भी डर्नी की दौड़ में इससे तेज और क्या दौड़ता रहा होगा?
तीन पल में वह पिछड़ गया। और अब वह धीरे-धीरे लौट कर फिर अपने मालिक के खाट के पास जा बैठा। रोज ही गाड़ी अपने पर उसके साथ दौड़ता है रोज हारता है, पर शर्म से डूब नहीं मरता, निर्लज्ज कहीं का?
रोज-रोज की पराजय से जिसकी आँखों में समाया विजय का स्वप्न और पैरों में उमड़ा अभियान का संकल्प परास्त नहीं होता। वह कुत्ता हो या किसी राष्ट्र का सिपाही क्या एक प्रेरक चरित्र का संरक्षक नहीं है?
- बाबू गुलाब राय