समझते हैं आप अपने मन की भाषा?

September 1981

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मनुष्य के सृष्टि के अगणित रहस्यों को जान लेने और अनसुलझी गुत्थियों की सुलझा लेने का दावा करता है। यह गलत भी नहीं है कि उसने विज्ञान की सहायता से अब तक सृष्टि के कई अज्ञात रहस्यों का पता लगा लिया है और अपने ज्ञान भण्डार को पहले की अपेक्षा काफी समृद्ध बना लिया है। अब से सौ साल पहले तक पांच हजार वर्षों में जितना ज्ञान विकसित हुआ, उतना ही ज्ञान इन सौ वर्षों में विकसित हुआ। उसे अधिक भी कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। इस समृद्ध का ज्ञान भण्डार के आधार पर उसने अपने लिए सुविधा साधनों का भण्डार कर लिया है। जितना जो कुछ मनुष्य ने अर्जित और उपलब्ध किया है, उस आधार पर उसे सृष्टि का सर्वाधिक समृद्ध और सबसे शक्तिशाली प्राणी कहा जा सकता है। फिर भी जीवन जितना जटिल है, उसे पूरी तरह जान लेने का दावा नहीं किया जा सकता।

स्थूल के सम्बन्ध में तो मनुष्य ने बहुत कुछ जाना, ज्ञान की कई परतें खोली पर यह एक विचित्र तथ्य है कि वह अपने आपके सम्बन्ध में अभी अनभिज्ञ, लगभग अज्ञ ही है। स्थूल सृष्टि के रहस्य सुलझाने में तो फिर भी सफलता मिल रही है, किन्तु सूक्ष्म को समझने का जितना प्रयास किया जाता है। पहेली उतनी ही उलझती जाती है। उदाहरण के लिए मनुष्य के अपने मन को ही लिया जाए। मन के सम्बन्ध में कुछ विस्तार से जानने की बात तो दूर, मनुष्य अभी मन की भाषा ही पढ़ने और समझने में असमर्थ है। दूसरे प्राणी क्या करते हैं? किस तरह संवाद प्रेषित करते हैं? वे अपने मनोभावों को कैसे व्यक्त करते हैं? इस सम्बन्ध में बहुत-सी बातें जान ली गई हैं। परन्तु मनुष्य का अपना मन किस भाषा में सोचता है? क्या कहता है? क्यों कहता है? आदि प्रश्न अनुत्तरित ही हैं।

अभी तक मन के एक छोटे से हिस्से, चेतन मन के सम्बन्ध में ही स्वल्प-सी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। उसका बहुत बड़ा हिस्सा, अचेतन मन तो अभी भी मनुष्य की समझ से परे है। उसके विषय में अनुमान और अटकलबाजी से ही काम चलाया जाता है। अचेतन मन के सम्बन्ध में कहा जाता है कि वह स्वप्नों की भाषा बोलता है और स्वप्न क्या है? इस सम्बन्ध में दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अर्थात् दूसरों के सम्बन्ध में बहुत कुछ जान जाने, पता लगा लेने के बावजूद भी मनुष्य अपने अस्तित्व के एक हिस्से की भाषा को जानने पढ़ने में असमर्थ है। है न प्रकृति का मजाक! या मनुष्य की असमर्थता!

इस स्थिति को चाहे जो कहें, पर अचेतन की भाषा या स्वप्नों का संसार जितना जटिल और जितना उलझा हुआ है, उतना ही चमत्कारी और विमुग्ध कर देने वाला है। सम्बन्ध में मनःशास्त्री केवल यही कह पाए हैं कि जिन्दगी की समस्याएँ सुलझाने के लिए जिस प्रकार हमें संसार क्षेत्र में विचरण करना पड़ना है उसी प्रकार अंतर्जगत की गुत्थियों का हल निकालने के लिए स्वप्नों की भूल-भुलैया में प्रवेश करके उसे जानना और समझना पड़ेगा। प्राचीन काल में इस विद्या का बहुत विकास हुआ था और ऐसे अनेक मनीषी मौजूद थे जो स्वप्नों को ध्यानपूर्वक सुनने के बाद उसने सन्निहित तथ्यों का विश्लेषण कर देते थे। उन स्वप्नों को त्रिकाल दर्शन की विद्या कहा जाता था अर्थात् स्वप्नों का अध्ययन करने की ऐसी पद्धति उन दिनों विकसित हुई थी, जिसके आधार पर स्वप्नों के माध्यम से भूत काल की वे स्मृतियाँ जो भुला दी गई थीं, वर्तमान की परिस्थितियाँ तथा भावी सम्भावनाओं के बारे में जान पाना संभव था। लेकिन यह विद्या भी स्वप्नों को पूरी तरह समझने या उनका विश्लेषण कर पाने में समर्थ नहीं थी। ऐसी कई उदाहरण हैं जिनमें अचेतन ने अपनी भाषा में लोगों को ऐसे-ऐसे वरदान दिए हैं कि उन्होंने मनुष्य जाति के इतिहास को नये मोड़ दिए।

प्राचीन काल के उदाहरणों को छोड़ भी दिया जाए तो भी इसी युग में ऐसे अनेकों प्रमाण हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य का अचेतन मन कितना समर्थ है? काश! उसकी भाषा को पढ़ा और समझा जा सके तो बहुत सम्भव है कि प्रत्येक मनुष्य अपनी प्रगति यात्रा को पूरा करता हुआ सत्य तक पहुँच सके। स्वप्नों के इसी महत्व को बताते हुए प्रसिद्धि वैज्ञानिक, फ्रेडरिक कुकले ने कहा था कि यदि हम स्वप्नों की भाषा समझना सीख लें, तो सृष्टि का कोई भी रहस्य, रहस्य नहीं रह जाएगा और हम सत्य को प्राप्त कर सकेंगे।

यह जानकर आश्चर्य होता है कि आधुनिक युग में जिन आविष्कारों और वैज्ञानिक सिद्धान्तों की धूम मची हुई है, उनमें से कई उपलब्धियों के सूत्र वैज्ञानिक ने अचेतन की इसी भाषा को संयोगवश पढ़ लेने के बाद ही पकड़े थे। जिस युग में हम रह रहे हैं उसे परमाणु युग कहा जाता है। युद्ध से लेकर शान्तिपूर्ण उद्देश्यों तक के लिए परमाणु शक्ति का उपयोग हो रहा है। इस शक्ति के उपयोग की संभावना का पता प्रसिद्ध वैज्ञानिक नील्स बोहर ने लगाया था। इस शताब्दी के आरंभ में जब वह विज्ञान के विद्यार्थी थे, तब परमाणु के अस्तित्व का पता तो लगाया जा चुका था किन्तु किसी को यह मालूम नहीं था कि उसकी संरचना किस प्रकार की है। वैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझाने के लिए तरह-तरह के सैकड़ों प्रयोग कर रहे थे, किन्तु किसी भी निष्कर्ष पर पहुँच पाना संभव नहीं हो रहा था। नील्स बोहर भी उसके लिए प्रयत्नरत थे।

एक रात उन्होंने स्वप्न देखा कि वे सूरज के बीचों बीच उबलती हुई गैसों के गर्भ में खड़े हैं, तथा सूरत के चारों ओर अन्तरिक्ष में अनेक ग्रह चक्कर काट रहे हैं। इन ग्रहों को उन्होंने स्वप्न में ही एक पतले तन्तु से जुड़े हुए देखा। जब कोई ग्रह नील्स के पास से गुजरता था लगता था वे कुछ कह जा रहे हैं। क्या कह रहे हैं? यह स्पष्ट समझ नहीं आ रहा था। देखते ही देखते जलती हुई गैस शान्त हो गई, सूरज ने ठोस रूप ग्रहण कर लिया और इसके बाद सब कुछ टूट कर बिखर गया। सपना भी टूटा किन्तु सपने में जो कुछ देखा था वह मन मस्तिष्क पर इस प्रकार छाया रहा कि जागने के बाद भी एक-एक दृश्य याद आता रहा। अचानक नील्स के मन में न जाने कैसे यह विचार उठा कि सपने में जो कुछ देखा है, वह कहीं परमाणु रचना का भेद तो नहीं है। यह सोचते ही वह गणना में जुट गए और अनुसंधान के आधार पर पाया कि सचमुच परमाणु की संरचना उसी प्रकार की है। स्मरणीय है नील्स द्वारा पता लगाये गए परमाणु के रचना स्वरूप ने ही परमाणु भौतिकी की नींव डाली है, जिस आधार पर आज परमाणु ऊर्जा के विकास और उत्पादन की लम्बी-चौड़ी योजनाएं बनाई जाती हैं।

आज घर-घर में सिलाई मशीन का प्रचलन है। इस मशीन को बनाने के लिए एलियास को घोर मानसिक यातनाएं सहनी पड़ी थी। हुआ यह था कि मशीन तो बना ली गई थी- पर यह नहीं सूझ रहा था की सुई में धागा कहाँ डाला जाए कि वह नीचे का धागा अपने आप खींच सके। हाथ की सुई की तरह आखिरी छोर से लेकर होते, सुई के बीच में छेद बनाकर सब तरह से प्रयोग कर डाले किन्तु सफलता नहीं ही मिलती दिखाई दी। अन्ततः वह निराश हो गए। अपना प्रयोग विफल होने की घोषणा करने के बाद वे उस दिन निराश और थके मन से बिस्तर पर लेटे। पता नहीं कब नींद आ गई और नींद में एक सपना देखा। सपना इस प्रकार था कि जंगली जाति के कुछ लोग ‘हो’ को पकड़ कर अपने राजा के पास गए तथा राजा को बताया कि इस व्यक्ति ने सिलाई मशीन बनाई है, किन्तु उसे चालू नहीं कर पाया? और फिर बिना स्पष्टीकरण का मौका दिए यह शाही फरमान निकाल दिया कि यदि 24 घण्टे के भीतर सिलाई की मशीन चालू नहीं की गई तो उसे भाले से मार दिया जाए। एलियास ने देखा कि उसे चारों ओर से हाथ में भाला लिये सैनिकों ने घेर रखा है, बीच में आग जल रही है और उस आग की रोशनी में भालों की नोंक चमक रही हैं। हो का ध्यान भालों की नोकों पर केन्द्रित हो गया, उनमें छेद हो रहे थे।

अचानक हो की आंखें खुल गईं और वह बिस्तर से उठे तथा सुई निकाल कर उसका नीचे वाला हिस्सा लोहे से काटा तथा नोक वाले हिस्से में छेद किया। इस सुई को उन्होंने मशीन पर चढ़ा दिया और मशीन चल निकली। पिछले दिन विफल घोषित कर दिया गया आविष्कार एक सपना देखकर ही सफल हो गया।

आजकल देहातों और खेतों में जंगली जानवरों से रक्षा के लिए जो छर्रेदार बन्दूकें काम में लाई जाती हैं, कभी इनका युद्ध के लिए उपयोग होता था। तब उनमें इस्तेमाल होने वाले छर्रे बनाने के लिए सीसे के तार खींचने पड़ते थे या उसकी चादर बनाई जाती थी और बाद में उसे काट कर छर्रे तैयार किये जाते थे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक जेम्सवाट को छर्रे बनाने की यह पद्धति बहुत जटिल लगी। वे इसी उधेड़-बुन में लग गए कि ऐसी कोई रीति नहीं ढूंढ़ी जा सकती, जिससे छर्रे सुगमता पूर्वक बनाये जा सकें। इस रीति की खोज कैसे हुई इस सम्बन्ध में वाट ने लिखा है कि एक रात मैंने सपना देखा कि मैं आँधी में उड़ता चला जा रहा हूं। उतने में वर्षा शुरू हो गई मगर वर्षा में बजाय पानी की बूंदें गिरने के मेरे सिर पर शीशे के छर्रे गिर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि मैं बनाना चाहता था। मेरी नींद खुल गई, मैंने इस सपने पर कोई ध्यान नहीं दिया, सोचा यह मेरे मन की इच्छाओं का एक प्रतिबिम्ब है। मगर वही सपना मुझे अगली रात से लेकर लगातार चार रात तक बार-बार दिखाई देता रहा बार-बार एक ही सपना देखने के कारण मैं चौंका और मैंने अपने आपसे पूछा यह क्या है? मुझे लगा कि इसमें शीशे को पिघला कर उसकी बूंदें हवा के माध्यम से पानी में टपकाने का संकेत है।

उन दिनों वैज्ञानिकों के पास आज जैसी सुसज्जित प्रयोगशालाएं तो थी नहीं। जेम्सवाट एक ऐसे जलाशय की खोल में लग गए जो किसी दीवार से सटा हो। एक चर्च की दीवार के पीछे ऐसे जलाशय मिल गया और उन्होंने वहाँ प्रयोग करने की अनुमति प्राप्त कर ली, प्रयोग करने के लिए वह पिघला हुआ शीशा लेकर गिर्जे के बुर्ज पर चढ़े और वहाँ से शीशे की बूंद पानी में टपकाई। पूरा पिघला हुआ शीशा इस प्रकार टपका देने बाद वे नीचे उतरे और देखा तो चकित रह गए कि शीशे के वैसे ही छर्रे तैयार हो गए थे। जैसे उन्होंने सपने में आकाश से बरसते हुए देखे थे।

अब से करीब 350 वर्ष पूर्व हुए प्रसिद्ध फ्राँसीसी दार्शनिक रेने देकार्ते ने अपना जीवन सेना में नौकरी से आरम्भ किया था। बहुत दिनों तक सैनिक रहने और सैनिक जीवन की कठिनाइयों को सहने से वह इस जिंदगी से तंग गा गये थे। वे किसी तरह दिन काट रहे थे। 10 नवम्बर 1619 की रात को उन्होंने एक विचित्र सपना देखा और उस स्वप्न ने उनके जीवन की दिशाधारा ही नहीं मोड़ दी, उन्हें सैनिक जीवन से अवकाश प्राप्त करने का रास्ता भी सुझा दिया। उस स्वप्न के आधार पर उन्होंने गणित और दर्शन के समन्वय का ऐसा प्रतिपादन किया जिसने यूरोपीय जगत के दार्शनिक चिन्तन की नई दिशा दे डाली।

प्रख्यात गणितज्ञ हेनरी फेहर ने गणित के 69 विद्वानों से उनके जीवन चिन्तन और विश्वासों के बारे में पूछा तो उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि 61 विद्वानों ने कठिनतम प्रश्नों और प्रमेयों का हल स्वप्न में ही किया था। स्वामी रामतीर्थ के सम्बन्ध में तो प्रसिद्ध है कि गणित का कोई कठिन प्रश्न आने पर वे उसे हल करने की भरसक कोशिश करते। फिर भी हल नहीं होता तो वे थक कर सो जाते थे और सोते समय स्वप्न में ही उन्हें अपने प्रश्नों का हल मिल जाता था।

सचमुच मानव मन की सामर्थ्य अपार है किन्तु दुर्भाग्य यह है कि अपना सबसे निकटवर्ती और सबसे विश्वस्त यह अनुचर उपेक्षित ही पड़ा रहता है। न इसे समझने का प्रयास किया जाता है और न ही इसकी बातों पर ध्यान दिया जाता है। काश! मन को मित्र बनाया जा सके और वह क्या कहता है? क्या बताता है? यह जानने के लिए उसकी भाषा को समझा जाने लगा तो जीवन की अनेकानेक गुत्थियाँ सहज ही हल हो जाएं और प्रत्येक मनुष्य विभूतिवान बन जाए। क्योंकि व्यष्टि, मन का सम्बन्ध सर्वसमर्थ सत्ता से उसी प्रकार जुड़ा हुआ है, जितना प्रत्येक प्राणी का सूर्य से। सबके लिए प्रकाश उपलब्ध है और सबके लिए समान सामर्थ्य।


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