अनेक काय कलेवर में मनुष्य रक्त, माँस मज्जा और हड्डियों का समुच्चय मात्र दिखता है। विज्ञान भी अपने अध्ययन एवं विश्लेषण द्वारा इन्हीं की जानकारी देता है। अधिक से अधिक यह कहकर चुप हो जाता है कि शरीर के भीतर कोई चेतना काम कर रही है जो समस्त शारीरिक हलचलों का कारण है। आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार काया तो स्थूल भाग है जिसकी सामर्थ्य सीमित है और सीमित ही प्रयोजन पूरा कर पाती है। शरीर के भीतर ही एक अदृश्य सूक्ष्म शरीर निवास करता है जिसके भीतर एक से बढ़कर एक संभावनाएं भरी पड़ी हैं। सन्निहित सुषुप्त सूक्ष्म शक्ति संस्थानों का जागरण यदि सम्भव हो सके तो मनुष्य असाधारण शक्ति का स्वामी बन सकता है और इन अतीन्द्रिय सामर्थ्यों के जागरण से वे कार्य भी सम्पन्न किए जा सकते हैं जो विज्ञान की दृष्टि में असम्भव प्रतीत होते हैं।
किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों के जीवन में ये क्षमताएँ अनायास प्रकट हो जातीं और ऐसे कारनामे कर गुजरती हैं जिन्हें देखकर विस्मित रह जाना पड़ता है। अन्तःशक्ति के आकस्मिक जागरण का प्रत्यक्ष कारण भले ही समझ में न आए, पर ये उपलब्धियाँ पूर्व जन्मों के संचित साधना पुरुषार्थ का ही प्रतिफल होती हैं। जिन्हें करतलगत कर असम्भव काम भी पूरे किए जा सकते हैं।
प्रसिद्ध विद्वान ‘फ्रैंकिस किंग’ ने एक पुस्तक लिखी है- ‘मिस्टीरियस नॉलेज’ इस पुस्तक में उन्होंने एक ऐसे विलक्षण शक्ति सम्पन्न व्यक्ति का उल्लेख किया है जो बिना किसी वैज्ञानिक उपकरणों के शल्य चिकित्सा करता तथा कठिन से कठिन रोगों से मुक्ति दिला देता था। ब्राजील के एक छोटे से गाँव में जन्मे “जोस एरीगो” नामक इस व्यक्ति को अपनी विलक्षण सामर्थ्य के कारण भारी ख्याति मिली। शल्य-चिकित्सा में अपनी अतीन्द्रिय शक्ति का उपयोग करना भी उसने विचित्र ढंग से आरम्भ किया।
रिश्ते में लगने वाली एक बूढ़ी औरत पेट के ट्यूमर के कारण मरण शैया पर पड़ी थी। मिलने गये व्यक्तियों में से एक ‘एरीगो’ भी थे। स्नेही सम्बन्धी सभी उस औरत को घेर कर खड़े थे। इतने में एरीगो को जाने क्या सूझी वह दौड़कर रसोई घर में गया और एक छोटा-सा जंग लगा चाकू उठा लाया और कमरे में उपस्थित सभी व्यक्तियों को यह कहते हुए कि वह मरीज के उपचार के लिए एक विशेष प्रयोग करना चाहता है, सबसे बाहर निकल जाने के लिए कहा। एरीगो तथा घर के एक अभिभावक को छोड़कर सभी बाहर निकल आए। कमरे में मौजूद दूसरा व्यक्ति उसे रोके इसके पूर्व ही उसने छोटे चाकू से वृद्धा का पेट कुछ ही सेकेंड में चीर डाला। पर आश्चर्य कि मरीज को जरा भी तकलीफ नहीं हुई। पेट के भीतर मौजूद नारंगी के आकार के ट्यूमर को उसने काटकर बाहर निकाल दिया और उसके बाद दोनों हाथों से कटाव को आपस में जोड़कर दबा दिया। पूरे इस विचित्र आपरेशन में कुछ ही मिनट लगे होंगे। सबसे रहस्यमय बात यह थी कि पेट के ऊपर आपरेशन का कोई निशान भी नहीं था। और न तो उस महिला को किसी प्रकार की पीड़ा हुई और न ही रक्त स्राव। ट्यूमर के निकलते ही महीनों से मरणान्तक पीड़ा से छुटकारा मिल गया।
एक दिन एक राजनीतिक सभा में भाषण देने के लिए एरीगो के चिर-परिचित मित्र का आना हुआ। सभा की समाप्ति के बाद दोनों मित्र एक होटल में मिले। बातचीत के सिलसिले में मित्र ने बताया कि अपने फेफड़े में मौजूद ट्यूमर की मर्मान्तक पीड़ा से वह किसी प्रकार जिन्दगी की लाश ढो रहा है। चिकित्सकों ने इतने नाजुक स्थान पर आपरेशन करने से इन्कार कर दिया है क्योंकि उसमें जीवन के लिए खतरा है। वार्ता के उपरान्त दोनों सो गये।
रात्रि के समय राजनीतिक मित्र ने अनुभव किया जैसे किसी का हाथ उसके शरीर के ऊपर रेंग रहा हो। कुछ मिनटों तक यह क्रम जारी रहा। दूसरे दिन प्रातः उन्होंने देखा कि उनके कपड़े फटे हुए थे जैसे किसी ने जान-बूझकर दर्द वाले स्थान के ऊपर चीरा लगाया हो। और दूसरे ही दिन से उस कष्ट से छुटकारा मिल गया जिसके उपचार में मूर्धन्य चिकित्सकों ने भी अपनी असमर्थता व्यक्त की थी।
अब तक एरीगो की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। ब्राजील ही नहीं अमेरिका एवं यूरोप के अन्य देशों से भी अधिक संख्या में रोगी, परीक्षक एवं वैज्ञानिक उसके पास आने लगे। उसकी शल्योपचार की चमत्कारी प्रक्रिया एवं असाधारण सफलता को देखकर वैज्ञानिकों को भी दाँतों तले उँगली दबानी पड़ी। अनेकों प्रयोगों को प्रमाणिकता की कसौटी पर कसने के उपरान्त सभी ने एक स्वर से स्वीकार किया कि एरीगो के भीतर कोई अलौकिक शक्ति है जिसके द्वारा वह उपचार करता है।
‘टाईम’ पत्रिका के संवाददाता डेविड सेण्ट क्लोर उसकी प्रसिद्धि सुनकर वास्तविकता को जानने पहुँचे। उनके सामने ही एरीगो ने एक अन्धे लड़के के आँख का आपरेशन किया। आँख को गोलक के बाहर हाथ से निकाल कर उन्होंने उसकी झिल्ली को थोड़ा इधर-उधर किया और पुनः गोलक के भीतर बैठा दिया। लड़के को किसी तरह का कोई कष्ट नहीं हुआ। इस छोटे से कुछ मिनटों के, बिना किसी पीड़ा के हुए आपरेशन से बच्चे को वरदान के रूप में नेत्र ज्योति मिल गई।
प्रत्यक्ष प्रामाणिकता की जाँच-पड़ताल करने के उपरान्त संवाददाता डेविड सेण्ट क्लोर ने लिखा कि “निस्सन्देह एरीगो के भीतर कोई ऐसी अलौकिक शक्ति है जिसके द्वारा वह इस प्रकार के असम्भव काम करने में सफल होता है। विज्ञान के आधार पर उस रहस्यमय शक्ति का कोई कारण समझ में नहीं आता।
एरीगो का जन्म सन् 1918 में ब्राजील के एक छोटे से गाँव में हुआ। बचपन से ही उसे विलक्षण अनुभूतियाँ होने लगी थीं, कभी उसे रहस्यमय दृश्य दिखायी पड़ते तो कभी विचित्र प्रकार के सन्देश मिलते थे। आरम्भ में तो वह स्वयं भी इनका कारण नहीं जान पाता था, किन्तु अपने माता-पिता से अक्सर अपनी अनुभूतियों की चर्चा करता था। मन का भ्रम कहकर उसके अभिभावक उसकी बातों की उपेक्षा कर देते थे। कुछ वर्षों तक तो इसी प्रकार चलता रहा। एरीगो के असामान्य जीवन की शुरुआत तब आरम्भ हुई, जब उसने अनायास उस वृद्धा की सर्जरी कर डाली।
इस प्रकार की अनेकों दिव्य क्षमताएँ मनुष्य के भीतर विद्यमान हैं जो हर व्यक्ति में सोई पड़ी हैं। साधना पुरुषार्थ द्वारा उनका जागरण सम्भव है। स्थूल काया तो खाने, पीने, सोने, श्रम करने एवं मस्तिष्क सोचने-विचारने लौकिक गुत्थियों को सुलझाने जितना सामान्य प्रयोजन ही पूरे कर पाते हैं। शरीर के भीतर विद्यमान सूक्ष्म एवं कारण शरीर की क्षमताएँ स्थूल शरीर एवं मस्तिष्क की तुलना में कई गुनी अधिक हैं। उसमें एक से बढ़कर एक आश्चर्यजनक सम्भावनाएँ विद्यमान हैं। उनका जागरण यदि सम्भव हो सके तो स्थूल उपचार द्वारा दूसरों को राहत पहुँचाना ही नहीं, अदृश्य की जानकारियाँ भूत एवं भविष्य का ज्ञान जैसी कितनी ही चमत्कारी शक्तियाँ करतलगत की जा सकती हैं। उच्चस्तरीय साधनाओं द्वारा इन शक्तियों को प्राप्त कर सकने का मार्ग हर किसी के लिए खुला पड़ा है।