अरबी के अन्ध दार्शनिक और कवि अवुल आलामाऊरीन् के भोजन में किसी ने भुना हुआ तीतर परोसा। उनका कवि हृदय देर तक विचार मग्न रहा और उन्होंने एक मार्मिक पद्य गाया-
“ऐ तीतर ! तुझे भुनने की सजा इसलिए मिली कि तू तीतर बना, चील नहीं बना। यह संसार सदा से कमजोरों के साथ ऐसा ही बर्ताव करता रहा है।”