अपनों से अपनी बात - शान्तिकुञ्ज में महिला सत्रों की व्यवस्था

January 1977

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शान्तिकुञ्ज की सत्र-शिक्षण व्यवस्था में एक नया कदम यह जोड़ा गया है कि पुरुष शिक्षण के साथ-साथ महिला शिक्षण के सत्र भी उसी अवधि के साथ-साथ चला करेंगे

दस दिवसीय साधना सत्रों के साथ उतने ही समय के महिला सत्र चला करेंगे वानप्रस्थों के एक मास की शिक्षा के साथ साथ भी उतने ही समय का महिला सत्र चलेगा। दोनों की शिक्षण प्रक्रिया अलग-अलग रहेगी। जप, हवन, साधना, एवं गुरुदेव के प्रवचनों में तो दोनों ही वर्ग समान रूप से सम्मिलित रहेंगे किन्तु शोध शिक्षा में पृथकता रहा करेगी।

महिलाओं का कार्य प्रधानतया परिवार है। उन्हें अपने व्यक्तित्व एवं परिवार को इस प्रकार ढालना चाहिए ताकि वे गृह-लक्ष्मी की भूमिका निभा सके और परिवार में स्वर्गीय वातावरण उत्पन्न कर सकें। साथ ही महिला जागृति अभियान में भी प्रत्येक भावनाशील नारी को किसी न किसी रूप में सम्मिलित रहने तथा योगदान करने की स्थिति में रहना चाहिए। यह दोनों कार्य एक साथ बड़ी सरलता के साथ सम्पन्न होते रह सकते हैं। यह सब किस प्रकार सम्भव है? इस संदर्भ में क्या जानना और क्या करना आवश्यक है। इसी की शिक्षा इन महिला सत्रों में रहा करेगी। समय के अनुपात से दस दिवसीय प्रशिक्षण में स्वल्प और एक मास में अधिक शिक्षा हो सकने की बात तो स्पष्ट है ही।

महिला जागरण अपने युग की सबसे महान् और प्रभावोत्पादक समस्या है। इसके समाधान में प्रबुद्ध नारियों की ही प्रधान भूमिका होगी। अस्तु उन्हें आगे लाना आवश्यक है। महिला पत्रिका, नारी जागरण साहित्य, कन्या सत्र, महिला सम्मेलन आदि उपायों से भी यह कार्य निरन्तर अग्रसर हो रहा है। इस प्रयास में महिला सत्रों की, अनवरत शृंखला की एक नई प्रक्रिया का समावेश किया गया हैं। स्वल्प समय में गृह-लक्ष्मी निर्माण तथा महिला जागरण की उभय-पक्षीय प्रक्रिया का समुचित प्रशिक्षण कठिन है तो भी प्रयत्न यह किया गया है कि इस अल्प समय में हो प्रतिभावान महिलाएँ आवश्यक प्रकाश एवं ऐसा उपयोगी मार्ग दर्शन प्राप्त कर सकें जिसके सहारे उभर-पक्षीय गतिविधियों को अपने जीवन में उद्भव रहने तथा दूसरों को इस दिशा में बढ़ा सकने की आवश्यक क्षमता उन्हें उपलब्ध हो जाय।

महिला जागरण अपने युग की सबसे महान् और प्रभावोत्पादक समस्या है। इसके समाधान में प्रबुद्ध नारियों की ही प्रधान भूमिका होगी। अस्तु उन्हें आगे लाना आवश्यक है। महिला पत्रिका, नारी जागरण साहित्य, कन्या सत्र, महिला सम्मेलन आदि उपायों से भी यह कार्य निरन्तर अग्रसर हो रहा है। इस प्रयास में महिला सत्रों की, अनवरत शृंखला की एक नई प्रक्रिया का समावेश किया गया हैं। स्वल्प समय में गृह-लक्ष्मी निर्माण तथा महिला जागरण की उभय-पक्षीय प्रक्रिया का समुचित प्रशिक्षण कठिन है तो भी प्रयत्न यह किया गया है कि इस अल्प समय में हो प्रतिभावान महिलाएँ आवश्यक प्रकाश एवं ऐसा उपयोगी मार्ग दर्शन प्राप्त कर सकें जिसके सहारे उभर-पक्षीय गतिविधियों को अपने जीवन में उद्भव रहने तथा दूसरों को इस दिशा में बढ़ा सकने की आवश्यक क्षमता उन्हें उपलब्ध हो जाय।

महिला जागरण अभियान को अग्रगामी बनाने के लिए अपने घरों की संपर्क क्षेत्र की ऐसी महिलाएँ शान्तिकुञ्ज के इन सत्र शिविरों में लाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए जिनमें कुछ बन सकने और कर सकने की आवश्यक प्रतिभा पहले से ही मौजूद है। सड़े-गले व्यक्तित्व कूड़े करकट की तरह लाकर यहाँ गन्दगी बढ़ाने के लिए यह आमन्त्रण नहीं है, इस तथ्य को भली-भाँति ध्यान में रखा जाय तभी इस नई महिला सत्र-व्यवस्था की उद्देश्य पूर्ति हो सकेगी।

जिन्हें साधना सत्रों एवं वानप्रस्थ सत्रों में आने की स्वीकृति मिलें वे अपने साथ महिला प्रशिक्षण के लिए ऐसी महिलाओं को लाने की भी चेष्टा करें जो शिक्षण के लिए तथा प्रतिभावान हो। स्मरण रहे अशिक्षित, वयोवृद्ध, झगड़ालू, रोगी तथा बाल-बच्चे लेकर आने वाली महिलाओं को इन सत्रों में प्रवेश न मिल सकेगा। उन्हें लाकर यहाँ की व्यवस्था में गड़बड़ी उत्पन्न नहीं करनी चाहिये

सत्र की स्वीकृति प्राप्त पुरुष जिन महिलाओं को साथ लाना चाहें। उन्हें उपरोक्त शर्तें पूरी करने वाली महिलाओं को साथ लाने की छूट तो दी गई है, पर इसके लिए पहले से ही नाम नोट करा देने का नियम रखा गया है ताकि यहाँ उतने स्थान की पहले से ही व्यवस्था रखी जा सके। सर्वविदित है कि यहाँ ठहरने का स्थान सीमित होने के कारण स्वीकृति पाने पर ही शिक्षार्थी के आने का नियम चलता है।


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