अणोरणीयान् महतो महीयान्

September 1969

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कहते हैं रूस का मास्को शहर संसार का सबसे बड़ा शहर है। दो लाख एकड़ क्षेत्र में से इस भव्य नगर में 65 लाख से भी अधिक नागरिक निवास करते हैं। प्रति वर्ष 1 लाख 20 हजार के हिसाब से नये फ्लैट बनते जा रहे हैं प्रति दिन 350 परिवारों को नये मकान दिये जाते हैं। पूरे शहर में 30 नाट्यकार, 100 सिनेमाघर, 80 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं। इनमें 5 लाख छात्र शिक्षा पाते हैं। राजकीय लेनिनग्राड पुस्तकालय में 2 करोड़ 20 लाख पुस्तकें संगृहीत हैं। इस विशालता में लन्दन जैसे ढाई शहर और पेरिस जैसे 8 शहर समा सकते हैं। मास्को शहर की विशालता का क्या कहना?

हम जिस पृथ्वी में रहते हैं उसमें ऐसे-ऐसे 4 और विशाल शहर हैं। छोटों की तो कोई गणना ही नहीं। अकेले भारतवर्ष में ही 6 हजार के लगभग शहर हैं, दुनियाँ में तो उनकी संख्या लाखों में होगी। इसी प्रकार गाँवों की संख्या और उनमें रहने वाले निवासी भी पृथ्वी में भरे पड़े हैं। 13000 किलोमीटर व्यास वाली पृथ्वी के सूखे भाग की इस व्यापक हलचल और कल्पना में न उतरने वाली विशालता को भला मनुष्य की एक-एक इंच से भी छोटी आंखें कहाँ देखती हैं?

पृथ्वी के जिस भाग का वर्णन किया जा रहा है जो सूखा और आबाद है वह तो कुल द हिस्सा ही है हिस्से में जल भरा हुआ है। समुद्र ही समुद्र है आइये देखें उसकी लम्बाई चौड़ाई कितनी है।

हिन्द महासागर का क्षेत्रफल 2 करोड़ 80 लाख वर्गमील है जब कि भारतवर्ष और पाकिस्तान दोनों का कुल मिला कर 1626148 ही वर्गमील क्षेत्रफल है। अफ्रीका के दक्षिणी सिरे से लेकर आस्ट्रेलिया के बीच तक इसकी लम्बाई 6200 मील है। उसमें 30 लाख खरब टन जलराशि, 80 हजार खरब टन नमक और 20 किलोवाट प्रति घन्टे की विद्युत शक्ति उसमें भरी हुई है। उसमें रहने वाले जीव-जन्तुओं की संख्या तो मनुष्य शरीर में जीन्स की तरह असंख्य है जब कि अभी ऐसे-ऐसे तीन और महासागर हैं। प्रशान्त महासागर जिसकी औसत गहराई 14050 फुट है 63800000 वर्गमील, अटलांटिक महासागर 12880 फीट गहरा 31830000 वर्गमील, आर्कटिक महासागर 4200 फुट गहरा और 5440000 वर्गमील में फैला हुआ है। सूखी धरती और वह जल भाग जो उसके अतिरिक्त है वाली धरती की विशालता का अनुभव मनुष्य जैसा छोटा प्राणी कर भी कैसे सकता है? वह तो मनुष्य की किसी का अभिशाप लग गया है जो वह अपनी शक्ति का इतना अहंकार करता है। अन्यथा पृथ्वी की तुलना में ही वह इतना छोटा है जितना हिमालय पहाड़ की तुलना में चींटी के शरीर का सौवां भाग। 19 करोड़ 70 लाख वर्गमील की पृथ्वी और अधिक से अधिक 9 वर्ग फीट का मनुष्य- यह तो नगण्य स्थिति हुई।

विशालता की इस माप में पृथ्वी का क्षेत्रफल कोई अन्तिम दूरी नहीं है। उससे तो सूर्य ही कई हजार गुना बड़ा है। पृथ्वी का व्यास 13000 किलोमीटर है तो सूर्य 1390000 किलोमीटर है। आप यह न समझें कि यह सूर्य ही विशालता में सरताज हो गया। वह अपना एक सौर परिवार भी रखता है जिसमें 9 ग्रह बुध (मरकरी), शुक्र (वीनस), पृथ्वी (अर्थ), मंगल (मार्स), बृहस्पति (ज्यूपीटर), शनि (सेटर्न), वारुणी (यूरेनस), वरुण (नेपच्यून) और यम (प्लूटो) और 61 उपग्रह हैं। 1500 छोटे-छोटे ग्रह और भी हैं जिन्हें अवान्तर ग्रह या मध्यग्रह (एस्टोरोइड्स) कहते हैं। अन्तरिक्ष कीट और अनेक पुच्छल तारे भी इस सौर मण्डल में आते हैं। इस सौर मण्डल का व्यास 11800000000000 किमी. है। इन्हें मंदाकिनी (स्याइरल) नामक आकाश गंगा से प्रकाश मिलता है।

आइये देखें सूर्य से भी बढ़कर कोई और बड़ा आकार आकाश में है या नहीं? यदि उसकी खोज करना चाहते हैं तो रात में किसी एकान्त में खड़े होकर आकाश की ओर देखें। आपको असंख्य टिमटिमाते हुए तारे दिखाई देंगे। जुगनूँ आँखों से भी छोटे दिखाई पड़ने वाले इन तारों में से कई जैसे इतने बड़े हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। एटारेस तारे का व्यास 600000000 किलोमीटर, पृथ्वी से लगभग 5000 गुना बड़ा। बैगनर तारा समूह में एक और ऐसा ही तारा समूह में आया है जिसका नाम एप्सिलान और व्यास 4000000000 किलोमीटर है। अब तक विशालता की नुमाइश करते-करते हम जिस स्थान पर पहुँचे हैं, वहाँ खड़े होकर देखें और कल्पना करें कि पृथ्वी इतनी छोटी हो गई है कि उसका व्यास 1/10 किलोमीटर अर्थात् बाल की चौड़ाई के बराबर है तो आकाश में चमकने वाला सूर्य चने के दाने के बराबर होगा। एन्टारेस तारा एक साधारण-सी कटोरी जितना बड़ा है। बैगनर तारा समूह का एप्सिलान 6 मंजिलें मकान जितना लगेगा। सौर मण्डल की स्थिति अधिक से अधिक एक फुटबाल के मैदान जैसी दिखाई देगी।

अभी तक जितना संसार ऊपर देख चुके वह भी कोई सम्पूर्ण नहीं है। बैगनर तारा समूह की तरह के 88 और तारा-समूह वैज्ञानिकों की दृष्टि में अब तक आ चुके हैं। अनुमान है कि यह सब

9000000000000000000 किलोमीटर व्यास वाली आकाश गंगा से प्रकाश लेते हैं। इस क्षेत्र को आकाश गंगा विश्व (गैलेक्सी) कहते हैं। इस आकाश गंगा का आकार अस्पतालों में गर्म सिर को ठण्डा करने वाली गोर बरफ की थैली या फूली हुई पूरी जैसा है। और दूरी इतनी बड़ी है कि 186000 मील प्रति सेकेण्ड की गति से कोई जहाज या मनुष्य दौड़े तो एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचने में उसे लगभग 1 करोड़ 69 लाख पचास हजार वर्ष लग जायेंगे। इस आकाश गंगा में सूर्य जैसे ग्रहों की ही संख्या 10 x 10 x 10 x 10 x 10 x 10 x 10 x 10 x 10 x 10 x 10 x 10 (10 खरब) है यदि विश्व की सभी आकाश गंगाओं में पाये जाने वाले तारों का अनुमान इस हिसाब से करे तो यह संख्या 10 घात 24 अर्थात् 10 को 24 बार गुणा करने से जो संख्या आयेगी उतनी होगी, जब कि अनुमान यह जगत का है जिसके सम्बन्ध में अब तक कुछ न कुछ जानकारी मिल चुकी है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जो नहीं जाना जा सकता वह इससे कई अरब गुना बड़ा है। इंग्लैण्ड की जोर्डेल वेधशाला में दुनियाँ का सबसे बड़ा दूरदर्शी लगाया गया है जिसके एरियल का मुँह 250 फुट चौड़ा और वजन तीन सौ टन है। इसे साधने के लिये विशाल गर्डर स्तम्भ लगाये गये हैं। ऊपर जो अन्तरिक्ष सम्बन्धी जानकारी दी गई हैं वह अधिकांश इसी वेधशाला की उपलब्धि है जब कि वैज्ञानिक का कथन है कि विराट ब्रह्माण्ड की वास्तविक जानकारी करनी हो तो सूर्य जितनी प्रचण्ड इलेक्ट्रानिक शक्ति ऊँचाई और व्यास वाला दूरदर्शी होना चाहिये। तात्पर्य यह कि न इतना बड़ा दूरदर्शी बन सकता है और न अनन्त आकाश का निश्चित पता लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने केवल सैद्धान्तिक अनुमान लगाया है उसके अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का व्यास

1000000000000000000000000 किलोमीटर होना चाहिये। स्मरण रहे यह संख्या अनुमान मात्र है अन्तिम सत्य नहीं।

भगवान् ने इतना विशाल ब्रह्माण्ड रच कर तैयार कर दिया। हतभाग्य मनुष्य उस सबको घूम कर देख भी नहीं सकता। गाँवों में सबसे बढ़ा दुर्भाग्य उसका माना जाता है जो कोई बड़ा शहर नहीं देख पाता। जो शहरों की खाक छान चुके होते हैं उनमें से अग्रणी वे माने जाते हैं जो सारे देश का भ्रमण कर लेते हैं। उनमें से एक ही ऐसे निकलते हैं जो समुद्री या हवाई रास्ते से दुनियाँ के प्रमुख शहरों और देशों का भ्रमण कर लेते हैं। अब कोई चन्द्रमा जाता है तो उसका नाम अखबारों में बड़े शीर्षक देकर छपता है। जब कि वैसे ही करोड़ों मनुष्य इस पृथ्वी पर हैं जिन्हें चन्द्रमा तो क्या पृथ्वी से दस मील ऊपर की भी कल्पना नहीं आखिर मनुष्य को भगवान् ने इतना असमर्थ क्यों बनाया? इस पर विचार करते हैं तो लगता है उसने यदि अपनी इच्छा से संसार बनाया तो मनुष्य के साथ न्याय क्यों नहीं किया? उसे ऐसी शक्ति क्यों नहीं दी कि वह भी विराट् ब्रह्माण्ड में बिहार का आनन्द ले पाता।

इसके लिये भगवान् को कोसने के पहले उसके न्याय का अध्ययन कर लेना आवश्यक है। पर उसके लिये आप ब्रह्माण्ड की तुलना में जितने छोटे हैं अपनी तुलना में उतना ही छोटा और बनना पड़ेगा अपना अहंकार नष्ट करना पड़ेगा जितने छोटे हो सकते हैं होते चले जाइये। आप देखेंगे कि भगवान् न जो विराट् सृष्टि दृश्य जगत में बनाई है अदृश्य जगत में, सूक्ष्म रूप से वह पूरी-पूरी विद्यमान् है। उसको खोजने, उसे पाने, उसमें भ्रमण का आनन्द लेने के लिये अन्यत्र जाने, पैसा खर्च करने या भाग्य को कोसने

की आवश्यकता नहीं। अपने आप में छोटे होते चले जाइये आपको उस विराट् के दर्शन अपने में ही हो सकते हैं।

सूर्य-चन्द्रमा आदि ग्रह-नक्षत्र जितने बड़े हैं अमीबा उतना ही छोटा 0.8 मिलीमीटर का जीव है। जीवाणु विज्ञान के अनुसार सूक्ष्म जीवाणु 1/25000 इंच का बाल की नोंक से भी छोटा होता है। बैक्टीरिया (जीवाणु) में अपनी तरह की चेतना गुण-कर्म-स्वभाव विद्यमान् है और अपनी सृष्टि में वह सन्तुष्ट होने के साथ ही उसकी गति ऐसी है जो एक सेकेण्ड में पृथ्वी के ओर-छोर की यात्रा मजे में सम्पन्न कर सकता है। जो जितना छोटा उतना ही गतिमान।

वह छोटापन अभी अन्तिम नहीं है। संसार के सब पदार्थ परमाणुओं से बने हैं। एक परमाणु का व्यास 0.0000001 मिलीमीटर होता है। और उसमें पाये जाने वाले इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान सब सूर्य-चन्द्रमा की तरह शक्ति सम्पन्न है। परमाणु विज्ञान में उसे कोई आश्चर्य नहीं माना जाता, जबकि परमाणु की शक्ति को नागाशाकी और हिरोशिमा में अच्छी तरह देखा जा चुका है।

परमाणु के अन्दर नाभिक सृष्टि का सबसे बड़ा आश्चर्य है। यह एक चेतन और मनोमय शक्ति है। और उसके अन्दर सम्पूर्ण सृष्टि-सी विद्यमान् लगती है। जब कि उसका छोटापन उसी तरह कल्पनातीत है जितना ब्रह्माण्ड की विशालता। परमाणु के नाभिक का व्यास 0.00000000000 मिलीमीटर है ब्रह्माण्ड उससे एक सेप्टिलियन गुना बड़ा है। एक सेप्टिलियन 1 के बाद 42 शून्य रखने से बनेगा। ब्रह्माण्ड की तरह यह केवल सैद्धान्तिक अनुमान है जिस तरह ब्रह्माण्ड के विस्तार का अन्तिम निर्णय नहीं किया जा सका उसी तरह परमाणु के ‘नाभिक’ की लघुता का भी अन्तिम

निर्माण नहीं किया जा सकता। यह तो बिन्दु में सिन्धु की अणु में विभु की स्थिति है अर्थात् ब्रह्माण्ड ही परमाणु नाभिक है और परमाणु नाभिक ही ब्रह्माण्ड यदि हम अपने भीतर बैठे चेतन परमाणु को देख लें तो विराट् ब्रह्माण्ड को देख सकते हैं यदि हम अपनी चेतना के ‘नाभिक’ या मूल को पहचान लें तो विश्व में जो कुछ भी है उसके स्वामी हो सकते हैं।

इस लघुता तक पहुँचने के लिये दीर्घकालीन अभ्यास और साधनायें अपेक्षित है क्योंकि उनकी अनुभूति में समय लगाना आवश्यक है। ब्रह्माण्ड की तुलना की तरह चेतन परमाणु इतना छोटा है कि यदि उसके नाभिक का व्यास 1/10 मिलीमीटर मानें तो पूरा परमाणु एक भव्य इमारत जैसा लगेगा और बैक्टीरिया जिसका व्यास ऊपर दिया है इतना बड़ा लगेगा जितनी लंदन से बर्लिन की दूरी। अमीबा जो सबसे छोटा एक कोशिकीय जीव है इतना बड़ा होगा कि उसे पृथ्वी की गोलाई में दो बार आसानी से लपेटा जा सकेगा। उस तुलना में मनुष्य इतना बड़ा होगा कि पृथ्वी में खड़ा होकर बड़े आराम से सूर्य को पकड़ ले तब पृथ्वी इतनी बड़ी होगी कि दोनों ध्रुवों के बीच की दूरी प्रकाश की गति से चलकर पूरी की जाये तो पूरे दो वर्ष लग जायें। एक ओर ब्रह्माण्ड की यह विशालता एक ओर जीवन की यह लघुता दोनों पर विचार करते हैं तो ऋषियों की ‘अणोरणीयान् महतो महीयान्’ वह अणु से भी छोटा और ब्रह्माण्ड के समान विशाल है, की उक्ति को ही शिरोधार्य करना पड़ता है। और तब विराट् के दर्शन के लिये उपाय एक ही रह जाता है कि हम अपनी लघुता को अन्तःकरण की गहराई तक अनुभव करें।

परमाणु-संसार की खोज करते समय जो शक्ति कण पाये गये हैं वह ब्रह्माण्ड के एक नक्शे की तरह हैं। केन्द्रक (न्यूक्लियस) उसका मुख्य भाग है उसके आस-पास शून्य (आकाश) है। उस पोले स्थान में इलेक्ट्रान चक्कर लगाते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक पदार्थ के परमाणु में अलग-अलग तरह की होती है। चक्कर काटते हुए इलेक्ट्रान ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार सौर मण्डल के ग्रह-उपग्रह केन्द्रक या नाभिक (न्यूक्लियस) सूर्य की तरह है जो सेन्ट्रीफ्यूगल फोर्स के द्वारा इलेक्ट्रानों को नियमित किये रहता है। इलेक्ट्रान स्वयं सेन्ट्रोफ्यूमल फोर्स के द्वारा केन्द्रक की ओर खिंचे रहते हैं। यह व्यवस्था भी ब्रह्माण्ड में गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्तों की तरह है। यह दृश्य सौर मण्डल भी ब्रह्माण्ड का एक परमाणु ही है जिसका केन्द्रक सूर्य और इलेक्ट्रान अनेक ग्रह-उपग्रह हैं।


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