ईश्वर का महान उपहार व्यर्थ न चला जाय।

December 1965

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जिन्हें जीवन से रुचि है, जो यह चाहते हैं कि वे मानव-जीवन को मनुष्य के अनुरूप ही व्यतीत करें वे अपने अन्दर की शक्तियों को पहचानें, उन पर विश्वास करें और उन्हें अपने अनुकूल उपयोगी बनाने के प्रयत्न में लग जायें।

जीवन को ऊँचा उठाना और सुन्दर से सुन्दर बनाना ही मानव जीवन का लक्ष्य है! निरुद्देश्य जीवन बिताने में न तो कोई शोभा है और न श्रेय ! निर्लक्ष्य जीवन बिताना तो पशुओं को भी आता है।

मनुष्य जीवन एक ईश्वरीय प्रसाद है, उपहार है। उसका अनादर करना परमात्मा का अपमान करना है। किसी काम के लिए पाये हुए एक छोटे से उपहार को मनुष्य आजीवन सजाकर और संजो कर रखता है। उसे देख-देखकर हर्षित और गर्वित होता है। तब न जाने किस कारण मानव जीवन जैसे अनिवर्चनीय उपहार की अवहेलना मनुष्य करता रहता है। क्या इसलिए कि यह उसे करुणाकर भगवान् द्वारा सहज ही में प्राप्त हो गया है। जीवन खोकर जीवन का मूल्य समझने वालों को युगों तक पश्चाताप के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता।

-सेन्टपाल

*समाप्त*


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