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December 1965

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“चाहे संसार भर के सारे बड़े-बड़े उपदेशक आ जायें, चाहे स्वयं ईश्वर आकर उपदेश करने लगें, परन्तु जब तक आप स्वयं अपने को उपदेश देने को तत्पर नहीं होंगे, तब तक दूसरों के उपदेशों से रंच मात्र लाभ नहीं होगा। स्वर्ग आपके भीतर ही है और तब भी आप गली-गली उसके विषयों में ढूँढ़ते फिरते हैं। जो वस्तु भीतर मौजूद है, उसे आप बाहर तलाश करते हैं, यह कैसा आश्चर्य है?”

-रामतीर्थ

आज सन्त तुकाराम तो जनता के बीच नहीं हैं, किन्तु महाराष्ट्र में वे जो भक्ति -भावना से भरी हुई कर्तव्यनिष्ठा के उपदेशों तथा अपने लिखे हुये जिन आठ हजार भजनों को छोड़ गये हैं, वे आज भी जन साधारण से लेकर उच्च वर्ग तक का मार्ग प्रदर्शन करते हुये सुख-शान्ति प्रदान कर रहे हैं। निःसन्देह भारत को ऐसे ही जनसेवी सन्त महात्माओं की आवश्यकता है।


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