युग−निर्माण करो! आओ,युग−निर्माण करो!!
सोये हृदय जगाओ, सबमें प्राण भरो॥ युग.−
सब में क्षमाशीलता, सेवा−भाव भरें।
समता, सत्य, सुमति के सरस सुमन बिखरें॥ युग.−
शांति-ध्वजा लहराए, विमल−विवेक बढ़े।
सबमें सहिष्णुता का रंग पुनीत चढ़े॥ युग.−
निर्मल भाव उदय हों, हो विकास मन का।
प्रबल−पराक्रम जागे, भय भागे तन का ॥ युग.−
परहित व्रत अपनाएँ, कुमति, कुरीति कटें।
जीवन में जय पाएँ, सब संताप हटें ॥ युग.−