युग-निर्माण करो (कविता)

September 1962

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युग−निर्माण करो! आओ,युग−निर्माण करो!!

सोये हृदय जगाओ, सबमें प्राण भरो॥ युग.−

सब में क्षमाशीलता, सेवा−भाव भरें।

समता, सत्य, सुमति के सरस सुमन बिखरें॥ युग.−

शांति-ध्वजा लहराए, विमल−विवेक बढ़े।

सबमें सहिष्णुता का रंग पुनीत चढ़े॥ युग.−

निर्मल भाव उदय हों, हो विकास मन का।

प्रबल−पराक्रम जागे, भय भागे तन का ॥ युग.−

परहित व्रत अपनाएँ, कुमति, कुरीति कटें।

जीवन में जय पाएँ, सब संताप हटें ॥ युग.−


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