परिश्रम हीनता का द्योतक नहीं (Kahani)

June 1961

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परिश्रम हीनता का द्योतक नहीं

अमरीका के स्वाधीनता संग्राम के समय की बात है कि कुछ सैनिक एक किले के ऊपर एक भारी लकड़ी को चढ़ाने का प्रयत्न कर रहे थे। पर लकड़ी भारी होने के कारण उनसे चढ़ाई नहीं जा रही थी। इतने में एक सज्जन व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर उधर से निकले और इस दृश्य को देखकर उन सिपाहियों के नायक से, जो पास ही खड़ा हुआ था, कहने लगे कि अगर आप भी हाथ लगा दें तो लकड़ी उठ सकती है। इस पर वह बोला- “मैं तो नायक हूँ।” उन सज्जन ने बिना कुछ कहे अपनी टोपी और कोट उतार कर अलग रख दिये और कमीज की बांहें चढ़ा उन मजदूरों के साथ लकड़ी को उठवाने लगे। लकड़ी सुविधापूर्वक ऊपर पहुँच गई। चलते समय उन्होंने नायक से कहा- “जब कभी आपको ऐसे किसी काम के लिये आवश्यकता पड़े तो आप अपने प्रधान सेनापति जार्ज वाशिंगटन के पास संदेश भेज दिया कीजिये, मैं आ जाया करूँगा।


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