मनुष्य जो कुछ मन से ध्यान करता है वही वाणी में प्रकट करता है, वही कर्म में परिणित करता है और जो कुछ कर्म करता है उसी को प्राप्त होता है।
-यजुर्वेद
प्रेम और वासनाओं में उतना ही अन्तर है जितना कंचन और काँच में।
प्रेमचंद्र