सद्भाव रखने में ही सुख है

June 1961

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सद्भाव रखने में ही सुख है।

कपिलवस्तु और कोलिय नगरों के बीच रोहिणी नदी रहती थी। दोनों स्थानों के व्यक्ति खेती के लिए उसके जल का उपयोग करते थे। एकबार अवर्षा के कारण सर्वत्र जल का अभाव हो गया। रोहिणी की धारा भी क्षीण हो गई। यह देखकर दोनों नगरों के लोगों ने बाँध द्वारा उसके पानी को अपने ही नगर में ले आने का विचार किया। इस पर दोनों में विवाद होने लगा और अन्त में वे शस्त्र लेकर मरने-मारने को उद्यत हो गये। उस समय भगवान् बुद्ध रोहिणी के तट पर ही बिहार कर रहे थे। उन्होंने युद्ध की तैयारी देखकर कारण पूछा और सब हाल सुनकर दोनों तरफ के सरदारों से पूछा-श्रीमानो पानी का क्या मूल्य होता है?”

सरदार-पानी का कोई मूल्य नहीं होता वह सर्वत्र बिना मूल्य ही मिल जाता है?”

“क्षत्रियों का क्या मूल्य है?”

सरदार-क्षत्रियों का मोल लगाना सम्भव नहीं है। वे राष्ट्र की अनमोल सम्पत्ति है। बुद्ध-फिर भी आप लोग अनमोल क्षत्रियों के खून को बिना मोल के पानी के लिये बहाने को तैयार हो गये, क्या यह उचित है,”

दोनों पक्षों के सरदारों ने अपनी भूल स्वीकार करके भगवान् बुद्ध की वन्दना की। भगवान ने उनको समझाया कि-शत्रुओं में अशत्रु बनकर और बैरियों में अबैरी रहकर जीने में ही सुख है।”


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