राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में आपका योग

June 1961

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(श्री रामखिलावन चौधरी)

आज चारों ओर चारित्रिक और सामाजिक दृष्टि से क्षोभ और निराशा का वातावरण दिखाई देता है। हम और आप सभी इस वातावरण को बदलना चाहते हैं। परन्तु इस कार्य में अपने को असमर्थ पाते हैं। इन समस्त दुःखद परिस्थितियों के लिए हम सरकार को समाज को और अन्य जनों को दोष देते हैं, हम भूलकर भी अपने दिल को नहीं खोजते। हम कभी भी यह नहीं सोचते कि इन दूषित परिस्थितियों को उत्पन्न करने में हमारा क्या योग हैं। यदि एक बार आप अपने विचारों और कार्यों का मूल्यांकन करने लगें, तो आपकी समझ में तुरन्त आ जाएगा कि दूसरों को दोष देना व्यर्थ है। स्वयं अपने में कुछ दोष हैं और उन्हें यदि निकाल दिया जाय तो अपन बहुत कुछ कर सकते हैं। यदि आप अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने लगें, तो आप एक सही दिशा की ओर चलने लगेंगे। यह न सोचें कि ‘अकेला चना क्या भाड़ छोड़ेगा' बहुत से लोग अपना काम इसलिए ठीक से नहीं करते कि वे अन्य कर्तव्यहीन जनों के कृत्यों को देखकर सोचते हैं कि जब सभी लोग ईमानदारी से काम नहीं करते, तो हमारी ईमानदारी से क्या लाभ होगा?

आप यह निश्चित रूप से जान लेंगे कि आपकी अकेली ईमानदारी में बहुत बड़ा बल है। हाँ, वह ईमानदारी पत्थर की चट्टान की तरह दृढ़ और अभेद्य होनी चाहिए। एक व्यक्ति में कितनी शक्ति होती है, इसे समझना है तो राम कृष्ण गौतम, ईसा, मोहम्मद और गाँधी जी की शक्ति को देखिए। अपने चारों ओर की प्रतिकूल परिस्थितियों की परवा न करके यह लोग अकेले ईमानदारी के साथ परायण हुए फल स्वरूप उनका अनुगमन करने वाले अनेक बन गये सारी दुनियाँ बदल गयी। तालाब के निश्चल जल में एक ही कंकड़ फेंका जाता हैं परन्तु उसके प्रभाव से उठने वाली असंख्य तरंगें जल की सतह पर उठने लगती है। उसी प्रकार अकेले आपके ईमानदार होने से, घर में पास पड़ोस में, व्यवसाय में और सभी क्षेत्रों में जहाँ आप प्रवेश करते हैं वही, कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य होता है।

आप अपने घर के एक सदस्य हैं। यदि परिवार में आप सबसे बड़े हैं, तो आप बहुत कुछ कर सकते हैं अपने आश्रित जनों के साथ निष्पक्ष और निष्कपट व्यवहार करके आप सबका जीवन सुखी बना सकते है। सबके लिए उचित साधन जुटाकर सबको उन्नति करने का समान अवसर दे सकते हैं। बच्चों और युवकों को (जो आपके परिवार के हैं) उनकी शिक्षा के विषय में उचित परामर्श और मार्गदर्शन दे सकते हैं। परिवार एक प्रकार की नर्सरी है। जैसे नर्सरी में फूलों के पौधे उगाये जाते हैं और बड़े होने पर वही पौधे बंगलों और उद्यानों की शोभा बढ़ाते हैं, उसी प्रकार परिवार में जो बच्चे जन्म लेते है, पलते है और शिक्षा पाकर बड़े होते है, वही आगे चलकर देश के उत्तम नागरिक बनते हैं जिनकी कार्य कुशलता ईमानदारी और कर्तव्यपालन परदेश का भाग्य निर्भर होता है सच पूछिए तो आप इस प्रकार राष्ट्र की शानदार इमारत की नींव तैयार करते हैं।

आज हमारे परिवारों की दशा बहुत गिरी हुई है। गरीबी ओर उत्तम साँस्कृतिक वातावरण की कमी के कारण, पारिवारिक जीवन दूषित होता चला जा रहा है, उसी के कारण मनुष्य में स्वार्थपरता, व्यक्तिगत सुख की होड़ के भाव प्रबल हो जाते है, जिससे सामाजिक जीवन को क्षति पहुँचती है। इन दूषित प्रवृत्तियों को नष्ट करने के लिए कानून नहीं बनाये जार सकते और यदि बनाये भी जायें, तो इससे कोई लाभ नहीं होगा। हम देखते है कि हमारे देश में कानून बनते हैं परन्तु उनसे जो सुधार होने चाहिए, नहीं हो पाते। एक ओर कानून बनता है। और दूसरी ओर कानून का उल्लंघन करने के उपाय लोग निकाल लेते है। राष्ट्रीय चरित्र कानूनी की सहायता से नहीं सुधारा जा सकता। उसका बनाना हमारे आपके हाथ में है। यदि हर एक व्यक्ति अपना सुधार कर ले तो सारा देश अपने आप सुधर जायेगा।

सामाजिक जीवन आदान- प्रदान की नींव पर खड़ा होता है। हमको दूसरों से सुख सुविधाऐं मिलती है और हम दूसरों को सुख सुविधाऐं पहुँचाते हैं। तभी सामाजिक जीवन कायदे से चलता है और सुख की वृद्धि होती है। सामाजिक जीवन के क्रम को भंग न होने देना हमारे हाथ की बात है। इस समय एक बहुत बड़ी कठिनाई यह उपस्थित है कि हम और आप तमाम सुख सुविधाऐं पाना चाहते हैं परन्तु दूसरों को अपनी ओर से सुख सुविधाऐं देना नहीं चाहते। हम ‘आदान’ चाहते हैं परन्तु प्रदान नहीं। जहाँ प्रदान नहीं होता, वहाँ आदान केवल थोड़े दिन चलता है। अपनी ओर से प्रदान का क्रम भंग होते ही, दूसरे लोगों से आदान नहीं प्राप्त होगा। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक जीवन की विकास और विनाश की कुँजी आपके ही हाथ में है। आप उसका प्रयोग करके बहुत कुछ समाज का उपकार कर सकते हैं। समाज के प्रति आपका जो भी ‘देय’ है, निष्ठा पूर्वक दीजिए, आपका जो भी उत्तरदायित्व है, उसे पूरा करिए-

इसी प्रकार समाज में व्याप्त अनेक दोषों को आप नष्ट कर सकते है। होता यह है कि आप अनेक सामाजिक बुराइयों को या तो स्वार्थ वश दूर नहीं करते या कायरता से उनकी ओर से उदासीन रहते हैं। आपके पास-पड़ोस में कोई दुष्ट तथा अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति रहता है। आप साहस पूर्वक उसका विरोध नहीं करते और कभी कभी तो स्वार्थवश उसके साथ सहयोग करने लगते है। ऐसी दशा में अपराध का उन्मूलन नहीं हो सकता। वास्तव में अपराधों के बढ़ाने में आप सहायक होते है। आपके पास पड़ोस में यदि गंदगी है, छूत की बीमारियाँ फैलती है, फिर भी आप सफाई की ओर न तो स्वयं ध्यान देते है और न दूसरों का ध्यान आकर्षित करते है। हमारे देश में अभी काफी अज्ञानता हैं। पास पड़ोस में यदि आप पढ़े लिखे हैं, तो निरक्षर जनों तक कुछ ज्ञान का प्रकाश फैलाइये। मोहल्लों में सबेरे म्यूनिसिपलिटी के कर्मचारी गलियों की सफाई कर जाते है, नालियों में मल मूत्र त्याग कराते हैं, घर का तमाम कूड़ा- कचरा बाहर गली में ढेर कर देते हैं। आपके पास में सार्वजनिक नल लगा हे। वह खुला पड़ा रहता है और पानी नष्ट करता है। राष्ट्रीय घन का अपव्यय होता साथ ही नमी फैलती है। यह सब छोटी छोटी बातें बड़े महत्व की है। केवल इन छोटी मोटी बातों की ओर ध्यान न देने से राष्ट्र के अपार धन की क्षति होती है।

अब आप अपने व्यवसाय की बात लीजिए। हमारे देश में प्रायः व्यवसाय के प्रति लोगों का दृष्टिकोण स्वस्थ नहीं है। आप चाहे नौकरी करें, या मजदूरी या दुकानदारी, उसमें अधिक से अधिक लाभ उठाने की चेष्टा करते है। आप यह भूल जाते है कि अनुचित मुनाफागिरी के कारण आपके व्यवसाय से लाभ उठाने वाले उपभोक्ताओं पर क्या प्रभाव पड़ता है। हम सभी युद्धकालीन ‘काला बाज़ार से परिचित है। व्यापारी वर्ग अपनी वस्तुओं को बेचकर उचित नफा उठाने के साथ-साथ और भी अधिक अनुचित लाभ लेना चाहता है। व्यापार को अपने परिश्रम का उचित लाभ उठाने का हक है। परन्तु दूसरों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना भी उसका कर्तव्य है।

यदि आप सरकारी कर्मचारी हैं तो आपको अपने पद के अनुकूल कर्तव्य का निर्वाह करना है अधिकारी और कर्मचारी वर्ग की भी अपने पेशे में ईमानदारी नहीं रहे। मुनाफाखोरी करने वालों को प्रलोभनों से उन्हें बचना चाहिए। अधिकारी होने के नाते, वे उपभोक्ता जनता के संरक्षक है। स्वार्थ के लिये न्याय की हत्या करके किन्हीं को अनुचित अवसर प्रदान करना उनके लिए निश्चित रूप से लज्जास्पद है। मजदूर वर्ग को भी अपने पेशे में ईमानदार रहना चाहिए। यदि आप मजदूर है, तो आप जिस कारखाने में काम करते है, वहाँ अपने काम की उत्तमता बढ़ाने, उत्पादन की मात्रा बढ़ायें। ऐसा करने से ही राष्ट्रीय आय बढ़ेगी और आपकी भी आय साथ में बढ़ेगी।

उपर्युक्त कुछ उदाहरणों से स्पष्ट है कि देश और समाज का भविष्य हमारे आपके हाथों में है। हम अनेक बुराइयों को दूर करने का बोझ स्वयं स्वीकार करें और सरकार का मुँह न ताकें। तभी उन्नति की दिशा में हम अग्रसर हो सकते है।


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