गायत्री-उपासना से जीवन रक्षा

January 1959

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(श्री आनन्द स्वामी)

[श्री आनन्द स्वामी (भूतपूर्व महाशय खुशालचन्द जी सम्पादक ‘मिलाप’) एक प्रसिद्ध विद्वान और सामाजिक नेता हैं। आप गायत्री के परम भक्त हैं और अपनी ‘महामन्त्र’ नामक पुस्तक में आपने गायत्री-उपासना की महिमा पर अनोखा प्रकाश डाला है। आप एक आधुनिक शिक्षा प्राप्त और बुद्धिवादी पुरुष हैं इसलिए आपने गायत्री उपासना के विषय में जो कुछ बतलाया है वह विशेष रूप से बुद्धि-संगत प्रतीत होता है और प्रत्येक विचार का व्यक्ति उस पर विश्वास कर सकता है। अभी हाल में पिलखुआ (मेरठ) में आपने कुछ विद्यार्थियों के प्रश्न करने पर अपने गायत्री संबंधी अनुभव सुनाये थे जो वास्तव में ध्यान देने योग्य हैं। नीचे उन्हीं बातों को पाठकों के लाभार्थ दिया जा रहा है।]

प्रश्न- आपने स्वयं गायत्री माता की भक्ति के द्वारा कुछ चमत्कार देखा है? क्या वास्तव में मंत्र-जप से कार्य सिद्ध हो सकते हैं?

स्वामी जी- देखा है और खूब देखा है। गायत्री माता में और महामृत्युञ्जय के जप में बड़ी विलक्षण शक्ति देखी है। यह मंत्र बड़ी-से-बड़ी घोर विपत्तियों से छुटकारा दिला देता है और फाँसी के तख्ते पर से भी बचा देता है। हमने इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अपनी आँखों से देखा है। मेरे पुत्र रणवीर, सम्पादक ‘मिलाप’ को एक बार सेशन कोर्ट से फाँसी की सजा का आदेश हो गया। मैं रणवीर से जेल में मिला और उससे कहा कि तुम माता गायत्री की शरण लो और तुम सवा लाख-

ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यार्मुक्षाय मामृतात्॥

-इस महामृत्युञ्जय-मंत्र का जप करो। तुम अवश्य ही फाँसी की सजा से छूट जाओगे। इधर फाँसी की कोठरी में तुम मंत्र जप करो, उधर हम तुम्हें मृत्यु के पंजे से बचाने के लिये पूरा पुरुषार्थ करेंगे। प्रभु की आराधना और तदनुकूल प्रयत्न दोनों मिलकर कार्य शीघ्र सिद्ध कर देते हैं। उसने मेरे कहने के अनुसार इस मंत्र का जप करना प्रारंभ किया। बड़े-बड़े वकील, बैरिस्टर यह कहते थे कि ‘ये छूटेंगे नहीं’, किन्तु मैं यही कहता था कि हमने यहाँ की अदालत के अतिरिक्त एक बहुत बड़ी अदालत में, जो सबसे बड़ी अदालत है, अपील कर रखी है। उसमें हमारी अवश्य ही सुनवायी होगी। जिस दिन सवा लाख जप पूरा हुआ, ठीक उसी दिन रणवीर साफ छूट गये। इस प्रकार मंत्र ने फाँसी की सजा से रक्षा की। जो मंत्र फाँसी की सजा से बचा सकता है, वह मंत्र क्या रोग को नहीं मिटा सकता? या कोई वस्तु प्राप्त नहीं कर सकता? विश्वास और श्रद्धा के साथ जप करना चाहिये। सब कुछ प्राप्त हो सकता है और रोग शोक सब जा सकता है।

प्रश्न-अपने जीवन की कोई सत्य घटना सुनाइये।

स्वामी जी-सुनिये, सुनाये देता हूँ-

गायत्री माता की बड़ी अद्भुत अलौकिक शक्ति है। गायत्री माता की भक्ति करने से, गायत्री माता के शरण जाने से हमारे लोक-परलोक दोनों ही बन जाते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। गायत्री माता के जप से, भक्ति से क्या प्राप्त होता है, इसका मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया है। इस संबंध का मेरा निजी अनुभव इस प्रकार है-

बाल्यकाल में मेरी बुद्धि सूक्ष्म नहीं थी। मैं उस समय एक स्कूल में पढ़ा करता था, परन्तु मुझे उस समय आता कुछ भी नहीं था। मैं स्कूल के प्रत्येक घंटे में मार ही खाता था अथवा मुझे बेंच पर खड़े होकर स्कूल का समय व्यतीत करना पड़ता था। स्कूल में मुझ से जाते ही पाठ याद न होने के कारण खूब कहा-सुना जाता था और मैं खड़ा हो जाता था। और उधर जब मैं अपने घर पहुँचता था तो घर पर मुझे मेरे पिता जी बड़ी बुरी तरह से धिक्कारते थे तथा मुझे डाँटते हुए कहते थे कि तू इस प्रकार अपना जीवन नष्ट कर लेगा पढ़ता क्यों नहीं है? स्कूल से भी और घर से भी अपमानित हुआ मैं आत्महत्या करने की बात सोचा करता था। एक दिन की बात है- वर्षा ऋतु में जब हमारे ग्राम की बरसाती नदी खूब वेग से बह रही थी, मैंने उसके पुल पर चढ़कर आत्महत्या करने की दृष्टि से नदी में छलाँग लगा दी, परन्तु मैं मर न सका और जल में बहता हुआ किनारे जा लगा। ग्राम के लोगों ने मुझे पहचान लिया और ले जाकर मेरे घर पहुँचा दिया। इस प्रकार मेरी बड़ी बुरी अवस्था थी। परन्तु जब मेरे भाग्य के उदय होने का समय आया, तब अकस्मात विचरते-विचरते हमारी नगरी में एक बड़े ही उच्चकोटि के संत-स्वामी श्री नित्यानन्द जी महाराज पधारे और हमारी ही वाटिका में आकर ठहरे तथा वहीं पर उन्होंने निवास किया। पिताजी ने उन्हें भोजन ले जाने का कार्य मुझे सौंपा। मैं प्रतिदिन स्वामी जी महाराज के लिये भोजन ले जाता। एक दिन की बात है, मैं उस दिन पाठ याद न होने के कारण स्कूल में तथा घर में बुरी तरह से पिटा था और रोते-रोते मेरी आँखें भी सूज गयी थी। दोपहर के समय मैं उस दिन भी नित्य की भाँति स्वामी नित्यानन्द जी महाराज के लिये भोजन ले गया और भोजन की थाली स्वामी जी महाराज के सामने रखकर आप दीवार के साथ लगकर उदास खड़ा हो गया। स्वामी जी महाराज भोजन भी करते जाते थे और बार-बार वे मेरी ओर ताकते भी जाते थे। भोजन करने के पश्चात स्वामी जी ने मुझे नाम लेकर पुकारा और मुझसे पूछा कि ‘कहो’ क्या बात है? आज तुम बड़े ही उदास क्यों खड़े हो? मैंने कहा- ‘महाराज कुछ नहीं है।’ स्वामी जी कहने लगे- ‘नहीं, बात तो कुछ अवश्य है। बताओ, क्या बात है? और तुम्हारी आँखें भी आज रुदन से कुछ सूजी हुईं सी प्रतीत होती हैं। यह सुनते ही मेरे धैर्य का बाँध टूट गया और मैं अब तो फूट-फूटकर रोने लगा। तब स्वामी जी महाराज ने बड़े प्यार से मुझे अपने बिल्कुल ही पास में बिठलाकर कहा-’कहा बेटा, तुम्हें क्या कष्ट है, जो तुम इस प्रकार रो रहे हो?’ तब मैंने निवेदन किया कि ‘महाराज जी! मैं अब जीवित रहना नहीं चाहता, क्योंकि मैं बुद्धि मोटी होने के कारण हर स्थान पर अपमानित होता हूँ, इसलिये मुझे अब मरने का कोई सरल-सीधा सा साधन बताइये। स्वामी जी सुन कर कहने लगे- ‘अरे, तू इतनी-सी बात से अधीर हो गया है। तेरे रोग की औषध हमारे पास है, अब तू चिन्ता मत कर।’

मैंने अब तो आशा भरे नेत्रों से उन्हें देखते हुए उनसे कहा कि ‘मुझे वही बतलाइये।’ स्वामी जी सुनकर कहने लगे कि ‘एक सफेद कागज लाओ।’ मैंने सफेद कागज दिया। उन्होंने कागज पर गायत्री मंत्र लिखकर मुझे आदेश किया कि ‘यह है तुम्हारे रोग का इलाज। प्रातःकाल जब घर के सब लोग सोये पड़े हो, तब तू उठकर और शुद्ध-पवित्र होकर और पवित्र कुशासन पर एक आसन से बैठकर भृकुटी में ध्यान लगाकर इस मंत्र का जप किया कर।’ यह कहकर स्वामी जी ने मुझे आशीर्वाद दिया।

इस मंत्र को लेकर मुझे ऐसा लगा कि जैसे मुझे कोई एक बहुत बड़ी सम्पत्ति मिल गयी हो। अब तो मैं पूज्य स्वामी जी महाराज के आज्ञानुसार प्रातःकाल साढ़े तीन बजे उठ जाता और स्नान आदि के पश्चात एक आसन पर बैठकर ध्यान जमाकर गायत्री का जप करता। परन्तु बाल्यावस्था के कारण निद्रा आकर घेर लेती और मैं ऊंघने लगता। जब मैं निद्रा दूर होते न देखता तो मैं अपने नेत्रों पर पानी के छींटे देता और इस प्रकार से सावधान होकर फिर से गायत्री का जप करना प्रारंभ कर देता, परन्तु निद्रा फिर भी मुझे आ घेरती। इससे बचने का मुझे एक उपाय सूझा। मेरी चोटी बड़ी लम्बी थी। मैंने एक लम्बी रस्सी लेकर उस रस्सी का एक सिरा तो छत में लगे कुँडे में बाँध दिया और रस्सी का दूसरा सिरा चोटी के साथ बाँधकर बैठ गया। जप करते समय जब मुझे ऊँघ आती और सिर नीचे होता तो चोटी के खिंच जाने से मैं एकदम सावधान हो जाता। इस प्रकार बड़ी श्रद्धा-भक्ति से मैं गायत्री का निरन्तर जप करने लगा। चार-पाँच मास के पश्चात ही मैंने गायत्री माता के जप का यह अद्भुत चमत्कार देखा कि जहाँ पहले मेरी बुद्धि कोई भी विषय नहीं पकड़ती थी, वहाँ कुछ-कुछ गणित, इंग्लिश, हिन्दी, इतिहास इत्यादि स्मरण होने लगे। और जब वार्षिक परीक्षा हुई तब मैं उसमें अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण हो गया। मास्टर लोग मुझे उत्तीर्ण होते देखकर आश्चर्यचकित हो गये और कहने लगे कि इसे तो कुछ नहीं आता था, फिर यह पास कैसे हो गया? हो-न-हो इसने दूसरों की नकल की होगी। मैंने कहा कि ‘ऐसी बात तो नहीं है।’ उसके पश्चात जो भी परीक्षा होती, मैं उसी में अब तो अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण होता रहा और गायत्री माता की कृपा से मेरी बुद्धि दिनों-दिन निर्मल और तीव्र होने लगी और जब कर्त्तव्य-क्षेत्र में लगा, तब भी निरन्तर उन्नति ही करता चला गया। गायत्री माता की कृपा से वैभव की सारी वस्तुएं प्राप्त होने लगीं। गाय, भैंस, कारें, मोटरें, कोठी, पुत्र-पौत्र जितनी भी लौकिक वैभव की चीजें हैं, सभी प्राप्त होने लगीं। इन सारे ही लौकिक वैभवों को प्राप्त करने के पश्चात यह शक्ति भी गायत्री माता की कृपा से प्राप्त हुई कि मैं इन सब पर लात मार कर विरक्त हो गया और आत्मदर्शन का यन्त्र करने लगा। अब मेरी आयु 75 वर्ष की हो चुकी है और 9 वर्ष की आयु से लेकर अब तक मुझे जो कुछ प्राप्त हुआ है, वह सब श्री गायत्री माता की ही कृपा से प्राप्त हुआ है। मुझे कोई भी ऐसी रात्रि या दिन स्मरण नहीं कि जब मैंने सारे लम्बे वर्षों में कभी श्री गायत्री माता की गोद में बैठकर अमृत न पिया हो। मेरा अनुभव यह है कि गायत्री माता की आराधना से लोक-परलोक दोनों ही सुधर जाते हैं। अथर्ववेद के अन्दर भी यही आदेश है कि गायत्री माता के साधक को आयु, स्वास्थ्य, संतान, धन, ऐश्वर्य, कीर्ति, पशु, ब्रह्मवर्चस-दुनिया के ये सब - के सब ऐश्वर्य प्राप्त होते है और ब्रह्मलोक भी प्राप्त हो जाता है। कौन-सी ऐसी चीज है, जो गायत्री माता की कृपा से प्राप्त नहीं हो जाती? इसलिये गायत्री माता का भरोसा और गायत्री माता की भक्ति अवश्य ही करनी चाहिये।

मुझे गायत्री माता ने घोर विपत्ति से कैसे बचाया? इतना ही क्यों, मैं जो आज आपके सामने दिखलायी दे रहा हूँ और जौ मैं आज आपके सामने जीवित हूँ, यह भी एकमात्र गायत्री माता की कृपा से ही है, और किसी कारण से नहीं। मैं कैलाश की यात्रा में था, जो बड़ी भयंकर यात्रा है, जिसमें मेरे पैर की हड्डी टूट गयी थी और मेरे सभी साथियों ने मेरा साथ छोड़ दिया था तथा वे मुझे अकेला छोड़कर आगे चले गये थे। मैंने उस समय अपनी गायत्री माता से प्रार्थना की कि ‘मेरी माता तू मेरी रक्षा कर।’ मैंने देखा कि गायत्री माता ने मेरी प्रार्थना सुनी और मेरे अन्दर ऐसी शक्ति पैदा की कि मैं जो गायत्री का स्मरण कर चलने को खड़ा हुआ तो एकदम टूटी हड्डी का पता नहीं क्या हुआ और मैं पहाड़ों को लाँघकर यहाँ आ पहुँचा। यह मैंने स्वयं अपने जीवन में गायत्री का अद्भुत चमत्कार देखा है। गायत्री माता की भक्ति से मैंने सब कुछ प्राप्त किया है। और भी जो कोई गायत्री माता की भक्ति करेगा, उसे भी सब कुछ प्राप्त होगा- ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। परन्तु गायत्री जप यम-नियमों का पालन करते हुए और मंत्र के आदेश को जीवन में ढालते हुए ही करना लाभदायक है। बोलो गायत्री माता की जय।


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