हृदयोद्गार (kavita)

January 1959

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अविकल जगमग रहे दृगों में देवि, दिव्य स्मृतियाँ,

दिवा-निशा आयें, पर आने पाएँ न दुर्मतियाँ।

विलय घन तम का संशय हो हमारा पथ ज्योतिर्मय हो।

पथ के राग-द्वेष प्रलोभन कण्टक फूल बनें,

जीवन की कल-कल गतियों के विघ्न अमूल बनें।

प्रेम पयोनिधि के परिचय हो। हमारा पथ ज्योतिर्मय हो।

सौ-सौ शरद सुधाँशु हमारे- सुमनों को सीचें,

दबा रहे अविवेक ज्ञान रवि- के पद के नीचे।

स्नेह का दश-दिशि समुदय हो। हमारा पथ ज्योतिर्मय हो।

----***----


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles