सकाम यज्ञों की परम्परा

April 1956

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काम्य-यज्ञ मनुष्य की विविध कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक होते हैं, उसके द्वारा सूक्ष्म जगत में ऐसी प्रतिक्रिया एवं परिस्थितियों का निर्माण होता है जो अभीष्ट सफलताओं को समीप लाती हैं। अनेक बार तो तुरन्त और तत्काल अभीष्ट फल उपस्थित होता है। प्राचीनकाल से अनेक अग्निहोत्री, इस प्रकार के काम्य-यज्ञों के विधानों को भली प्रकार जानते थे और उनके द्वारा भारी संकटों का निवारण एवं महान् सफलताओं का उद्भव करते थे। आज काम्य यज्ञों की विद्याओं का लोप हो गया है, ऐसे कर्मकाण्डी विद्वानों की, मन्थों की विधि-विधानों की खोज नये सिरे से करनी होगी, जो इन विद्याओं का रहस्य प्रगट करके, उन लाभों को प्रत्यक्ष उपस्थित कर सकें।

काम्य-यज्ञों के सम्बन्ध में कुछ संकेत जहाँ-तहाँ मिलते हैं। उनके कुछ संग्रह नीचे उपस्थित कर रहे हैं। यह केवल संकेतमात्र है। इनके परिपूर्ण विधानों को खोजना अभी बाकी है।

लता वर्वसु विविछद्य सोमत्य जुहुयातदिमा। सोपे सूर्पण संयुक्ते प्रयोक्त क्षय शान्तये॥

अर्थ- अमावस्या के दिन साँपलता की डाली से हवन करने से क्षयरोग शान्त हो जाता है।

कुसुमै शंख वृक्षस्य हुत्वा कुष्टं विनाशयेत्। 42 अपस्मार विन शस्तादपामार्गेस्य तण्डुले॥

अर्थ—शंख वृक्ष के पुष्पों से होम करने से कुष्ठ [कोढ़] रोग आराम हो जाता है। अपामार्ग के चीजों से हवन करने से अपस्मार [मृगी, हिस्टीरिया] रोग विनष्ट हो जाता है।

चन्दन द्वय संयुक्तं कर्पूर तण्डुलं पवम्। लवंग सुफलं चाज्यं सिता चाम्रस्य दारु कै॥ अपं न्यून विधिः प्रोक्तो गायत्र्याः प्रीतिकारक।

अर्थ—दोनों चन्दन, (रक्त और श्वेत) कर्पूर, तण्डुल, पत्र, लबंग, नारकेल, घी, मिसरी तथा आम्र की समिधा, इसका हवन गायत्री तत्व के प्रति प्रीति कराने वाली है।

क्षोरोदने तिलान्दूबी क्षोरद्र म सापेद्वरान्। प्रथक सहस्र त्रितपं जुडुयान मन्त्र सिद्धके॥

अर्थ—प्रणव युक्त 2400000 चौबीस लाख गायत्री जप करने के बाद, उसकी सुसिद्धि के लिये दूध, भात, तिल, दूर्वा तथा बरगद, पीपल आदि दूध वाले वृक्षों की समिधाओं से तीन हजार आहुति प्रदान करे।

सूर्य गायत्री मंत्र से जिन वस्तुओं का हवन करने से जो लाभ होता है, उसका वर्णन यों मिलता है।

सप्ररोहाभिराद्राभिर्हुत्वा आयु समाप्नुयात्। सामेद्धि और वृक्षम्यर्हुत्वा पुत्रम वाप्नुयात्॥

अर्थ—पलाश की समिधाओं से हवन करने पर आयु की वृद्धि होती है। क्षीर वृक्षों की समिधा से हवन करने से पुत्र की प्राप्ति होती है।

ब्रीहीणाँ च शतंहुत्वा दीर्घवायु वाप्नुयात्।

अर्थ—यवों की सौ आहुतियाँ प्रतिदिन देने से दीर्घ-जीवन मिलता है।

सुवर्ण कमलं हुत्वा शतमायुरवाप्नुयात्। इर्न्नाभिपयस्य वापि मधुना सर्पिपापिवा॥

शतं शतं सप्ताहमपमृत्यु व्यपोहति। शमी सपिद्भिरन्तेन पयसा वा च सर्पिपा।

अर्थ—स्वर्णिम कमल पुष्पों से हवन करने पर मनुष्य शतजीवी होता है। इर्वा, दूध, मधु की सौ-डडडड डडडड डडडड से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। शमी की समिधाओं से तथा दूध और घृत से हवन करने पर भी-अपमृत्यु का भय जाता रहता है।

सुरभीणि सुपुष्टेश्च कारकाणि सितादिकम्॥ द्रव्यारामादाय जुहुयाच्चातुर्थं रोगनाशकम्॥

अर्थ—सुगन्धित, पुष्टिकारक, मधुर एवं रोगनाशक, चार प्रकार द्रव्यों का हवन करने से नाना प्रकार के रोगों का निवारण होता है।

होमत्तिलघृताद्यैश्च धर्मकामार्थ मोक्षदः। पूजामन्त्रान्पठेद्यस्तु भुक्त भोगोदिवं व्रजेत्॥

—आग्ने॰ पु॰अ॰ 21 श्लो॰ 27

अर्थ—तिल-घृतादि का हवन धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष देने वाला है। अपनी पूजा के मन्त्रों का पठन यानी जप करने वाला इस विश्व के भोग्य पदार्थों का उपभोग कर दिव्य लोकों को जाते हैं।

कदम्ब कलिका होमाद्यक्षिणी सिध्यतिध्रुवम्। बन्दूक किंशुकादीनि वश्याकर्षाय होमयेत्॥ बिल्वं राज्याय लक्ष्म्यर्थं पाटलाँञ्वम्पकानपि। पद्मानि चक्रवर्तित्वे भक्ष्य भोज्यानि सम्पदे॥

दूर्वा व्याधिविनाशाय सर्वसत्व वशी कृतेः। प्रियंग पाटली पुष्पं चूतपत्रं ज्वरान्तकम्॥

मृत्युञ्जयो मृत्यु जितस्याद् वृद्धि स्यात्तिलहोमतः। रु द्रशान्तिः सर्वशान्त्या अथ प्रस्तुत मुच्यते॥

—आग्ने॰ पु.अ.81 श्लोक 46/52

अर्थ—कदम्ब की कलियों के हवन करने से निश्चय पूर्वक यक्षिणी सिद्ध होती है। किसी को वश करने के लिये बन्दूक किंसुकादि का हवन करना चाहिए।

राज्य प्राप्ति के लिये विल्ब-फलों का हवन करना चाहिए।

लक्ष्मी प्राप्ति के लिये पाटल और चम्पक का हवन करना चाहिए।

भक्ष्यभोज्य, सम्पत्ति और चक्रवर्ती राज्य के लिये कमलों का हवन करना चाहिए।

व्याधि-नाश के लिये दूब का, सब जीवों को वश करने के लिये पाटल पुष्पों का, ज्वर दूर करने के लिये आम के पत्तों का अकालमृत्यु से बचने के लिये मृत्युञ्जय मन्त्र से हवन, वृद्धि के लिये तिलों का हवन करना चाहिए। रुद्र की शान्ति करने से सब की शान्ति हो जाती है।

सर्वदाहोम जष्याथैः पाठाद्यैश्च रणेजयः। अष्टा विंशभुजाध्येया असिखेटकवत्करौ॥

—आग्ने. पु अध्याय 134 श्लोक

अर्थ—हमेशा हवन, जप और पाठ आदि से युद्ध में जय होती है। यज्ञ करते समय, हाथों में खंग और खेटक धारण किये अट्ठाइस भुजाओं वाली दुर्गा देवी का ध्यान करना चाहिए।

श्रीकामः शान्तिकामो वा ग्रह यज्ञं समारभेत्। वृष्टयायुः पुष्ठिकामो वा तथैवाभिचरन्पुनः॥

-आ॰ पु अ॰ 168 श्लोक॰ 1

अर्थ—लक्ष्मी की कामना करने वाला अथवा शान्ति की कामना करने वाला, ग्रहों का हवन करें। वृष्टि, आयु, अथवा वृष्टि की कामना करने वाला उसी प्रकार नवग्रहों का हवन करें।

श्रीगेहे विष्णु गेहे वा श्रियं पूज्यं धनं लभेत्। आज्याक्तै स्तण्डुले लक्षि जुहुयात्खदिरानले॥

राजावश्यो भवेद्वृद्धिः श्रीञ्चस्यादुत्तरोत्तरम्। सर्पपाम्भोऽभिपेकेण नश्यते सकला ग्रहाः॥

—आ॰पु॰अ॰307 श्लोक॰ 3,4

अर्थ—लक्ष्मी के मन्दिर में अथवा विष्णु के मन्दिर में लक्ष्मी जी की यज्ञ से पूजा करके धन को प्राप्त करे। घी से मिले हुए चावलों से खैर की अग्नि में एक लाख हवन करने से राजा वश में होता है और उत्तरोत्तर लक्ष्मी की वृद्धि होती है।

सरसों और पानी के अभिषेक करने से सब ग्रह नष्ट हो जाते हैं।

संसाध्येशानमन्त्रेण तिलहोमो वशीकरः। जयःपद्मैस्तु दूर्वाभिः शान्तिकामःपलाशजैः॥

पुष्टिस्यात्काक पक्षेण मृतिर्द्वेपादिकं भवेत्। महक्षुद्रभयापर्ति जर्वमेव मनुर्भवेत्॥

—आग्ने॰ पु॰ अ॰ 386श्लोक॰ 20,21

अर्थ—सिद्ध किये हुए ईशान मन्त्र से तिलों का हवन करने से सब वश में होते हैं। कमलों के हवन से जय की प्राप्ति होती है। शान्ति की कामना वाला दूब का हवन करें। पलाश के फूलों का हवन करने से पुष्टि होती है। काक पक्ष से सब दोषादि को का अन्त होता है। क्षुद्रग्रह, भय, आपत्ति, मानो सब ही नष्ट हो जाती है।

पुष्पं क्षिपाययेच्छिश्य मानयेदग्नि कुण्डकम्।यवैद्धान्यैस्तिलै राज्यै मूलविद्या शतं हुनेत्।स्थावरत्वं पुरा होमं सरीसृपमतः परम।पक्षिमृग पशुत्वं च मानुष ब्राह्ममेव च॥विष्णुत्वञ्चेव रु द्रत्वमन्ते पूर्णाहुतिर्भवेत्। एकयाचैवह्याहुत्या शिष्यस्याद्दीक्षितो भवेत्॥मोक्षं यतिपरं स्थानं यद्गत्वा न निवर्त्तते।यथा जले जलं क्षिप्तं जलंदेही शिवस्तथा॥ अर्थ—पुष्पों का क्षेपण करावे शिष्य से अग्नि मंगावे, यव, धान्य, तिल, घी इत्यादि के द्वारा मूल मन्त्र से सौ आहुति दे।

पहिले स्थावरो के लिये हवन करे, फिर सरीसृपों में के लिये, फिर पक्षी, मृग, पशुओं के लिये, मनुष्यों के लिये और ब्रह्म के लिये हवन करे, विष्णु के लिये रुद्र के लिये हवन करे, अन्त में पूर्णाहुति दे।

एक ही आहुति से शिष्य दीक्षित हो जाता है। इस प्रकार पर स्थान जो मोक्ष है, उसको प्राप्त होता है, जहाँ जाकर प्राणी लौटता नहीं। जिस प्रकार जल में जल को डालने से अलग नहीं होता, उसी प्रकार यह देही जल है और शिव भी जल रूप है देही रूपी जल शिव रूपी जल में मिलकर पुनः नहीं लौटता।

शतचण्डी विधि में कुछ हवनों का वर्णन इस प्रकार है:—

ॐ भूर्भुवः स्वः महाज्वालाय विद्महे। अग्नि देवाय धीमहि। तन्नः अग्नि प्रचोदयात्॥

इस अग्नि गायत्री के साथ विभिन्न हव्य पदार्थों के साथ होम करने से, उनके जो परिणाम होते हैं, उनका विवरण यह है।

पलाशीभिरवाप्रोति समदर्भिब्रह्म वर्चसम। पलाश कुसुमैर्हुत्वाँ सर्वमिष्टेमवाप्नुयात्॥

पलास की समिधाओं से हवन करने पर ब्रह्मतेज की अभिवृद्धि होती है और पलाश के कुसुमों से हवन करने पर सभी इष्टों की सिद्धि होती है।

यवानाँ लक्ष होमेन घृतकार्ये हुताशने। सर्वकाम समृद्धात्मा पराँ सिद्धिमवाप्नुयात्॥

यवों में घी मिलाकर एक लाख बार अग्नि में आहुति देने से सब कर्मों की सिद्धि होती है तथा परा सिद्धि प्राप्त होती है।

ब्रह्म वर्चस कामास्तु पयस्त जुहुयात्तथा। घृत प्लुतैस्तिलैर्ब्रींहं जुहुयात्सु समाहित॥

ब्रह्म तेज की कामना करने वाला व्यक्ति सावधानी के साथ, घृत युक्त तिलों से और घी से हवन करे।

गायव्युत होमाञ्च सर्वपापैः प्रमुच्यते। पापात्मा लक्ष होमेन पातेकभ्यः प्रमुच्यते॥

एक लाख आहुतियों से गायत्री द्वारा हवन करने से पापी मनुष्य भी बड़े से बड़े पापों से छूट जाता है।

विधिपूर्वक स्थापित हुई अग्नि में, तीन बार मधु से भिगोये हुए हविष्य, दाक्षा, केला, मातुलिग, ईख, नारियल, तिल, जातीफल, आम तथा अन्य मधुर द्रव्यों से दस आवृत्ति सप्तशती के प्रत्येक मन्त्र से हवन करें और एक सहस्र नवार्ण मन्त्र से भी हवन करे। फिर आवरण देवताओं के लिये, उनके नाम मन्त्रों द्वारा हवन करके यथोचित रूप से पूर्णाहुति दे। तत्पश्चात् ब्राह्मणवृन्द देवताओं सहित अग्नि का विसर्जन करे। यजमान को कलश के जल से अभिषिक्त करे। इस प्रकार करने से पर जगत् अपने वश में होता है और सभी उपद्रव नष्ट हो जाते हैं।

इस प्रकार के अगणित प्रयोग शास्त्रों में भरे पड़े हैं। यदि इनका पूरा विधान उपलब्ध हो सके, खोजा जा सके तो भारत भूमि पुनः प्राचीन काल की तरह स्वर्ण भूमि बन सकती है। इस शोध कार्य के वैज्ञानिक अनुसंधान-प्रणालियों के लिए अपने जीवन को खपा देने वाले सच्ची लगन के निष्ठावान् व्यक्ति यों की आज भारी आवश्यकता है।


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