(श्री ज्वालाप्रसाद गुप्त एम. ए.)
“चार चीजों का सदा सेवन करना चाहिए— सत्संग, सन्तोष, दान और दया।”
“चार अवस्थाओं में आदमी बिगड़ता है। इस लिये इनमें सदा सावधान रहना चाहिये—जवानी, धन, अधिकार और अविवेक।”
“चार गुण ग्रहण करने योग्य हैं-धन में पवित्रता, दान में विनय, वीरता में दया और अधिकार में निरभिमानता।”
“चार चीजों पर भरोसा मत करो—बिना जीता हुआ मन, शत्रु की प्रीति, स्वार्थी की खुशामद और बाजारू ज्योतिषियों की भविष्य-वाणी।”
“चार चीजों पर भरोसा रक्खो-भगवान,सत्य पुरुषार्थ और स्वार्थहीन मित्र।”
“चार बातों को याद रक्खो बड़े, बूढ़ों का आदर करना, छोटों की रक्षा और उन पर स्नेह करना, बुद्धिमानों से सलाह लेना और मूर्खों के साथ कभी न उलझना।”
“चार चीजें पहले दीखती हैं, परन्तु परवाह न करने से बहुत बढ़कर दुःख के गड्ढे में डाल देती हैं—अग्नि, रोग, ऋण और पाप।”
“चार चीजें मनुष्य को बड़े भाग्य से मिलती हैं- भगवान् को याद रखने की लगन, सन्तों की संगति, चरित्र की निर्मलता और उदारता।”
“चार चीजें जाकर फिर नहीं लौटती-मुँह से निकली हुई बात, छूटा हुआ तीर, बीती हुई उम्र और मिटा हुआ अज्ञान।”
चार के संग से बचने की चेष्टा रक्खो नास्तिक, अन्याय का धन, जवान स्त्री, और दूसरे की बुराई।”