नवरात्रि गायत्री उपासना के लिए परम पुनीत समय है। ठीक समय पर हुई वर्षा, समय पर बोई हुई कृषि, जिस प्रकार विशेष फलवती होती है, उसी प्रकार नवरात्रि के समय की हुई साधना भी अन्य समयों की अपेक्षा अधिक फलवती होती है। जैसे दिन और रात्रि का मिलन काल ‘सन्ध्या समय’ कहलाता है और उस समय अध्यात्मिक पूजा उपासना अधिक उपयुक्त रहती है उसी प्रकार शीत और ग्रीष्म ऋतु की मिलन वेला आश्विन तथा चैत्र की नवरात्रि होती है। वैद्य लोग उदर रोग रक्त विकार आदि पुराने रोगों के रोगियों को इन्हीं दिनों वमन विरेचन आदि पञ्च कर्मों द्वारा शरीर की भीतरी सफाई कराते हैं। विशेष रूप से साधना करने के लिए प्रेरणा देते हैं। क्योंकि इन दिनों की हुई साधना भी अन्य समयों में की हुई बहुत बड़ी साधना के समान फलवती होती है। नवरात्रि में किया हुआ 24 हजार का लघु अनुष्ठान अन्य काल में किये हुए सवालक्ष पुरश्चरण के समान प्रभावशाली होता है।
अगली नवरात्रि चैत्र सुदी 1 शुक्रवार से लेकर चैत्र सुदी 10 शनिवार तदनुसार तारीख 25 मार्च से लेकर 2 अप्रैल 55 तक होगा। इन 9 दिनों में साधना मार्ग में रुचि रखने वालों को गायत्री उपासना के लिए कुछ समय अवश्य निकालना चाहिए। जिन्हें इन 9 दिनों प्रतिदिन एक बार सवेरे अथवा सुबह शाम दोनों वक्त, मिलकर 2॥−3 घण्टे का समय मिल सके वे 24 हजार का लघु अनुष्ठान कर लें। एक घण्टे में साधारणतः 10 मालाएँ हो जाती हैं और 9 दिन में 24 हजार जप करने के लिये 26 मालाएँ प्रतिदिन करनी पड़ती हैं जिनमें साधारणतः 3 घण्टे से अधिक समय नहीं लगता। जिन्हें इतना भी समय न मिल सके वे 1 घण्टा प्रतिदिन लगाकर 9 दिन में दस हजार जप करने का प्रयत्न तो अवश्य करें। जो समय इन दिनों साधना में लगाया जायगा वह कदापि निष्फल न जायगा।
साधना के नियम बहुत साधारण हैं। शौच स्नान से निवृत्त होकर शुद्धता पूर्वक आसन पर बैठना चाहिए। प्रातःकाल पूर्व की ओर तथा सायंकाल पश्चिम की ओर मुख रहे। जप काल में घी का दीपक या धूपबत्ती जलती रहे, जल का पात्र, पास में हो सन्ध्या करके गायत्री और गुरु का पूजन करना चाहिए, तदुपरान्त जप आरम्भ कर दिया जाय। जप समाप्त हो जाने पर पूजा के जल को सूर्य के सम्मुख चढ़ा देना चाहिए।
इन 9 दिनों ब्रह्मचर्य से रहना आवश्यक है। जिनसे बन पड़े वे उपवास भी करें। जिनसे फल दूध लेकर 9 दिन उपवास करना न बन पड़े। वे अपनी सुविधा के अनुसार भोजन सम्बन्ध में जो तपस्या बरत सकें बरतें। इन दिनों नमक छोड़ देना भी एक प्रकार का व्रत ही है। इसके अतिरिक्त भूमि शयन, चमड़े का त्याग, पशुओं की सवारी का त्याग, अपनी शारीरिक सेवाएँ स्वयं करना, अपनी हजामत, कपड़े धोना, भोजन बनाना आदि सेवाएँ किसी और से न लेने आदि के व्रत जिनसे निभ सकें वे उन्हें भी निभाने का प्रयत्न करें। जितनी तपस्या जिनसे बन पड़े उतना ही उत्तम है। जिनसे यह कुछ न बन पड़े वे ब्रह्मचर्य पालन का नियम अवश्य रखें।
मथुरा पधारिये:− जो लोग विशद् गायत्री महायज्ञ में शामिल हैं वे अपनी भागीदारी का शताँश हवन करके इसी पुनीत पर्व पर मथुरा आवें तो बहुत उत्तम है। नवरात्रि में यहाँ रह कर एक 24 हजार का अनुष्ठान और हवन करना अनेक गुना महत्वपूर्ण है। जिन्हें अवकाश एवं सुविधा हो वे घर पर साधना करने की अपेक्षा मथुरा आने का प्रयत्न करें। जिनकी गोदी में बहुत छोटे बच्चे न हों वे स्त्रियाँ भी आ सकती हैं। गत नवरात्रि की भाँति इस चैत्र की नवरात्रि में भी 4 दिन निकटवर्ती तीर्थों की सामूहिक यात्रा का कार्यक्रम रखा जायगा। मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, महावन, दाऊजी, नन्दगाँव, बरसाना, गोवर्धन, राधाकुण्ड, जतीपुरा आदि दर्शनीय स्थानों को सुविधा पूर्वक दिखाने की व्यवस्था कर दी जाती है और एक साथ मोटर किराये कर लेने पर 5) से भी कम भाड़ा इन सब स्थानों का पड़ता है। देश के कौने कौने से आने वाले उपासकों के अनुभव सुनने, इस विद्या के ज्ञाता विशेषज्ञों का सत्संग करने एवं महत्व पूर्ण शिक्षा दीक्षा ग्रहण करके शंका समाधान एवं यज्ञोपवीत लेने आदि की दृष्टि से भी नवरात्रि में मथुरा आना बड़ा उपयोगी रहता है। जो आ सकते हों वे अभी से आने की तैयारी करें। तपोभूमि में ठहरने की तथा सात्विक भोजन की समुचित व्यवस्था रहती है। परन्तु आने से पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर लेना आवश्यक है। बिना स्वीकृति के आये हुए व्यक्ति यों के लिए किसी प्रकार की जिम्मेदारी हमारी न होगी।
जो लोग मथुरा न आ सकें वे अपन घर ही अनुष्ठान करें। 24 हजार अनुष्ठान के लिए 240 आहुतियों का हवन आवश्यक है। बिना हवन का अनुष्ठान अधूरा रहता है। जो मथुरा आकर हवन न कर सकें उनकी सूचना आने पर यहाँ विशद् गायत्री महायज्ञ में उनकी ओर से आहुति दी जा सकती हैं। हवन में एक पैसा प्रति आहुति के हिसाब से खर्च पड़ता है। अनुष्ठान करने वाले यदि पूर्व सूचना भेज देंगे तो उनकी साधना में रही हुई त्रुटियों का दोष परिमार्जन तथा संरक्षण यहाँ पर किया जाता रहेगा।
नवरात्रि का समय आध्यात्मिक दृष्टि से बड़ा ही अमूल्य है इस समय का सदुपयोग करने में विज्ञ सज्जनों को पीछे नहीं रहना चाहिए। जिन के मन में गायत्री उपासना में स्थिर निष्ठा न हो वे केवल परीक्षा के रूप में भी साधना करके देखें तो उन्हें निश्चित रूप से आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलेगा। जितना समय इस साधन में लगा है उसकी अपेक्षा कहीं अधिक मूल्य का सत्परिणाम उपलब्ध होने की पूरी आशा की जा सकती है।
जिन्हें पूरा गायत्री मन्त्र याद न हो या समय की कमी हो वे पञ्चाक्षरी गायत्री (ॐ भूर्भुवः स्वः) का 24 हजार अनुष्ठान कर सकते हैं। इसकी 26 मालाएँ प्रायः एक घण्टे में हो जाती हैं। प्रतिदिन 12 पाठ के हिसाब से 9 दिन में 108 गायत्री चालीसा का अनुष्ठान भी हो सकता है।
इस वर्ष गायत्री उपासना से दुहरा लाभ है। साधारण रीति से नवरात्रियों अथवा अन्य समयों में साधना प्रायः सभी श्रद्धालु उपासक करते हैं पर इस बार वह साधना विशद् गायत्री महायज्ञ की भागीदारी में जुड़ जाने से दुहरा लाभ उत्पन्न करती है। यों विशद् गायत्री महायज्ञ में गायत्री परिवार के सभी सदस्य उत्साह पूर्वक भाग ले रहे हैं पर जिन्हें सुविधा एवं अवकाश की कमी हो वे यज्ञ काल के सवा वर्ष में आने वाली तीन नवरात्रियों में तीन अनुष्ठान करके तीन भागीदारी तो बड़ी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। जो अधिक भागीदारी न ले सकते हों उन्हें इन तीन नवरात्रियों में तीन शेयर लेने का प्रयत्न तो अवश्य ही करना चाहिए।
ब्रह्मदान की आवश्यकता:− अनुष्ठान के तीन भाग होते हैं (1) जप (2) हवन (3) दान। तीनों अंगों की पूर्ति होने से ही गायत्री उपासना पूरी मानी जाती है। प्रत्येक शुभ कार्य के अन्त में ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। ब्रह्म परायण व्यक्ति यों को अन्नदान का प्रयोग ही “ब्राह्मण भोजन” कहलाता है। आज कल न तो ऐसे ब्राह्मण ही मिलते हैं जो ब्रह्मपरायण हों, जिन्हें भोजन कराने से वस्तुतः पुण्य फल प्राप्त हो। दूसरे अब लोगों की आर्थिक स्थिति भी दिन दिन दुर्बल होती जा रही है इसलिए जिन कार्यों में खर्च का प्रसंग आता है उनमें अभिरुचि का घटना स्वाभाविक ही है। इसलिये ब्रह्मभोज का एक बहुत ही सरल, साथ ही अत्यंत महत्वपूर्ण तरीका यह है कि जितने ब्राह्मण भोजन कराने हों उतने “गायत्री अंक” अपने आस पास के सत्पुरुषों को−अपने स्वजन सम्बन्धियों को−भेंट कर देने चाहिए। यह यज्ञ का सर्वश्रेष्ठ प्रसाद वितरण है। गायत्री अंक का मूल्य असली लागत से भी बहुत कम केवल दो आना मात्र रखा गया है।
अन्नदान से किसी की केवल कुछ घण्टों तक पेट की भूख ही बुझ सकती है पर इस ज्ञानदान से यदि किसी की आत्मा पर कुछ प्रभाव पड़ गया तो उसका कल्याण ही हो सकता है। उस कल्याण के पुण्य में इस ज्ञानदान का कर्ता भी भागीदार होगा। इसीलिए अन्नदान से ब्रह्मदान का पुण्य शास्त्रकारों ने सौगुना अधिक बताया है। जो सज्जन नवरात्रि में कुछ साधना करें वे ब्रह्मभोज के रूप में कुछ “गायत्री अंक” अवश्य दान करें। जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत बुरी नहीं है वे 5) मूल्य के 40 अंक मँगा लें। जिन्हें इतना खर्च कठिन प्रतीत होता हो वे कम से कम 10 अंक तो अवश्य ही मँगा लें। सवा रुपये में दस ब्राह्मणों को भोजन कराने का श्रेय प्राप्त करना कुछ बहुत बड़ा बोझ नहीं है। इसे हर कोई बड़ी आसानी से कर सकता है। विशद् गायत्री यज्ञ के भागीदारों का जप हवन तो होता ही है उनका ब्राह्मण भोजन यह “गायत्री अंक” का दान ही है। 125 करोड़ जप, 125 लाख हवन का शताँश सवालाख ब्रह्मभोज भी इस गायत्री अंक द्वारा ही होगा सो प्रत्येक भागीदार को प्रत्येक अनुष्ठान पीछे 24 नहीं तो थोड़े बहुत अंक ब्रह्मभोज की दृष्टि से मँगाने ही चाहिए।
हवन और ब्रह्मभोज में कुछ धन व्यय होने की कठिनाई देखकर किसी को भी नवरात्रि के पुण्य पर्व पर साधना से वञ्चित रहने की आवश्यकता नहीं है। बिना कुछ भेजे भी सूचना मिलने पर हवन यहाँ कर दिया जा सकता है। इसी प्रकार जितने अंकों की आवश्यकता हो पत्र भेजते ही उतने गायत्री अंक भेजे जा सकते हैं। इनका पैसा फिर कभी जब सुविधा हो तब भेजा जा सकता है। महायज्ञ की भागीदारी के लिए इन नवरात्रियों में साधना करना अतीव श्रेयष्कर है। यह अलभ्य अवसर है इस लाभ से वञ्चित रहना उचित नहीं। इसलिए न करने की अपेक्षा हवन तथा ब्रह्मदान के लिए कुछ उधार कर लेना भी बुरा नहीं है।
संस्कृति शिक्षा का आरम्भः−सुसंस्कृत समाज की स्थापना के लिए वेदोक्त विधि से संस्कार डालने की आवश्यकता होती है। प्राचीन काल में जब ठीक प्रकार संस्कार किये जाते थे। तब घर घर में सुसंस्कृत मनुष्य होते थे। आज इन संस्कारों की विधि व्यवस्था के अभाव में घर घर कुसंस्कारी स्त्री पुरुष भरे हुए हैं। अपने देश और जाति को ऊँचा उठाने के लिए हमें ऋषि प्रणीत संस्कार पद्धति का प्रयोग करना होगा। तभी हम अपने घरों में सुसंस्कृत व्यक्ति देख सकेंगे और तभी सच्ची भारतीय संस्कृति के दर्शन हो सकेंगे। शास्त्रोक्त विधि से विवाह यज्ञोपवीत आदि षोडश संस्कार करने वाले, उन संस्कारों में प्रयोग हुए मन्त्रों एवं विधानों का रहस्य समझाने वाले ऐसे निस्वार्थ पण्डितों की आजकल बड़ी कमी है, जो दक्षिणा की प्रधानता न देकर यजमान के हित का ध्यान रखें और जो कुछ मिल जाय उसी में सन्तुष्ट होकर यजमान के परिवार को सुसंस्कृत बनाना अपना कर्त्तव्य समझे। यों पण्डित लोग विवाह आदि संस्कार कराते हैं पर उसमें शास्त्रीय पूर्णता न होने के कारण वह प्रभाव नहीं पड़ता जो पड़ना चाहिए।
इस कमी को पूरा करने के लिए गायत्री तपोभूमि में कर्मकाण्ड की शास्त्रोक्त शिक्षा देने की व्यवस्था की गई है। जन्म से लेकर मृत्यु के अंत्येष्टि संस्कार तक के पूरे विधान तथा रहस्य सिखाने की व्यवस्था की गई है साथ ही अनेक प्रकार के यज्ञों की पद्धतियाँ, महामृत्युञ्जय, निर्वाण गायत्री आदि मन्त्रों के पुरश्चरणों के गुप्त विधान भी सिखाये जावेंगे। जिन्हें सीख कर कोई व्यक्ति अपना और दूसरों का बहुत हित साधन कर सकता है।
इस शिक्षा में 18 वर्ष से अधिक आयु के, कुछ संस्कृत जानने वाले, स्वस्थ, निर्व्यसनी, अनुशासन में रहने वाले सद्गुणी शिक्षार्थी ही लिए जावेंगे। जो छात्र अपना भोजन भार स्वयं न उठा सकेंगे उनके भोजन की व्यवस्था भी यहाँ कर दी जावेगी। शिक्षा काल एक वर्ष होगा। शिक्षा अगले मास से आरम्भ हो जावेगी। जो आना चाहें वे अपना पूरा परिचय भेजकर स्वीकृति प्राप्त करें और तब आवें। अखण्ड ज्योति के पाठकों का कर्त्तव्य है कि वे अपने समीप इस प्रकार की अभिरुचि के जो छात्र देखें उन्हें मथुरा पढ़ने आने के लिए प्रेरणा करें।