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April 1955

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—मनुष्य की सचाई का एक मात्र निर्णयात्मक प्रमाण यह है कि वह अपने सिद्धान्तों के लिए सब कुछ स्वाहा कर देने को तैयार रहे।

—साधारण योग्यता को बुद्धिमानी के साथ काम में लाने से प्रशंसा होती है। उससे इतनी सफलता मिलती है जितनी वास्तविक चमक में नहीं होती।

—आत्मविश्वास की कमी ही हमारी बहुत−सी असफलताओं का कारण होती है। शक्ति के विश्वास ही में शक्ति है। जिन्हें अपने ऊपर विश्वास नहीं, वे सबसे अधिक निर्बल हैं, चाहे कितने ही बलवान क्यों न हों।

—“तुम उतने ही जवान हो जितना तुम्हें विश्वास है, और उतने ही बूढ़े हो जितना तुम्हें सन्देह है।”

—“तुम उतने ही जीवन हो जितनी तुम में आत्मदृढ़ता है और उतने ही बूढ़े हो जितना तुम्हें भय है।”


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