सफलता का राजमार्ग

April 1955

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(श्री आर्थर एस. बेस्ट)

व्यक्ति यों की संख्या बहुत ही अधिक है जो यह समझते हैं कि परिस्थितियाँ उनकी अनुकूल नहीं हैं और उन्हें उन्नति करने का अच्छा मौका नहीं मिल रहा है। वास्तविक कठिनाई यह है कि जीवन संघर्ष में वे साधारण लोगों की तरह हो गये है—उन्होंने कठिनाइयों से ऊपर उठने की कोशिश ही नहीं की है और स्वयं अपना अस्तित्व ही मिट जाने दिया है।

हमें इस प्रकार की असफलता का कारण ढूँढ़ निकालने की कोशिश करनी चाहिये क्योंकि यह वाकई एक बहुत बड़ा दुःख है।

असफलता का यह कारण ढूंढ़ते वक्त देखा गया है कि कुछ में इच्छा शक्ति की कमी होती है। वह जीवन−रण में बहुत आसानी से हरा दिये जाते हैं।

कुछ व्यक्ति इसलिए असफल होते हैं कि उनमें मान, प्रतिष्ठा, उन्नति आदि की कोई इच्छा नहीं होती। जो कार्य वे करते हैं, उसका सिवाय इसके कि उससे खाने पीने का सामान, कपड़े और थोड़े से आराम का प्रबन्ध होता है और कोई भी अर्थ नहीं होता।

अनेक व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी के कारण असफल होते हैं। वे अपने गुणों में पूरी तरह विश्वास नहीं रखते और अपनी परीक्षा होने से डरते हैं। वे जिम्मेदारी के नाम से ही काँप जाते हैं।

सबसे ज्यादा मनुष्य जीवन में अपने सामने कोई लक्ष्य अथवा ध्येय न होने के कारण असफल होते हैं। उनके सामने कोई लक्ष्य नहीं होता और वे मामूली तौर से ही जीवन−यापन करने में सन्तुष्ट रहते हैं।

यदि तुम सफलता प्राप्त करना चाहते हो, वह सफलता अपने व्यापार को पूरी ऊँचाई पर ले जाने की हो या अपने घर को एक आदर्श घर बनाने की हो, तो तुम्हारे सामने कोई निश्चित लक्ष्य होना चाहिए।

केन्द्रित विचार और स्फूर्ति को किसी कार्य की पूर्ति के लिए पूरी तरह लगाने का मतलब ही लक्ष्य है।

कोरे स्वप्नों, निरर्थक इच्छाओं और केवल प्रस्तावों से कुछ नहीं बनता।

यदि एक मनुष्य के सामने कोई चुना हुआ लक्ष्य है और वह इच्छा और शोक से भरा है तो उसके लिये उन्नति करने के असंख्य मौके हैं।

केवल कठिनाइयों के कारण ही निश्चित लक्ष्य वाले व्यक्ति अपनी कोशिशों से नहीं डिगाये जा सकते, बल्कि कठिनाइयाँ पड़ने पर वे और अधिक उत्साह से उनका सामना करने को तैयार हो जाते हैं।

अपने सामने कोई निश्चित ध्येय अथवा रास्ता होना चाहिए। उसे इसको बिलकुल पूरी तरह जानना चाहिए, यहाँ तक कि वह उसे कागज पर लिख सके। ऐसा करने से वह समय समय पर की गई अपनी उन्नति को अनुभव कर सकेगा और भूलों को सुधारकर परिवर्तन भी कर सकेगा।

यदि तुम्हारे सामने एक निश्चित काम है, तो स्वयं अपने हृदय से पूछो कि क्या यह वाकई निश्चित और महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है अथवा केवल क्षणिक ही, जो कि शीघ्र ही मिट जाने वाला है?

क्या यह लक्ष्य तुम्हें काम करने को मजबूर करता है, विचारों को बढ़ाता है, जोश दिलाता है, विश्वास बँधाता है, साहस और पक्का निश्चय पैदा करता है।

केवल एक निश्चित ध्येय होने का अर्थ यह नहीं कि तुम अवश्य ही सफलता प्राप्त करोगे, लेकिन सामने लक्ष्य होने से उस दिशा में तुम्हारे प्रयत्न बढ़ जायेंगे और तुम अधिक काम कर सकोगे।

ध्येय निश्चित होने पर तुम उसकी प्राप्ति में लग जाते हो। यह सबसे आवश्यक और महत्वपूर्ण है। यह तुम्हारी योग्यता, साहस, सहनशक्ति और स्फूर्ति को ललकारता है और अधिक काम पर लगाता है।

किसी एक निश्चित ध्येय की प्राप्ति का पक्का विचार कर लो। एक मनुष्य ने कहा है—“महत्वपूर्ण यात्रा में जहाज का डूब जाना, निरर्थक जीवन को इधर उधर थिथले पानी में खोने से कहीं अच्छा है।”

मिस जेनेली, भूतपूर्व मिश्र मन्त्री पार्लियामेंट, अपनी सफलता के तत्व को लिखती हुई कहती हैं—“मेरे लिए सौभाग्यवान होने का मतलब ऐसे काम अथवा लक्ष्य का पूरा होना, जिसमें मनुष्य पूरा विश्वास रखता है, जो किए जाने योग्य है अथवा जिसको पूरा करने में उसकी तमाम शक्तियाँ केन्द्रित होकर लग जाती हैं। मैं इसमें विश्वास नहीं करती कि प्रसन्नता भी कोई ऐसा ध्येय है जोकि स्वयं ही मिल जाये, वरन् ठीक प्रकार से जीवन व्यतीत करने के फलस्वरूप ही प्रसन्नता मिलती है।”

अपने जीवन के ध्येय अथवा लक्ष्य को मालूम करने में अपनी तमाम शक्तियाँ केन्द्रित कर दो, क्योंकि उसी लक्ष्य में तमाम शक्तियाँ छुपी हुई हैं।

जीवन को सफल बनाने के लिए तीन बातें बहुत जरूरी हैं।

1—आत्म−खोज सफलता के लिए आवश्यक है। अपने को जानने और समझने का मतलब जीवन में अवश्य आने वाली तमाम कठिनाइयों और निराशाओं से अपने को सुरक्षित रखना है।

क्षण भर के लिए उन सब भावों, विचारों, इच्छाओं एवं कार्यों पर जिन पर कि तुम्हारा अस्तित्व निर्भर है दृष्टिपात करो। याद रखो, वही सफलता अथवा असफलता का निश्चय करते हैं।

तुम घृणा, भय, सन्देह, चलन, कटुता, अनमनापन, प्रेम, साहस, विश्वास, इरादा, ध्यान, प्रशंसा, प्रसन्नता, हिम्मत से जितने अधिक प्रभावित होगे, उतनी ही तुम्हारी सफलता भी। सफलता इन सब गुणों पर काफी हद तक निर्भर है।

हम सब में अनजाँची शक्ति और बेमालूम कमजोरी बहुत अधिक है। हम अपनी ताकत का, जोकि बहुत कुछ कर सकती है अनुभव नहीं कर सकते।

तुम स्वयं अपने को पूरी तरह से जानने और आत्म विश्लेषण के प्रयत्न में निडर और ईमानदारी से लगे रहो, सफलता तुम अवश्य अपने निकट पा सकोगे।

2—आत्म−नियन्त्रण सफलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इससे उत्पन्न अच्छी आदतें शरीर स्वस्थ रखती हैं।

कोई नवयुवक पूर्ण रूपेण आत्मानुभव नहीं कर सकता जब तक कि वह शारीरिक नीति से स्वस्थ न हो।

खाने पीने से सावधानी, दाँतों की रक्षा, शरीर की सफाई, नींद की आवश्यकता का लक्ष्य तो इतना स्पष्ट है कि उन पर जोर देने की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती है। तो भी कुछ ऐसे नवयुवकों को जानता हूँ जो अपने मोटर के इञ्जिन की अपने शरीर से कहीं अधिक परवाह करते हैं और ऐसी युवतियाँ भी हैं, जिन्हें स्वास्थ्य की अपेक्षा साड़ी की अधिक फिक्र है।

वातावरण एवं पुश्तैनी आदतों से रक्षा करने के लिए सत्य ज्ञान के सहारे अपने भावों एवं इच्छाओं का ठीक नियन्त्रण बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।

तुम्हारे अन्दर अपनी आदतों और क्रोध को पचा लेने की शक्ति होनी चाहिए।

कुछ तरुणों ने दिन का काम बुरी भावना एवं क्रोध में प्रारम्भ करने की आदत डाल ली है। यह सफलता के लिए बहुत बाधक है। वास्तव में आत्म नियन्त्रण ठीक तरह रहने का तत्व है।

3—आत्म−स्पष्टीकरण—सफलता प्राप्त करने के लिए तुम में अपने को दूसरों पर पूरी तरह जाहिर करने की शक्ति होनी चाहिए।

यदि तुम अपने को पूरी तरह जाहिर कर सकते हो और स्पष्टीकरण की इच्छा को पूरा करने की जिम्मेदारी को मंजूर करते हो तो तुम्हारी यह योग्यता वाकई बहुत महत्वपूर्ण है।

तुम्हें अपने काम में पूर्णरूपेण दक्ष होना चाहिए। बारीकियों पर ध्यान देना दक्षता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, परन्तु इन्हीं बारीकियों पर ध्यान नहीं देते।

बाहरी सूरत शक्ल और वेश विन्यास भी आत्म स्पष्टीकरण में बहुत उपयोगी हैं। बाहरी शक्ल के देखने से ही जीवन की बारीकियों की तरह दिये गये ध्यान का पता चल जाता है। योग्य और उन्नत आदमियों के साथ लगातार रहने पर मैंने उनको भी अपनी वेष भूषा पर काफी ध्यान देने वाला पाया है। इसका मतलब यह नहीं है कि तुम रात−दिन फैशन में डूबे रहो, बल्कि यह कि हौलूपन से बचो और साफ स्वच्छ−व्यवस्थित रहो।

जो कुछ तुम कहो तुम्हारे लिए बन्धन स्वरूप होना चाहिए। भविष्य के लिए कोई भी बात भयावह नहीं है जितनी अपने शब्दों को पूरा न करना। तुम जो वायदा करो उसे अवश्य पूरा करो।

अब तुम आत्म−खोज, आत्म−नियन्त्रण और आत्म−स्पष्टीकरण के महत्व को पहचान लोगे, तो तुम निश्चित रूप से सफलता के मार्ग में आगे बढ़ते चले जाओगे। सफलता से मेरा मतलब अपने को जीत लेना और मानव जीवन के किसी काम आने योग्य होना है।


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