नव युग निर्माण की जिम्मेदारी हमारी है।

April 1955

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(योगी अरविन्द)

हर एक आदमी यह कह रहा है कि अब सत् युग नहीं रहा, ईमानदारी विश्वास, सत्यता इस संसार से विदा ले गई। अब तो कलियुग आ गया है और बढ़ता चला जा रहा है। पर इस सतयुग के सम्बन्ध में किसी न विचार नहीं किया कि आखिर यह है क्या? सतयुग कोई ऐसी चीज तो है नहीं जो कि जन्म जन्मान्तर में किसी एक निश्चित समय पर ही आवेगा और फिर बहुत समय के लिए आँखों के सामने से गायब हो जायगा। सतयुग और कलियुग को तो हम अपने विचारों से स्वयं बना सकते हैं। जिस समय इस जाग्रत जीवन का अधिकार समाप्त करके मनुष्य सूक्ष्म जीवन का अधिकार समाप्त करके मनुष्य सूक्ष्म जीवन में पहुँच जाता है, कामना, वासना, संस्कार आदि से किसी भी तरह का अपना सम्बन्ध नहीं रखता इस स्थूल शरीर में अवस्था भेद के अनुसार अपने जीवन की और अवस्था भेद की समता नहीं रखता अर्थात् आधार और आधे यों के सम्बन्धों को दूर कर देगा उसी समय इस संसार में सतयुग का पुनः उदय होगा। इस पृथ्वी पर रहने वाली मनुष्य जाति मन बुद्धि और शरीर को ही सब कुछ समझती और बतलाती है। इन्हीं के चक्कर में पड़ी वह अनेक प्रकार के खेल खेला करती है। परलोक की खोज खबर वह नहीं रखना चाहती। वहाँ की चर्चा को उसने भुला दिया है। आज फिर नये सिरे से हमें उसकी चर्चा जारी करनी होगी, सोई हुई शक्ति को फिर जगाना होगा अहंकार को दबा कर रखना होगा। हम दिव्य लोक के जीव हैं, यह ज्ञान हमें फिर से पाना होना, यही सत्ययुग की स्थापना करेगा, इसीलिए हमें साधना और तपस्या करनी है। यदि इस प्रयत्न से एक बार भी हम लोग उस स्थान तक पहुँच गये तो पीड़ाओं तथा वेदनाओं से छुटकारा पाकर सिद्ध बनकर सत्य और आनन्द की लीला में प्रविष्ट होकर इस मृत्युलोक को ही स्वर्ग में बदल देंगे। सतयुग के लोग स्वर्ग लोग का पता लगा कर इस भूलोक को छोड़ कर वहाँ उस महत् लोक में पहुँचते थे। लेकिन हम लोग स्वर्ग लोक के अधिकारी बन कर इस पृथिवी को नहीं त्यागेंगे। हम इस मृत्युलोक में ही स्वर्ग की लीला का आनन्द लेंगे।

जब तक माया के फंदे से जीव नहीं छूटता है और भेद भाव के विचार मन में भरे रहते हैं तब तक उसे वास्तविक ज्ञान नहीं होता है माया के फन्दे से छूटकर और भेद भाव के विचारों को भावनाओं को निकालने पर ही उसे ज्ञान होता है, तब दिव्य दृष्टि से देखने लगता है। उसमें तथा ब्रह्म में किसी प्रकार का अन्तर नहीं रह जाता। वास्तव में समस्त ब्रह्माण्ड, यह संसार, हमारा शरीर सभी कुछ ब्रह्म मय है इसलिए इस तरह का ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर मृत्युलोक में विचरण करते हुए एक बार फिर से सतयुग की स्थापना करने का भार हम लोगों के ऊपर है जिसे कि पूरा करना है।


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