सफल जीवन (Kavita)

April 1955

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जगमग जीवन ज्योति निराली।

वह जीवन क्या जहाँ न जीवन की परिभाषा, वह मानव क्या जहाँ न मानवता की आशा, जग जाएं जन, जागरुक हो जीवन की गति, देश धर्म की ममता ही हो मानव की मति वही सफल जीवन है, जिसने जग भर की पीड़ा अपनाली॥

जगमग जीवन ज्योति निराली।

वही मनुज है जिसने मन को मानवता का पाठ पढ़ाया, वही मनुज है जिसका गौरव जगती के कण कण ने गाया, भूले और त्रस्त राही को जिसने सच्ची राह दिखाई, तल तिल गला स्वयं पर जिसने जग को जीवन सुधा पिलाई, दोनों की सेवा कर नर ने नारायण की पदवी पाली॥

जगमग जीवन ज्योति निराली। एक बार फिर अन्धकार में, मानव महा प्रकाश दिखादो, सोये नर के तन में नारायण का सेवा भाव जगा दो, पृथ्वी के कोने कोने में, जीवन का सुहाग चमका दो, चाहे जलना पड़े स्वयं पर डरो न, दीपक ज्योति जला दो, महाज्योति से ज्योति मिलादो, मिट जाये ममता तनवाली॥

जगमग जीवन ज्योति निराली


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