एक क्षण भी व्यर्थ न गँवाइए

April 1955

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(राबर्ट आर. उडीग्राफ)

सदियों से मनुष्य अपने विकास के लिए चिंतित रहा है। उसका भगीरथ प्रयत्न तो यही रहता है कि वह जीवन के सभी क्षेत्रों में पूर्ण विकास एवं सफलता प्राप्त करे। वह अपने अस्तित्व को अधिक टिकाऊ और सुविस्तृत बनाने का महत्वाकाँक्षी है। वह जाने या न जाने, उसकी स्थिति मजबूत होने से उसके समाज की रीढ़ भी पुष्ट होती रहती है और इस प्रकार व्यक्ति और समाज का विकास निरंतर अबोध गति से आगे की ओर उन्मुख होता चला जा रहा है। इस विकास के मूल में एक ऐसी भावना है जो विश्व के कर्मक्षेत्र का प्राण है—वह है काम करने की, समय का पूरा−पूरा लाभ उठा लेन की भावना। इसी भावना से अनुप्राणित होकर अगणित मस्तिष्क और अगणित हाथ−पैर इसकी अनंत साधना में दिन रात रत रहते हैं और सर्वांगीण विकास की ओर पैर बढ़ाते चले जाते हैं।

मनुष्य अपने अल्पकालीन जीवन में बहुत−कुछ कर लेना चाहता है, पर वह कुछ कर जाता है और कुछ अधूरा छोड़ जाता है। यह अधूरा काम या तो उसके उत्तराधिकारी करते हैं या और कोई। जीवन में सभी काम न कर पाने के सम्बन्ध में उसकी शिकायत रहती है—साधनों के अभाव की, अनुकूल वातावरण की, उपयुक्त सहयोग के अभाव की और सबसे बढ़कर पर्याप्त समय के अभाव की। यह ठीक है कि हम अपने सभी विचारों को ठोस रूप नहीं दे पाते, परन्तु जीवन में उतार−चढ़ाव तो स्वाभाविक ही हैं। हाँ, यदि हम दृढ़व्रती हुए तो हमारे पहले सफलता अधिक पड़ती है

और निर्बल−हृदय हुए तो हमारे पहले सफलता अधिक पड़ती है और निर्बल−हृदय हुए तो हमारे महत्त्वपूर्ण काम बिछुड़ जाते हैं और हम पथ−भ्रष्ट होकर पछताते हुए अपनी जीवन लीला समाप्त करते हैं।

क्षोभ, दुःख और पश्चात्ताप का यह वातावरण क्या संतोष, सुख और आनन्द के रूप में नहीं बदला जा सकता? उत्तर ‘हाँ’ में दिया जाता रहा है और मैं भी अपनी राय ऐसी ही कुछ रखता हूँ। पर मेरी ‘हाँ’ का तात्पर्य उस वर्ग से है, जो मिला हुआ समय व्यर्थ नहीं जाने देता और जो आलस्य, तंद्रा या अनुत्तरदायित्व के लोगों से मुत्त रहता है। दूसरा वर्ग ऐसा हो सकता है जो कर्मठ होने पर भी अपने कामों को पूरा न कर पा सकने की शिकायत करता है। शायद उसे मिले हुए समय का, अवसर का, पूरा−पूरा उपयोग करने की विधि का ज्ञान नहीं अथवा इस बात का ज्ञान होते हुए भी वह उस ज्ञान की अवहेलना करता है और समय−असमय काम करके पछताता भी है। समस्या समय−असमय या समय पर आवश्यक−अनावश्यक काम करने की है।

बहुधा ऐसे उदाहरण सामने आये हैं जिनमें कहा गया है कि यदि अवसर न चूकते तो आज और ही कुछ होते, विगत दिनों के क्षण पुनः प्राप्त हो जाय तो कुछ कर दिखाते, अब वह पौरुष नहीं रहा, वह समय नहीं रहा, अन्यथा धरती से पानी निकाल कर दिखा देते। यह तो लगभग उन सभी का कहना है जो जमाना देख चुके हैं। पर जिन्हें अभी बहुत−कुछ देखना है, जिन्हें अपने कंधों पर रखे बोझों से हल्का होना है, वे भी नहीं चेतते। उनकी तंद्रा, उनकी लापरवाही अभी तक ज्यों−की−त्यों जारी है।

कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए कहीं दूर नहीं जाना है। समय के प्रतिफल−प्रतिक्षण का हिसाब रखा जाय और अपनी−अपनी सुविधानुसार अपने−अपने कामों को पूरा किया जाय तो व्यर्थ के बखेड़े क्यों उठ खड़े हों? आए−दिन भीतर−बाहर की अशाँति का शिकार क्यों होना पड़े?

मान लीजिए, आप दिन भर काम करके थक गए हैं और अब थोड़ा−सा विश्राम करने के बाद अपने अधूरे कामों को पूरा करने के लिए, कुछ खरीदने के लिए या घूमने, मिलने−मिलाने के लिये, आप घर से निकल पड़े। रास्ते में आपको ऐसा व्यक्ति मिला जिससे मिलना निताँत आवश्यक था। पता नहीं, इसके बाद वह फिर कब या किस समय मिले? पर मुश्किल यह है कि वह व्यक्ति एक अन्य व्यक्ति से बात कर रहा है। अब न तो आप उसे बीच में टोक सकते हैं और उससे बिना बात किये चले जाना ही चाहते हैं। इसका भी कुछ ठीक नहीं कि उन दोनों की वार्ता कब तक चले। बहुत सम्भव है कि आप रुके रहें−आधे घंटे या पूरे घंटे तक। प्रश्न यह है कि क्या आप घंटे भर यों ही उन दोनों की ओर ताकते खड़े रहेंगे? आप शायद कहेंगे कि उन्हें देखकर, या उस स्थान के चारों ओर के कार्य−व्यापार पर दृष्टि डाल कर बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। कह नहीं सकता कि आपके इस कथन में कहाँ तक सत्य है, परन्तु इस कथन का कोई प्रत्यक्ष मूल्य नहीं। वह तो प्रयास करने पर अध्ययन−योग्य सामग्री प्राप्त करने पर ही सम्भव हो सकेगा। जब आपको ठहरना ही पड़ गया तब आप उस पूरे घंटे भर करेंगे क्या? क्या आपकी जेब में कुछ लिखने को है, पढ़ने को है, पूरा करने का है, या किसी अधूरी योजना पर पुनः पूरी तरह से विचार करने को है, अधूरा काम निबटाने को है? पता लगाने पर, सोचने पर, कुछ न−कुछ अवश्य निकल ही आएगा और वह ‘कुछ’ ऐसा होगा कि बिना उस स्थान से दूर गए हुए आप उसे पूरा करने में समर्थ होंगे। वास्तविक दृष्टि से समय के पूरे पूरे उपयोग की यही विधि अपनानी है, अपने जीवन में व्यवहृत करनी है।

कभी−कभी यह शिकायत आती है कि क्या 24 घंटे अपने आपको कामों की चक्की में ही पिसते रहें? वास्तव में ऐसी सलाह न तो कोई देगा और न कोई मानेगा। अपने खाली समय के प्रतिक्षण−प्रतिपल का उपयोग करने का अर्थ यह है कि आप उस क्षण में वही काम करें, जिसमें आपको रुचि है। अपना काम करने में तो रुचि होती ही है, साथ ही दूसरों को समझाने या सहायता देने का कार्य भी आपको, मेरा विचार है, रुचिकर ही होगा। आप जरा काम करके तो देखिये। बड़ा संतोष होगा। रुचि अधिकाधिक बढ़ेगी। अधिक समय तक उस कार्य में लगे रहने पर आपको थकान न मालूम पड़ेगी। आपकी सहायता प्राप्त करने के लिए आपके घर वाले, परिवार वाले ही उत्सुक नहीं हैं बल्कि घर के बाहर की दुनिया में भी सैकड़ों हजारों ऐसे हैं, जिन्हें आपकी, आपके धन की, आपके समय की आवश्यकता है। आप उनके पास, जब समय मिले, पहुँच जाइए, उन्हें बाँह पकड़कर ‘बंधु’ कह कर उठाइए, वे बिना कौड़ी के आपके अभिन्न मित्र हो जाएंगे। सवाल है काम में और उसके प्रतिपादन में, करने में, रुचि लेने का।

आप की आँखें खराब हैं। डाक्टर महोदय ने सलाह दी है कि इधर−उधर के विज्ञापनों के फेर में न पड़ कर केवल एक प्राकृतिक उपाय का प्रयोग करें। वह यह कि आँखों को हथेलियों से बंद कर लीजिए, मन−ही−मन काली−काली वस्तुओं की कल्पना कीजिए और तत्पश्चात् पूर्ववत् हो जाइए। अब यदि आप अवसर मिलते ही नित्यप्रति इस प्रयोग को पूरा करलें तो निस्संदेह समय का पूरा पूरा उपयोग होगा, साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी कर लेंगे।

आप बहुधा अपने सामने कामों की बाढ़ देख कर घबड़ा जाते हैं और यही विचारते हैं कि कौन काम कब किस समय किया जाय—समय ही नहीं मिलता। यह कहना उचित नहीं लगता। आप कई अवसर पाते हैं, पर इधर−उधर करके व्यर्थ ही उन्हें हाथ से चले जाने देते हैं। समय पाते ही काम करने की सोचिए और करके देखिए। हाँ, आपको एक बात ध्यान में रखनी होगी कि आपके अल्पकालीन जीवन में व्यर्थ की बातचीत करने का समय नहीं है। रास्ते में, अपने घर पर या किसी के भी घर पर, व्यर्थ बात न करने का आप प्रण कर लें। फिर देखिए आपको कितना समय मिलता है।

अधिकाँश माता−पिता कहा करते हैं कि वे अपने बच्चों को सिखाने−पढ़ाने के लिए समय ही नहीं पाते। पर कुछ ऐसे उदाहरण आए हैं, जहाँ माता ने रोटी पकाते−पकाते ही बालक को अनेक पाठ याद करा दिये अथवा पिता ने कपड़े पहनते−पहनते पुत्र को गणित के कई सिद्धान्त समझा दिए।

मैंने कई बार ऐसी महिलाओं तथा बालिकाओं को देखा है कि जो रेलगाड़ी, मोटर अथवा ताँगे आदि की प्रतीक्षा करते समय बच्चों या बूढ़ों के लिए कुछ-न-कुछ बुना ही करती हैं। यही बात चित्र-रेखाचित्र बनाने वैयक्तिक सेवा-भाव की महिमा बताने, दैनिक या आकस्मिक घटनाओं के निराकरण के लिए उपयोगी डाक्टरी या वैद्यकी उपाय समझाने, किसी महत्त्वपूर्ण स्थान की यात्रा करने, महान् पुरुषों के चरणों में बैठकर कुछ सीखने तथा अन्य ऐसी ही कम-से-कम समय लेने वाली बातों के सम्बन्ध में भी लागू होती है।

समय का सदुपयोग करने का तात्कालिक संतोष तो होता ही है, परन्तु मेरे जैसे कुछ ऐसे लेखक भी हैं जिन्होंने क्षणों और पलों को बटोरकर कई एक लेख लिखे हैं और पुस्तकें लिखने की योजनाएं, यात्रा की योजनाएं या अवकाश के किसी दिन का सारा कार्य-क्रम बनाने आदि में भी सफलता प्राप्त की है। इसके लिए सुबह-शाम करना या तिथियाँ निश्चित करना व्यर्थ-सा लगता है। विचार उठा, अवसर मिला और काम पूरा किया। यही मूलमंत्र है समय का पूरा पूरा उपयोग करने और विचारों को सार्थक बनाने का।


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