तुझ में छिपा हुआ वह जैसे कलि में छिपा हुआ पराग है। अथवा वीणा के तारों में जैसे पंचम राग है॥
किंतु अपरिचित तू इससे ही तुझे नहीं विश्वास है! जिसको खोज रहा अग-जग में वह तो तेरे पास है!
यह है कहता कौन कि मंदिर मस्जिद उसके धाम हैं। घट-घट वासी अगम अगोचर अन्तर्यामी राम हैं॥
जिसे प्राप्त करने का साधन आत्मा का संन्यास है! जिसको खोज रहा!
धर्म पन्थ है कठिन सुगम बस सत्कर्मों की राह है। भाग्य मौन पायेय निरंतर चलती मन की चाह है॥
अनहद स्वर तेरी वाणी को पावन हास विलास है! जिसको खोज रहा!
निज को पुनः टटोल बावले अरे भटकना व्यर्थ है। अपने को पहचान अरे तू ही तो सबल समर्थ है॥
संसृति से भी कहीं सनातन यह तेरी प्रति श्वास है! जिसको खोज रहा0!
मानव अब मानव बन, अपनी मानवता पहचान ले। तू प्रभु का सच्चा स्वरूप है इस रहस्य को जान ले॥
फैला हुआ अखिल भूतल में तेरा अमर प्रकाश है! जिसको खोज रहा0!