(सुश्री शुभा खन्ना, एम.ए.)
संभाषण कुशलता एवं वाक्पटुता के इस वर्तमान सभ्य युग में ‘आप कम बोलने की आदत डालिए, अधिक बातचीत न करिए’ शायद आपको अनुचित एवं असंगत प्रतीत होगा। किन्तु यदि आपको समाज में एक सम्मान पूर्ण एवं प्रतिष्ठित स्थान बना लेना है तो आप कम बोलिए और व्यर्थ बाते बनाना छोड़ दीजिए। पारस्परिक विचार विनिमय में शब्दों की कंजूसी करिए, अपनी जिव्हा पर अंकुश लगाइए और अपने विचारों को कम से कम शब्दों में व्यक्त कीजिए। आप देखेंगे कि आपका अधिक बकवास और निरर्थक प्रलाप करने वालों की अपेक्षा अधिक प्रभाव है। अर्थपूर्ण और संयम वाणी का प्रयोग प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक सुगम साधन समझिए।
यों भी चीख-चिल्लाहट और शोरगुल से भरे आज के विचित्र युग में चुप रहना अधिक संगतपूर्ण लगता है। जरा सोचिए नीरवता में कितना आनन्द है, कितना माधुर्य है, कितनी शान्ति है। अनेक महापुरुष नीरवता के अपरिमित आनन्द और मौन की महत्ता को स्वीकार करते आए हैं। हमारे युग के महापुरुष महात्मा गाँधी का जीता जागता दृष्टान्त हमारे सम्मुख है। शहरों के कोलाहल से ऊब कर सदा मौन, शान्त ग्रामीण वातावरण में उनका निवास रहा। कभी वर्धा की कुटिया में तो कभी सेवाग्राम के आश्रम में। प्रति सप्ताह का सोमवार उनका मौन दिवस होता था। उनका यह स्वनिर्मित अनुशासन उन्हें अपनी शक्ति संचित करने का सुअवसर देने के साथ-2 मानसिक संतुलन बनाये रहने में भी सहायक होता था। गाँधी जी का व्यक्तिगत विचार था कि मौन साधन सत्य की खोज में भी महान सहायक सिद्ध हुआ है। मौन रहकर ही ऋषियों को साँसारिक वास्तविकता का बोध हो पाया। लगभग 30 वर्ष से प्रसिद्ध महर बाबा मौन धारण किये हुए हैं, विश्व भ्रमण के लिए यंत्र तंत्र घूमने पर भी उनका विश्वास है कि वाणी की अपेक्षा हृदय की भाषा अधिक बलिष्ठ एवं प्रभावोत्पादक है। उत्तर प्रदेश के बाँदा स्थान पर स्थित बम्बेश्वर पर्वत पर निवास करने वाले महात्मन् साँसारिक माया, मोह और झूठ प्रपंच से ऊबकर संन्यासी बन गए और 20 वर्ष तक मौन साधन कर अपने योग साधन में निरत रहे। यही महात्मन् आज मौनी बाबा के नाम से विख्यात हैं और श्रद्धा और आदर के पात्र हैं।
किन्तु यह न समझिये कि मौन धारण करना निर्जीवता एवं विरक्त जीवन का द्योतक है। इस अवस्था में भी जीवन है, सजीवता है। प्रायः देखा गया है कि जो विचार, जो भावनाएँ भाषा द्वारा व्यक्त नहीं की जा सकती, मौन द्वारा भली भाँति अभिव्यक्त हो जाती हैं। मूक एवं शान्त वातावरण में हृदय का हृदय से संयोग होता है। हृदय अज्ञात भाषा द्वारा दूसरे हृदय की स्थिति, उसके भाव, उसके स्पन्दन के विषय में सब कुछ ज्ञात कर लेता है। प्रसिद्ध थियोसोफिकल सोसाइटी की संस्थापिका मैडम एच. पी. ब्लावट्स्की ने ‘मौन ध्वनि’ के विषय में बहुत कुछ कहा है।
मौन का प्रभाव अपरिमित है। प्रत्येक कला को उसने प्रभावित किया है। ललित कला की सिरमौर नृत्य कला को ही लीजिए। मूकाभिनय से विविध हाव-भाव के प्रदर्शन से नृत्यकार अपनी कला को सजीव बना लेता है। अपनी भाव भंगिमा से ही वह अपनी प्रत्येक बात को भली भाँति दर्शकों के सम्मुख रख पाने में सफल होता है। सम्भवतः वाणी के संयोग से उसे अपनी कला को इतना सजग एवं सजीव बनाने में इतनी सफलता न मिलती। प्रसिद्ध कत्थाकली नृत्य अपने मूकाभिनय की सजीवता के कारण ही आज सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है।
दैनिक जीवन में भी मौन का कुछ कम महत्व नहीं है, प्रायः देखा गया है कि शाँत रहकर एकान्त में किया गया कार्य सुन्दरता एवं सफलता से संपन्न होता है। अध्ययन को ही लीजिए। विद्यार्थी शान्त एवं एकाँत स्थान की खोज में रहते हैं क्योंकि उसी वातावरण में एकाग्रता सम्भव है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स अपने दर्शन शास्त्र के शिष्यों को एकाँत निवास का उपदेश देते रहे। उनका कथन था कि एकाँत में और भाषा से विलग होकर ही मनुष्य अपना दृष्टिकोण भली भाँति समझने में सफल होता है। हमारे देश में ही काँग्रेस के पिछले प्रधान राजर्षि टण्डन जी प्रधान पद से दिया जाने वाला अपना भाषण तैयार करने के लिए किसी अज्ञात एकान्त स्थान को चले गये थे। अधिकतर कवि अपना काव्य सृजन एकान्त कौने में बैठकर करते हैं। मौलिक एवं नवीन विचार मस्तिष्क में एकान्त चिन्तन एवं मनन के फलस्वरूप ही उपजते हैं। उस समय कोलाहल पूर्ण इस धरती से जैसे सम्बन्ध टूट सा जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मौन की बड़ी महत्ता है, उसमें महान बल है यद्यपि आज के युग में वह कम उपेक्षित नहीं है। आज प्रत्येक व्यक्ति जिव्हा द्वारा ही विश्व को जीतने की, अपना कार्य साधने की सुध लगाए है। एक बात के स्थान पर चार बात बनाने के हम अभ्यस्त हैं। प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात के तथ्यपूर्ण कथन “जो गरजता है बरसता नहीं” को जैसे हम भूल बैठे हैं। गरजने के स्थान पर बरसने की ही आदत डालिए। साथ ही यह न भूलिए कि वाणी संयम में अपार सुख है। चुप रहकर विचित्र सजीवता, ताजगी, प्रफुल्लता विश्वास का सुख उठाइए। अपनी शक्ति को व्यर्थ नष्ट होने से बचाने का एक सफल साधन होने के कारण भी मौन की महत्ता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।