गायत्री तपोभूमि तथा पूर्णाहुति की तैयारी

June 1953

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गायत्री प्रेमियों को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता होगी कि तपोभूमि का निर्माण कार्य प्रायः पूरा हो गया है। पलस्तर, सफेदी, रंग, वार्निश आदि के कुछ कार्य सम्भवतः यज्ञ के बाद हो सकेंगे। यह तीर्थ बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान पर बना है। मथुरा से एक मील आगे चलकर वृन्दावन वाली सड़क पर यह पुनीत स्थान है। पक्की सड़क बिल्कुल मंदिर से सटी हुई जा रही है। पीछे दो खेत के फासले पर पुण्य सलिला यमुना प्रवाहित हो रही है। चारों ओर अनेक ऐसे प्राचीन स्थान हैं जिनमें ऋषियों ने तपस्याएं की हैं।

तपोभूमि में थोड़े से वृक्ष पहले से लगे हुये हैं, आगामी वर्षा ऋतु में इसमें वृक्ष, पुष्प और लता पल्लवों की और भी हरियाली हो जायगी। यह स्थान ब्रजभूमि में अपने ढंग की अनोखी शोभा वाला होगा। दर्शनीय दृष्टि से भी यह स्थान बहुत ही सुरम्य, मनमोहक, शान्तिदायक एवं ज्ञानवर्धक होगा। इसमें सब और ऐसी सुन्दर शिक्षाएं अंकित रहेंगी, जिनके पढ़ने से कठोर हृदयों में भी सरस धार्मिक भावनाएं परिप्लुत होने लगें।

मंदिर के एक कक्ष में भारतवर्ष के प्रायः सभी तीर्थों का रज जल स्थापित रहेगा। अब तक करीब एक हजार तीर्थों का जल रज आ चुका है। अगले दो सप्ताह में इतने ही तीर्थों का प्रतिनिधित्व और भी आ जायगा। कुछ तीर्थ ऐसे रह जाएंगे जिनका जल रज एक दो मास से पहले आने की सम्भावना नहीं है। प्रयत्न जारी रहने से इस वर्ष के अन्त तक 2400 तीर्थों का प्रतिनिधित्व इसमें एकत्रित हो सकेगा।

125 लाख गायत्री मंत्रों की हस्तलिखित पुस्तकें अब तक यहाँ आ गई हैं। पूर्णाहुति यज्ञ तक अभी बहुत आने को हैं। यह प्रयत्न यज्ञ के बाद भी जारी रहेगा और 24 करोड़ मंत्र एकत्रित होने तक मंत्र लेखन यज्ञ देश भर में जारी रखा जायगा।

जयपुर के प्रसिद्ध कारीगरों ने गायत्री माता की प्रतिमा बहुत ही सुन्दर बनाई है। यह दिव्य प्रतिमा देखते ही बनती है। प्रतिभा की प्राण प्रतिष्ठा जेष्ठ सुदी 10 को होगी। मूर्ति जयपुर से मंदिर में आ गई है।

मंदिर के बीच के कक्ष में माता की प्रतिमा रहेगी तथा मंत्र लिखा रहेगा। बगल के एक कक्ष में मंत्रों की पुस्तकों की तथा तीर्थों के जल रज की सुसज्जित प्रतिष्ठापना रहेगी। इनका भी नित्य पूजन होता रहेगा। मंदिर के बाहरी भाग में तथा बरामदे में गायत्री महिमा सम्बन्धी श्लोक अर्थ सहित लिखाये गये हैं। इस पूजा वेदी के अतिरिक्त एक सत्संग हाल, 10 व्यक्तियों के रहने लायक अलग अलग कोठरियाँ, पक्का कुँआ, चार कमरे प्रधान कार्यक्रम के लिए बने हैं। भवन निर्माण में लगभग 26 हजार और जमीन खरीदने में लगभग 6 हजार अब तक व्यय हुआ है। अभी कुछ कार्य शेष हैं जिसमें दो तीन हजार और लग जाने की सम्भावना है।

जैसी कि आशा की गई थी वैसा ही दिव्य स्थान यह विनिर्मित हो रहा है। इतनी आसानी से ऐसा महत्वपूर्ण स्थान प्रस्तुत हो सकना एक असाधारण बात ही है। जिन लोगों का धन, श्रम, सहयोग तथा सद्भाव इस तीर्थ के निर्माण में लगा है निश्चित रूप से वह पूर्ण सार्थक माना जायगा। क्योंकि उनकी इस प्रतिकृति द्वारा अनेक आत्माओं को शक्ति, शाँति एवं सद्गति प्राप्त होगी। जिसका श्रेय इन निर्माताओं को अनन्त काल तक प्राप्त होता रहेगा। ऐसे कार्यों में सहयोग एवं सहायता देने की इच्छा एवं प्रेरणा का अनुभव किन्हीं पुण्यात्माओं को ही होता है। ऐसे कार्यों में केवल सात्विक कमाई ही लग पाती है।

इस तपोभूमि द्वारा देशव्यापी गायत्री प्रचार का कार्य होगा। साधकों के लिए यहाँ साधना करने की तथा आवश्यक शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा रहेगी। समय समय पर यहाँ विशेष साधनाएं, तपश्चर्याएं, प्रयोग, अन्वेषण तथा इस विद्या की शोध अधिक गम्भीर आयोजन होते रहेंगे। देश भर के गायत्री उपासकों को परस्पर सम्बन्धित एवं संगठित रहने का तो यह तीर्थ बहुत ही महत्वपूर्ण माध्यम रहेगा।

यों मंदिर, मस्जिदों की इस देश में कमी नहीं है, एक से एक बड़े विशाल आकार के एवं लागत के मंदिर मौजूद हैं। इनमें से कितने ही तो अपनी उपयोगिता भी खो चुके हैं। कितनों में कुप्रबंध, स्वार्थपरता तथा अवाँछनीय व्यक्तियों का प्रभुत्व होने के कारण वे जनता के लिए घृणास्पद एवं राष्ट्र के लिए हानिकारक बन गये हैं। इन्हीं कारणों से ऐसे धर्म स्थानों की उपयोगिता के बारे में बहुत संदेह एवं विरोध भी समय समय पर प्रकट होता रहता है। इसी प्रकार के मंदिरों की एक संख्या और बढ़ा देने की हमारी कोई इच्छा नहीं है। हम स्वयं विवेक, तर्क, वास्तविकता एवं उपयोगिता के उपासक हैं। इस तीर्थ के निर्माण में जहाँ अनेक आध्यात्मिक रहस्य छिपे हुए हैं वहाँ यह भी कारण है कि इस तपोभूमि को एक आदर्श बनाकर यह दिखाया जाय कि मंदिरों का प्राचीन आधार क्या था और वे जन समाज के लिये कितने उपयोगी हो सकते हैं। हमें आशा करनी चाहिये कि यह मंदिर एक नवीन आदर्श उपस्थित करेगा और भारतीय संस्कृति के आज मलिन हो रहे प्रकाश को कुछ अधिक उज्ज्वल एवं प्रकाशवान बनायेगा। इससे जिस अखण्ड ज्योति की स्थापना हो रही है वह अनेक आत्माओं में शक्ति, शान्ति एवं समृद्धि का विकास करेगी।

पूर्णाहुति यज्ञ

यज्ञ की तैयारियाँ प्रायः पूर्ण हो चुकी हैं। हवन सामग्री पूर्ण शास्त्रोक्त विधि एवं अनुपात से शास्त्रीय तैयार की गई है, घृत आदि की शुद्धता के लिए विश्वस्त प्रबन्ध हुआ है। वेद पाठी पण्डितों द्वारा गायत्री यज्ञ का सांगोपांग विधान तथा मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने का कार्य सुनिश्चित हो चुका है। इस यज्ञ में परखे हुए गायत्री उपासक ही सम्मिलित हों इसका विशेष ध्यान रखा गया है। इनकी संख्या पहले 125 ही रखने का विचार था पर बहुत छाँट करने पर भी यह संख्या करीब ड्यौढ़ी होती दीखती है। यज्ञ में पूर्ण सात्विकता का ऋषिकल्प वातावरण रहेगा। कोई आडम्बर, प्रदर्शन, ठाठ-बाठ या आकर्षण इसमें नहीं रहेगा।

जो व्यक्ति इस यज्ञ में सम्मिलित रहेंगे उनके लिए आवश्यक आदेश पहले ही भेजे जा चुके हैं। ता. 20, 21, 22 जून को उन्हें भूमि शयन आदि तपश्चर्याएं करनी होंगी। यज्ञ के प्रसाद स्वरूप प्रातः काल पंचामृत, मध्याह्न को श्रम रहित खीर आदि का प्रसाद तथा शाम को फलाहार इस प्रकार जो यज्ञावशिष्ट आहार मिलेगा उसी में संतुष्ट रहना होगा। क्योंकि अन्न से मन का बड़ा सम्बन्ध है। उन दिनों पवित्र यज्ञ अन्न खाने से ही ऋत्विजों में समुचित आध्यात्मिक पवित्रता रह सकती है। सभी ऋत्विजों की निर्धारित वेशभूषा होनी चाहिए। धोती, कुरता, कन्धे पर पीला दुपट्टा, पैरों में चर्म रहित जूते या चट्टी। स्त्रियाँ सफेद धोती, पीली कुर्ती तथा पीली चादर रखेंगी, आने वालो को ता. 19 को किसी समय तक मथुरा पहुँच जाना चाहिए ताकि ता. 20 को प्रातःकाल यज्ञ में भाग ले सकें। तीनों दिन यज्ञ, जप, अभिषेक आदि कार्यक्रम प्रातः 5 बजे से 10 बजे तक और शाम को 4 बजे से 7 बजे तक रहेगा। राज को 8 बजे से 10 बजे तक विद्वानों के प्रवचन हुआ करेंगे। ता0 22 को 11 बजे कार्यक्रम समाप्त हो जायगा। इसके बाद सब लोग अपने अपने घर जा सकेंगे।

मथुरा जंक्शन और मथुरा केन्ट (छावनी) पर प्रायः सभी ट्रेनों पर स्वयंसेवक उपस्थित रहेंगे जो आगंतुकों को यथास्थान पहुँचाने में सहायता करेंगे। वैसे स्टेशन पर जो ताँगे, रिक्शे मिलते हैं उनसे कहा जाय कि वृन्दावन वाली सड़क पर मथुरा से ठीक पहले मील जहाँ गढ़ा है वहीं हमें पहुँचना है तो गायत्री मंदिर से अपरिचित ताँगे वाले भी आसानी से वहाँ पहुँचा देंगे। कोई व्यवस्था न बने तो स्टेशन से घीयामंडी, अखण्ड ज्योति कार्यालय में पहुँचना सम्भव है। वहाँ से मंदिर तक पहुँचना आसान होगा। ठहरने में अधिकाँश लोगों को मंदिर में ही ठहराया जायगा। जो लोग सपरिवार आयेंगे उन्हें शहर की धर्मशालाओं में ठहराया जायगा।

इन दिनों आँधी तथा वर्षा का योग है। गर्मी भी उन दिनों खूब पड़ेगी। इसलिए दुर्बल, बच्चे, बुड्ढ़े एवं अस्वस्थ लोग न आवें तो ही अच्छा है। जो लोग न आ सकें वे अप्रैल की अखण्ड-ज्योति में बताये हुए नियमों का पालन करते हुए घर रहते हुए भी यज्ञ में भागीदार रह सकते हैं यज्ञ के तीन दिनों में यथासम्भव उपवास, जप, हवन, मंत्रलेखन गायत्री चालीसा पाठ, गायत्री साहित्य का प्रचार, दान आदि शुभ कार्यों के आयोजन कर सकते हैं। जो सज्जन मथुरा पूर्णाहुति यज्ञ में अपनी ओर से कुछ सामग्री, घृत आदि सम्मिलित करना चाहें तो वैसा प्रसन्नतापूर्वक कर सकते हैं।

बैसाख सुदी 15 से लेकर जेष्ठ सुदी 10 तक हमारा निराहार व्रत चलेगा। पर मौन एकान्त सेवन अनुष्ठान आदि का कार्य नहीं रखा गया है। क्योंकि इन दिनों कितने आवश्यक कार्य हमें स्वयं निपटाने हैं। उपवास के दिनों में हमसे अनावश्यक पत्र व्यवहार न करना चाहिये। मथुरा पधारने वाले भी कम से कम समय लेकर आवश्यक वार्तालाप संक्षिप्त में कर लेने का ध्यान रखे ताकि शक्ति और समय का अनावश्यक खर्च न हो।

पूर्णाहुति यज्ञ- केवल मात्र घी और सामग्री का हवन मात्र नहीं है। उसका बाह्य रूप बहुत साधारण होगा पर इसकी सूक्ष्म महत्ता अनेक दृष्टियों से असाधारण होगी। सामूहिक सहस्रांशु ब्रह्म यज्ञ अब से करीब डेढ़ वर्ष पूर्व आरम्भ किया गया था, जिसके अनुसार देश भर में हजारों ऋत्विजों द्वारा 125 करोड़ गायत्री जप, 125 लाख आहुतियों का हवन, 125 हजार उपवास का संकल्प था। उसके इतनी जल्दी पूर्ण होने की आशा न थी पर माता की कृपा से वह आसानी से पूरा हो गया। 125 लाख हस्तलिखित गायत्री मंत्र संग्रहीत हो चुके और 2400 तीर्थों का जल रज भी एकत्रित होने में भी देर नहीं है। हमारे 24-24 लक्ष के पुरश्चरण पूर्ण होने में भी माता की असाधारण कृपा ही प्रधान है। पूर्णाहुति यज्ञ मथुरा में तो छोटा सा ही होगा पर उसके साथ हजारों उच्च कोटि की आत्माओं का हजारों स्थानों पर सम्बन्ध एवं सहयोग होगा। इन सबका सम्मिलित समन्वय ही पूर्णाहुति यज्ञ है। इसके द्वारा हम सब पूर्णता की और अग्रसर हों ऐसी माता से प्रार्थना है।

भावी कार्यक्रम

गायत्री तपोभूमि बन जाने और गायत्री मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने के बाद यह कार्य समाप्त नहीं हो जाता। वरन् लुप्तप्राय गायत्री विद्या की देशव्यापी पुनर्प्रतिष्ठा की स्थापना होने का सुनिश्चित कार्यक्रम आगे के व्यवस्थापूर्वक आरम्भ होना है। यह स्थान तो इस कार्यक्रम को आरम्भ करने का व्यवस्थित स्थान मात्र है। उपयुक्त स्थान से उपयुक्त कार्य करने में ही सदा सुविधा होती है।

संत्रस्त मनुष्यता का परित्राण, आध्यात्मिक निष्ठा का प्रकाश, भारतीय संस्कृति का पुनरुद्धार हमारा लक्ष है। सदाचार, प्रेम, कर्त्तव्य परायणता, सद्भाव, पवित्रता, संयम, सद्बुद्धि, आस्तिकता एवं मानवोचित जीवन की विधि व्यवस्था हमारा कार्यक्रम है। गायत्री उपासना उन्हीं दैवी सम्पत्तियों का एक केन्द्र बिन्दू है। इस संस्था की भावी गतिविधि इसी कार्यक्रम को पूर्ण करने की होगी।


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