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September 1952

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—जिन बन्धनों में तुम जकड़े हुए हो उन पर क्रोध करना अथवा चिड़चिड़ाना व्यर्थ है। तुम्हें उचित है कि तुम इस बात का पता लगाओ कि तुम क्यों और किस प्रकार इस विपत्ति में आ पड़े और इससे निकलने का सच्चा उपाय क्या है?

—अज्ञान से तुम अपने को शरीर कहते हो, परन्तु शरीर तुम हो नहीं। तुम अनन्त शक्ति हो, नित्य स्थायी और निर्विकार स्वरूप हो। वही तुम हो उसे जानो और फिर तुम अपने को समस्त विश्व में बसा हुआ पावोगे।


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