—मनुष्य अपनी दुर्बलता पर रोता है, वह अपनी अवस्था पर शोक, पश्चाताप और सन्ताप किया करता है। यह क्यों? यही कि उसे अपने वास्तविक स्वरूप का कुछ भी अनुभव नहीं है वह चाहे तो अपनी अनन्त शक्ति द्वारा उस नैतिक परिसीमा तक पहुँच सकता है जहाँ कोई भी विकार स्पर्श नहीं कर सकता।