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September 1952

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—शरीर को कर्मशील उद्योग में और मन को शान्ति और प्रेम में रखने का अर्थ इसी अन्त में दुःख और पाप से मुक्ति है।

—अपने जीवन पर दृष्टि डालो तुम्हें ज्ञात होगा कि जीवन के वे दिन अधिक सुखमय थे जब तुमने किसी के लिए दया के शब्द मुख से निकाले थे अथवा परोपकार के कार्य किए हों अथवा दूसरों को अपने स्वार्थ की आहुति दी हो।

—प्रत्येक मनुष्य के अन्तःकरण में निरन्तर उच्च तप बनाने के लिए अंतर्ध्वनि होती है किन्तु विरला ही कोई इस ध्वनि की ओर लक्ष्य देने की चेष्टा करता है।

—अमरपुरी आपके भीतर है स्वर्ग तथा आनन्द का धाम आपके अंदर है तब भी आप सुख को बाजारों में अन्य पदार्थों में ढूँढ़ते हो, यह कैसा आश्चर्य है।


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