शिष्टाचार का पालन कीजिए।

October 1952

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(श्री स्वामी सत्य भक्त जी,)

सभ्य स्वच्छ अक्षुब्ध बन करो सदा व्यवहार।

वैसी रहे कुलीनता जैसा शिष्टाचार

परस्पर व्यवहार की बुनियाद शिष्टाचार में है। तुम्हारा बोलचाल रहन-सहन, बैठना-उठना कैसा है।

शब्दों का स्वर कैसा है मुखमुद्रा कैसी है। आदि बातों से कुलीनता समझी जाती है और इसी पर सहयोग प्रेम आदि निर्भर रहता है।

ऐसा व्यवहार करना जिससे दूसरों का अपमान न हो तथा उन्हें अनुचित रीति से शारीरिक आदि असुविधा न पहुँचाई जाय इसे सभ्यता कहते हैं।

सभ्यता के लिए स्वच्छता तथा अक्षोभ जरूरी हैं। जो अपने ओर गन्दगी फैलता है, जहाँ चाहे थूक देता है या अन्य मल डाल देता है वह असभ्य है, क्योंकि वह दूसरों को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। इसीलिए सभ्यता के लिए स्वच्छता की जरूरत है। स्वच्छता का अर्थ शृंगार जरूरी चीज नहीं है।

सभ्यता के लिए अक्षोभ भी जरूरी है। जिसे बात-बात में क्रोध आ जाता है, जो अपने आवेग को वश में नहीं रख सकता, अपशब्द या गालियाँ जिसकी मुँह पर लगता है वह असभ्य है।

जिसमें सभ्यता नहीं, स्वच्छता नहीं, अपने आवेगों को वश में रखने की क्षमता नहीं है वह कुलीन नहीं कहला सकता भले ही उसका जन्म कैसे ही महान कुल में क्यों न हुआ हो। कुलीनता के लिए सभ्यता स्वच्छता और शान्ति रूप शिष्टाचार के पालन की सख्त जरूरत है।

जब तुम किसी व्यक्ति या समाज के संपर्क में आओगे तब सबसे पहले तुम्हारा शिष्टाचार देखा जायगा और उसी के अनुसार तुम्हारे साथ लोग व्यवहार करेंगे।

शिष्टाचार के असंख्य रूप हैं और देश काल पात्र के अनुसार इसके रूपों में अन्तर होता है फिर भी इस विषय की कुछ सूचनाएँ दी जाती हैं।

1—सम्माननीय व्यक्ति-गुरुजन आदि-के मिलते ही हाथ जोड़ कर या पैर छूकर या जैसे दैनिक नियम हो उसके अनुसार आदर प्रगट करो।

2—सम्माननीय व्यक्ति को अपने सम्मानित आसन पर बैठाओ। उनके खड़े रहने पर खुद बैठे रहना, आसन न छोड़ना, उच्चासन प बैठना अविनय है।

3—सम्माननीय व्यक्ति के पास शिष्टता से बैठो। टाँग पसारना, बैठने में कुछ शान बघारते हुए आराम तलब बनना आदि ठीक नहीं।

4—सम्माननीय व्यक्तियों के सामने उनके कारण के सिवाय, अपने ही कारण से किसी दूसरे आत्मीय व्यक्ति पर क्रोध प्रकट करना गालियाँ बकना ठीक नहीं। ऐसा काम आवश्यक ही हो तो यथा साध्य उनके उठकर चले जाने पर करना चाहिए। उनके सामने दूसरों पर अधिकार प्रदर्शन भी यथाशक्य कम करो।

5—उपर्युक्त शिष्टाचार अपने घर आये हुए जन समूह के सामने भी करना चाहिए। जैसे जब चार आदमी बैठे हों तब अपने आदमी को भी गाली देना आदि ठीक नहीं।

6—अपने साथियों का भी यथासाध्य शिष्टाचार करो।

7—अपने से छोटों के शिष्टाचार का ठीक प्रत्युत्तर करो।

8—खास जरूरत के बिना सदा मिठास से बोलो। आज्ञा में भी यथा योग्य शब्द और स्वर की कोमलता होनी चाहिए।

9—रेलगाड़ी आदि में दूसरों की उचित सुविधा का ख्याल रखो।

10—गुरुजनों, महिलाओं तथा जो लोग धूम्रपान नहीं करते उनके सामने खासकर पास से धूम्रपान मत करो।

11—साधारण दृष्टि से जो काम शारीरिक श्रम का हो वह काम अगर तुम्हारे बड़े करते हों तो तुम उस काम को लेलो या उसमें शामिल हो जाओ।

12—प्रवास में महिलाओं की सुविधा का पूरा ख्याल रखो।

13—दूसरों का नम्बर मारकर आगे मत बढ़ो। यह बात टिकट लेने, पानी भरने आदि के बारे में ही है। आत्मविश्वास की दृष्टि से नहीं।

14—साइकिल से गिर पड़ने आदि किसी के संकट में हँसो नहीं। दुर्घटना में सहानुभूति प्रगट कर सको तो करो, नहीं तो कम से कम चुप जरूर रहो।

15—साधारणतः अपने मुँह से अपनी तारीफ मत करो। न अपने कामों का झूठा और अतिशयोक्तिपूर्ण अविश्वसनीय वर्णन करो।

16—आपसी बातचीत में जहाँ बोलने की जरूरत हो वहीं बोलो, बीच-बीच में इस प्रकार मत कूदो जिसे सुनने वाले नापसन्द करते हों।

शिष्टाचार के ये साधारण नमूने हैं इस प्रकार की सैकड़ों सूचनाएँ हो सकती हैं। सीधी बात यह है कि घमण्डी मत बनो, नम्र बनो। दूसरों की सुविधाओं का ख्याल रखो, कृतज्ञता प्रगट करो, प्रेमल व्यवहार करो बस शिष्टाचार के सब नियम पल जायेंगे। शिष्टाचार सिखाना नहीं पड़ता, मन में विनय भाव होने पर वह अपने आप आ जाता है। इसलिए मन में विनय भाव लाओ।

अगर तुम शिष्ट हो तो कठिन से कठिन अवसरों पर भी दूसरों से अनेक सुविधाएँ पा सकते हो उनसे लाभ उठा सकते हो। अगर शिष्ट न हो तो दानी ज्ञानी उदार से उदार व्यक्ति के पास से भी कुछ न पाओगे। इसलिए सभ्य बनो, शिष्ट बनो। व्यवहार का यह सबसे पहला और जरूरी गुण है।


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