गहरी निद्रा कैसे आवे?

October 1952

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(श्री प्रभुनारायण जी त्रिपाठी, प्रजावैद्य)

सोने का प्रबन्ध असंख्य तारागणों से जगमगाते हुए आकाश के नीचे एवं खुली हवा में करना चाहिए। खुली हवा में सोने से खूब गहरी नींद आती है। ग्रीष्म ऋतु में खुले मैदान में नीम जैसे वृक्ष के नीचे सोने से गुलाबी और मीठी निद्रा आ जाती है। ऐसी घोर निद्रा से भी जागने पर आनन्द स्फूर्ति तथा मन को प्रसन्नता प्राप्त होती है। यदि मौसम ठण्डा हो या ओस अधिक गिर रही हो तो भी जहाँ तक हो सके मैदान ही में एक कपड़ा तान ओस से बच कर उसके नीचे सोना चाहिए। ओस में न सोना चाहिए। क्योंकि ओस की ठण्ड फेफड़ों में घुस जाती है और खाँसी तथा दमा का रोग पैदा कर देती है, सवेरे को हाथ, पैर, देह टूटने लगती है और देह आलसी बनी रहती है। कभी-कभी ज्वर भी आ जाता है। यदि मच्छरों की अधिकता हो तो मसहरी लगा लें। मकान के बरामदे या दूसरे खुले हुए हिस्से में भी लेट सकते हैं, पर बन्द कमरे में या जिस स्थान में वायु की रुकावट हो वहाँ कभी नहीं सोना चाहिए।

यदि जाड़े के दिनों में बहुत ठण्डी हवा चल रही हो और कमरे में सोना लाजिमी हो तो भरसक विस्तार में जितना बड़ा, हवा व सजावटदार, मनमोहक और शान्त कमरा हो, उसी में खिड़की खोलकर या कभी-कभी उठकर किवाड़ खोल हवा बदल कर सोना चाहिए। सोने का कमरा सील, कीड़े, मच्छर और दुर्गंधयुक्त, तंग, सामान से भरा हुआ न होना चाहिए। सामान भरा होने से एक तो चोरों के भय से बन्द करना पड़ेगा दूसरे जितने स्थान में सामान भरा होगा उतने स्थान में वायु नहीं रहेगी जिससे वहाँ मच्छर दबे बैठे रहते हैं। प्रोफेसर हस्ली कहते हैं कि—सोने का कमरा इतना लम्बा होना चाहिए कि जिससे प्रत्येक मनुष्य को 800 घन फुट स्थान मिल सके । श्वासोच्छवास के लिए स्वच्छ वायु इससे कम स्थान में नहीं मिल सकती। सोने के कमरे में कोई गड्ढ़े या मोरी हो तो उसे सदा साफ रखना चाहिए, जरा भी गन्दा न रहने देना चाहिए। जिस कमरे में सूर्य का प्रकाश न पहुँचता हो उसमें सोने से शरीर की गर्मी कम पड़ जाती है और कीटाणु युक्त वायु साँस लेने को मिलती है। सोने की जगह रंगदार तस्वीरों का लगाना या ऐसे रंगों का पुतवाना कि जिनमें संखिया होता है, बहुत बुरा है। सफेद मिट्टी (पिंडोल) या हलका केसू का रंग या अन्य प्राकृतिक रंगों का पुतवाना कुछ बुरा नहीं। हवा के झकोरों से बचने के लिए दरवाजे खोलकर उनके सामने चारपाई डालकर न सोना चाहिए।

उत्तर की ओर सिर करके न सोना चाहिए। इस ओर सिरहाना करना अपशकुन माना जाता है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भी यह है कि जब मरते समय रोगी का दम छटपटाता है तब उत्तर की ओर सिर करके जमीन में सुला देते हैं। इससे सहज में ही बिना तकलीफ अन्य दिशाओं की अपेक्षा जल्द दम निकल जाता है। पर यथार्थ बात यह है कि मनुष्य के मस्तिष्क में विद्युत और चुम्बक का प्रमाण अधिक है और उत्तर की ओर रहने वाले पोलरादिकों में रहा हुआ विद्युत तथा चुम्बक का अधिक प्रमाण दिमाग के अल्प प्रमाण की हानि करता है। पश्चिमी विद्वान इस विषय को यों कहते हैं कि एक रेखा जो सदा शरीर में सिर से पैर की तरफ खड़ी लहर पैदा करती है वही रेखा उत्तर की तरफ सिराहना करने से ध्रुव की आकर्षण शक्ति से खिंच कर वेंड़ी लहर मारने लगती है जिससे मस्तिष्क में खराबी पैदा होती है और आँखों की ज्योति कम हो जाती है। सदा सोने से या तो पागलपन हो जायगा वरना अन्धा तो अवश्य ही हो जायगा। पूर्व और दक्षिण की ओर को सिराहना करके सोना अच्छा होता है। कहते हैं पूर्व की ओर सिर कर, सोने से विद्या तथा जीवनी शक्ति, दक्षिण की ओर आयु की वृद्धि और पश्चिम की ओर हानि एवं चिन्ता होती है। अपने घर में पूर्व की ओर, ससुराल में दक्षिण की ओर और यात्रा में पश्चिम की ओर सिर करके सोना चाहिए। पैरों की अपेक्षा सिराहना ऊँचा रखने से निद्रा अच्छी आती है।

सोते समय सिराहने-सिर के नीचे एक तकिया रख लेना चाहिए। किसी-किसी को बहुत से तकियों की जरूरत पड़ती है, यह ठीक नहीं। वैसे तो साधारण अवस्था में स्वस्थ मनुष्य को तकिया लगाकर शिर ऊँचा करने की आवश्यकता नहीं है। उत्तान सोने वाले को तकिये की आवश्यकता नहीं है, लेकिन दाहिने या बाँये करवट सोने वाले की गरदन टेढ़ी न रहे इसलिए समान तकिया अवश्य होना चाहिए। तकिये स्वरूप और आकार में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं कोई तो बहुत पतला और 2 फुट के करीब लम्बा होता है और कोई चौकोर और कोई गोल होता है। तकिया बहुत पतला, चपटा, साधारण कड़ा, मुलायम और छोटा रखना चाहिए। तकिया केवल इतना ऊँचा या बड़ा होना चाहिए कि कन्धे और सिर का फासला बराबर हो जाय।

बड़े और ऊँचे तकिये से एक तो सोने में कुछ कष्ट होता है, दूसरे गर्दन की नसों को विश्राम न मिलने से उनको नुकसान पहुँचता है। तीसरे रक्त संचालन में बाधा पहुँचती है अधिक ऊँचा तकिया लगा कर सोने से नाक टेढ़ी होने की सम्भावना रहती है। परन्तु जिनको बड़ी कठिनता से नींद आती है उन्हें ऊँचा तकिया लाभ पहुँचा सकता है। इसी प्रकार तकिया बहुत नरम भी नहीं होना चाहिए। नहीं तो सिर अन्दर घुस जाने से श्वाँस लेने में अड़चन पड़ती है। तकियों में प्रायः रुई भरी जाती है, कहीं-कहीं सेमल की रुई भी काम में लाई जाती है। इसका प्रयोग केवल जाड़ों में ही ठीक समझा जाता है-गर्म होने के कारण गर्मियों में मस्तिष्क को यह लाभदायक नहीं होता। कोई-कोई गर्मी की वजह से न तो रुई और न सेमर की रुई का भरना पसन्द करते हैं। वे उड़ने वाली चिड़ियों के पर पसन्द करते हैं। आजकल तो हवा भरे हुए तकिये भी प्रचलित हो गये हैं। पंख या रुई से भरे तकियों के बजाय ऊन के भरे तकिये बहुत अच्छे होते हैं, यदि एक लम्बा सा तकिया मिल जाय तो, पायताने-पैरों के नीचे डाल ले। तकिये के बजाय अपना एक हाथ नीचे रख कर सोने की आदत अच्छी है, तकिये पर सिर दबाकर सोने का स्वभाव न डालना चाहिए।

जिस समय नींद का वेग आवे उसे रोकना नहीं चाहिए। जिसको जितनी नींद सोना आवश्यक है, उस को उतनी नींद न आने से, नींद का अभाव होने से अथवा नींद का वेग रोकने से अंगमर्द, सर्वांग का टूटना, जड़ता, ग्लानि, भ्रम, तन्द्रा, सुस्ती, मस्तिष्क सम्बन्धी रोग, सिर दर्द, सिर में चक्कर, भारीपन यहाँ तक कि मस्तिष्क दोष और जम्हाई आदि आने लगती हैं। शरीर के रसवातु को नष्ट करने लगता है एवं रुक्षता, नेत्रों में उत्तेजना, पाचन शक्ति क्षीण होकर मन्दाग्नि, मलबन्ध, अजीर्ण, अरुचि आदि हो जाते हैं। हृदयकम्प, अर्दित आदि अनेक वातज लक्षण दिखलाई पड़ते हैं। ताश-चौपड़-शतरंज, कैरम आदि के खिलाड़ी तथा गायन पार्टी के शौकीन निद्रा की परवाह न कर समय पर नहीं सोते और रात-रात भर खूब जागते हैं, वे रोगी और निर्बल होकर जीवन यापन करते हैं।

72 घण्टे का लगातार जागना बलवान से बलवान एवं स्वस्थ मनुष्य को भी रोगी बना देता है। समय के विरुद्ध, प्रमाण से अधिक और बिल्कुल न सोने से मनुष्य की आयु नष्ट हो जाती है। यदि कुछ दिनों तक बराबर न सोया जाय जैसा कि प्रायः सिनेमा, सर्कस, नाटक कम्पनियों में होता है। तो स्वास्थ्य अवश्य खराब हो जाता है। सोये बिना दिमाग में गर्मी चढ़ जाती है और तबियत ठिकाने नहीं रहती। जागना मनुष्य को अस्वस्थ, निर्बल, रोगी, हतबुद्धि और विक्षिप्त कर देता है। निद्रा का वेग जब सवार होता है तो काम करने में जी नहीं लगता, आँखें डगमगाती हैं, पलकें बन्द होती हैं और खुलती हैं, सिर आगे-पीछे झुकता है, श्वास-प्रश्वास की गति सुस्त हल्की हो जाती है, नाड़ी की गति एक मिनट में दस-बार के हिसाब से घट जाती है, गर्मी की उत्पत्ति कम हो जाती है, साराँश यह है कि शरीर के सारे अवयवों की क्रिया ढीली सी हो जाती है। डॉक्टर नेथेनील गिलटमैन्ट नामक एक सज्जन ने कुछ विद्यार्थियों को 115 घण्टे तक जगाए रहने के बाद परीक्षा की तो उसका फल यह निकला कि वे विद्यार्थी ज्यों−ही अपने अंग ढीले कर देते उन्हें नींद आ दबाती, किन्तु जब तक उनके अंग तने रहते तब तक वे जागते थे। जितना अधिक वे जागे उतना ही अधिक उनका शरीर विवश होता गया। दिन रात दो दिन तक जागने के बाद वे साफ-साफ लिख नहीं सकते थे, रंगों को उस समय भी पहचान सकते थे, किन्तु देर तक इसी काम में लगे रहने पर उनकी उनकी बुद्धि जवाब देती थी। वे जागृत अवस्था में ही स्वप्न देखने लगे थे।

गहरी नींद लेना स्वस्थ रहने के लिए बड़ा आवश्यक है। सोने के नियमों को ध्यान में रखा जाय तो निश्चय ही गहरी नींद आती है और स्वास्थ्य में उन्नति होती है।


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