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October 1952

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—दुख क्या है? भगवान के परमानन्द स्वरूप में विश्वास न होना और जगत के क्षुद्र पदार्थों में सुख के लोभ से आसक्त होना।

—जो साधक अपना भला चाहता है वह दूसरे की बुराई न देखे। अपनी बुराई को हजार आंखों से देखे, बड़ी सावधानी से देखे, कहीं छिपी न रह जाय और जो दिखाई दे उसे तुरन्त बड़े प्रयत्न से निकाले। जैसे साँप को घर से तुरन्त निकाल देना चाहते हैं, वैसे ही बुराई से बचना चाहिए। ऐसा न करें तो बुराई समुद्र की तरह बढ़ जायेगी।

—जो जितना सरल होगा, वह उतना ही भगवान को पाने का विशेष अधिकारी होगा सरल हृदय में ही विश्वास टिकता है।


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