(श्री हरगोविन्द वर्मा, राठ)
राही साहस छोड़ न देना!
एकाकी बढ़ता जा अपने बीहड़ दुर्गम पथ पर।
स्थान दूर है देर न कर, रह चलने में ही तत्पर॥
होकर श्रम से कातर चलने से मुँह मोड़ न लेना!
राही साहस छोड़ न देना!
कहीं बितानी तुझे पड़ेगी, रात्रि दुःख-प्रद काली।
और साथ ही कहीं मिलेगी, वैभव की हरियाली॥
दुख से व्यग्र न होना, सुख से नाता जोड़ न लेना!
राही साहस छोड़ न देना!
हिंसक जीवों से डर कर के, अपना धैर्य न खोना।
सावधान रहना माया का, लख कर जादू-टोना॥
देख राह में इन्द्र-परी को रे व्रत छोड़ न देना!
राही साहस छोड़ न देना!
तेरे अटल-धैर्य के आगे, मार्ग सुगम सब होगा।
और शीघ्र ही पावन सारा, नर जीवन तब होगा॥
किन्तु कहीं पथ में ही प्रभु से, नाता तोड़ न लेना!
राही साहस छोड़ न देना!