गायत्री की महान् महिमा

June 1952

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स्तुता मया वरदा वेदभाता प्रचोदयन्ताँ पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजा पशुँ कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्।

(अथर्व वेद-19-71-1)

अथर्व वेद में स्वयं वेद भगवान ने कहा है।

मेरे द्वारा स्तुति की गई, द्विजों को पवित्र करने वाली वेदमाता गायत्री आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन, ब्रह्मतेज उन्हें प्रदान करे।

यथामधु च पुष्पेभ्यो घृतं दुग्धाद्रसात्पयः।

एवं हि सर्ववेदानाँ गायत्री सार मुच्यते॥

-व्यास

जिस प्रकार पुष्पों का सारभूत मधु, दूध का घृत, रसों का सारभूत दूध है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है।

तदित्यृचः समो नास्ति मन्त्रो वेदाचतुष्टये।

सर्वे वेदाश्च यज्ञाश्च दानानि च तपाँसिच।

समानि कलया प्राहुर्मुनयो नतदित्यृचः॥

- विश्वामित्र

गायत्री मन्त्र के समान मन्त्र चारों वेदों में नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप, गायत्री मंत्र की एक कला के समान भी नहीं हैं ऐसा मुनि लोग कहते हैं।

नाम्नतोयं समं दानं न चाहिंसा परं तप।

न गायत्री समं जाप्यं न व्याहृति समं हुतम्॥

सूत संहिता यज्ञ वैभवखणड अ. 6-30

अन्न और जल के समान कोई भी दान, अहिंसा के समान तप, गायत्री के समान जप, व्याहृति के समान अग्नि होत्र, कोई भी नहीं है।

हस्तत्राणप्रदा देवी पतताँ नरकार्णंवे।

तस्मात्तामभ्यसेन्नित्यंब्राह्मणो हृदये शुचिः

गायत्री देवी नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली है अतः द्विज नित्य ही पवित्र हृदय से गायत्री का अभ्यास करे अर्थात् तपे।

गायत्री चैव वेदाँश्च तुलया समतोलयन्।

वेदा एकत्र साँगास्तु गायत्री चैकतः स्थिता॥

योगी याज्ञवलक्य

गायत्री और समस्त वेदों को तराजू से तोला गया षट्अंगों सहित वेद एक ओर रखे गये और गायत्री को एक और रखा गया।

सारभूतास्तु वेदानाँ गुह्योपनिषदो मताः

ताभ्यः सारस्तु गायत्री तिस्रो व्याहृतयस्तथा॥

योगी याज्ञ.

वेदों का सार उपनिषद् हैं और उपनिषदों का सार गायत्री और तीनों महा व्याहृतियाँ हैं।

गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी।

गायत्र्यास्तु परन्नास्ति दिविचेह च पावनम्॥

गायत्री वेदों की जननी है, गायत्री पापों को नाश करने वाली है। गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मन्त्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है।

तद्यथाग्निर्देवानाँ, ब्रह्मणो मनुष्याणाँ,

बसन्त ऋतूमामेवं गायत्री छन्दसाम्॥

(गोपथ ब्राह्मण)

जिस प्रकार देवताओं में अग्नि, मनुष्यों में ब्राह्मण, ऋतुओं में बसन्त ऋतु श्रेष्ठ है उसी प्रकार समस्त छन्दों में गायत्री छन्द श्रेष्ठ है।

नास्ति गंगा समं तीर्थं न देवाः केशवात्परः।

गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतं न भविष्यति॥

वृ. यो. याज्ञ. अ. 10 2/79

गंगा जी के समान कोई तीर्थ नहीं है, केशव से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं। गायत्री मन्त्र के जप से श्रेष्ठ कोई जप न आज तक हुआ और न होगा।


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