“तुम संसार की असार वस्तुओं एवं सुखों के साथ समझौता करके जीवन की बहुमूल्य सम्पदा नष्ट न करो। जब तक तुम्हें संसार की वस्तुएँ प्रिय लगती रहेंगी तब तक अहंकार, कलह, कलंक, शोक, मत्सर, लोभादि दोषों से छुटकारा न होगा।