मनुष्य का स्वभाव कैसे पहचानें

December 1951

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(प्रो. रामचरण महेन्द्र एम. ए.)

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखने पर अपने इर्द-गिर्द के व्यक्तियों के सम्बन्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। मनुष्य जैसा अन्दर से होता है, उसका अन्तःकरण, रुचि, मानसिक विकास, या इन्द्रिय भोगों की मर्यादा के अनुसार इन निष्कर्षों पर आया जाता है।

पहले वस्त्रों को लीजिए। जिन व्यक्तियों की पोशाक बाहर से चटकीली भड़कीली होती है, उनकी रुचि विकास मानसिक और शिक्षा सम्बन्धी स्तर बहुत नीचा होता है। भड़कीले वस्त्र बचपन की निशानी है। प्रायः देखा जाता है कि अशिक्षित मनुष्य रंग बिरंगे वस्त्र धारण करते हैं। स्त्रियाँ लाल रंग की ओढ़नी, लहंगा, या साड़ियाँ धारण करती हैं। अविकसित कलात्मक रुचि वाली स्त्री अधिक से अधिक रंग वाले वस्त्रों को धारण कर वह मानसिक दृष्टि से अपने आपको महत्ता प्रदान करना चाहती है। अधिक रंग ध्यान आकृष्ट करने, विशेषतया स्त्री का पुरुषों को, तथा पुरुषों का स्त्रियों को आकृष्ट करने का एक मनोवैज्ञानिक उपाय है। जैसे-2 मनुष्य का साँस्कृतिक विकास होता है, वैसे-2 वह श्वेत या हलके रंग के वस्त्रों पर आता जाता है। अधिक रंग से हलके रंग पर आना और फिर सफेद वस्त्रों पर आना साँस्कृतिक एवं मानसिक विकास का प्रतीक है। प्राचीन रोमन, ग्रीक तथा अंग्रेज पादरियों की पोशाक सफेद रंग की रही है। श्वेत रंग पवित्रता, सात्विकता, मानसिक विकास का द्योतक है।

सुगन्ध का चरित्र से संबंध है। गन्ध की ओर आकृष्ट होना मानव स्वभाव है। कीट पतंग तक गन्ध के दास होते हैं। जो व्यक्ति तेज गन्ध की ओर आकृष्ट होते हैं, वे कलात्मक दृष्टि से नीचे स्तर के हैं। तेज महक पसन्द करने वालों में वह कलात्मक विकास नहीं पाया जाता। इत्र फुलेल, या सुगन्धित तेल, साबुन बेचने वाले जानते हैं कि तेज सुगन्ध वाले इत्र, तेल इत्यादि अनपढ़ मूर्ख या दिखावटी मन वाले अधिक मात्रा में खरीदते हैं। भोजन के पश्चात् जो पैसा बचेगा उसे वे इत्र की एक फुरेरी को खरीदने में व्यय करेंगे। एक आने का सुगन्धित तेल लेकर केशों में मलना, भोजन लेकर खाने से अधिक पसन्द करेंगे। परिष्कृत रुचि के व्यक्ति कम गन्ध पसन्द करते हैं, या बिल्कुल ही पसन्द नहीं करते। सर्वोत्कृष्ट कलात्मक रुचि उस व्यक्ति की है, जो कम गन्ध के इत्र, साबुन, तेल, पसन्द करते हैं। यही बात पुष्पों के सम्बन्ध में भी है। नागचम्पा, मौलपुरी गुलाब आदि तेज महक वाले पुष्प कम परिष्कृत रुचि के परिचायक है। चमेली मोगरा, रात की रानी अपने रंग की सफेदी और हलकी भीनी सुगन्ध से उच्च रुचि के परिचायक है। जो व्यक्ति अधिक गहरे रंग, तथा तेज महक वाले पुष्पों को प्रेम करते हैं, वे मोटे, असंस्कृत, अविकसित, स्वभाव के हैं। सफेद रंग तथा कम महक पसन्द करने वाले उच्च परिष्कृत रुचि के परिचायक हैं। प्रायः पुष्प का नाम देकर चरित्र पढ़ने का विज्ञापन किया जाता है। इसमें यही रहस्य छिपा है। यदि आपका प्यारा पुष्प रंगों से भरा हुआ है, तेज महक वाला है, तो इसका अभिप्राय यह है कि आपका स्वभाव एवं मानसिक विकास बाल्यावस्था में ही है। स्थिर वृत्ति एवं सुसंस्कृत स्वभाव वाला व्यक्ति हल्की भीनी भीनी गन्ध और हलके रंगों को पसन्द करता है।

जो व्यक्ति बातचीत में गाली या अपशब्दों का प्रयोग करता है, वह अपनी दलित वासना को प्रकट करता है। उसके गुप्त मन में बनी हुई ये वासनाएँ भाँति भाँति के अपशब्दों, गन्दी क्रियाओं तथा गुप्त अंगों के स्पर्श से प्रकट होती हैं। ऐसे व्यक्ति के समीप का समस्त वातावरण दूषित होता है। यह अपरिपक्वता का द्योतक है।

अधिक बनाव श्रृंगार करने वाली स्त्री या पुरुष, पुष्पों, इत्र, फुलेल, तेल, पाउडर, क्रीम इत्यादि मलने वाला, चटकीले कपड़े पहिन कर, या फैशन परस्त-गुप्त वासना को प्रकट करते है। जो व्यक्ति आंखें फाड़ फाड़ कर स्त्रियों की ओर ध्यान से देखता है अथवा उनमें दिलचस्पी दिखाता है, सिनेमा देखता है, अभिनेत्रियों की जीवनियाँ पढ़ता है, उनके चित्र कमरे में लगाता है, सिनेमा के गीत गुनगुनाया करता है, वह वासना प्रिय है। उनकी वासना के प्रकाशन के ये भिन्न भिन्न प्रकार हैं। आजकल सिनेमा की पत्र पत्रिकाओं, जिनमें उत्तेजक चित्रों की भरमार रहती है, युवक-युवतियाँ बड़े उत्साह से पढ़ते हैं। यह उच्छृंखलता का चिन्ह है। भड़कीले चरित्र वाले अस्थिर, दूषित प्रकृति वालों में ये तत्त्व प्रचुरता से पाये जाते हैं-पान खाना, बढ़िया पालिशदार जूता पहिनना, गले में माला डालना, बनाव श्रृंगार को ही सब कुछ मान बैठना इत्यादि। स्त्रियों में मुँह पर अधिक सुर्खी लगाना, केशों का अत्यधिक ध्यान, रंगीन साड़ियों का प्रयोग, शरीर को अधिक खोले रखना, अंग-प्रत्यंगों का अधिकाधिक प्रदर्शन, श्रृंगार प्रियता, गन्दे गीत गान, पान-चबाना, चटपटे मिर्च मसालों वाले भोजनों में रुचि, पुरुषवर्ग से अधिक संपर्क रहना क्लब या सोसाइटियों में घूमना इत्यादि विलासी स्त्रियों के लक्षण हैं। उपरोक्त सब तत्त्व यौन-क्षुधा व्यक्त करते हैं।

जो व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत सफाई के बारे में लापरवाह है, वह या तो मूर्ख और असंस्कृत हो सकता है, अथवा दार्शनिक। अधिक विकसित व्यक्ति बनाव श्रृंगार से ऊंचे उठने के कारण साधारण तथा अनेक बार अतिसाधारण हो जाते हैं। सादी वेशभूषा में उन्हें पहचानना कठिन हो जाता हैं। सरलता, आदमी की सज्जनता की निशानी है।

गन्दे वस्त्रों वाला व्यक्ति आलसी, अशिक्षित एवं मूर्ख हो जाता है। वह कलात्मक अभिरुचि से बहुत दूर रहता है। इसलिए उसके कीमती वस्त्र भी गन्दे रहते हैं।

किसी व्यक्ति के घर में आकर यदि आप प्रत्येक वस्तु यथा स्थान पाते हैं, तो समझ लीजिए कि वह योजना बनाकर चलने वाला मानसिक दृष्टि से स्थिर संतुष्ट कलात्मक है। अस्त व्यस्त गृह रखने वाला लापरवाह, कला-शून्य, तथा जल्दबाजी उनके जीवन के हर पहलू में प्रदर्शित होती रहती है।

हजामत बनाने में असावधानी, या लापरवाही लम्बी मूंछें रखना, या केशों को न संवारना दो बातें प्रकट करता है। या तो व्यक्ति इतना निर्धन है कि यह सब व्यय नहीं कर सकता, अथवा उसे इतना अवकाश नहीं है कि वह इनकी ओर ध्यान दे सके। नाक में निकले हुए बाल असभ्यता के द्योतक हैं। बढ़े हुए नाखून मनुष्य की असंस्कृति, बहसीपन और आलस प्रकट करते हैं।

जो व्यक्ति बार बार मुँह पर हाथ रखता है, कपोलों का स्पर्श करता हैं, नाक में उंगली डालता है, कान कुरेदता है, वह हीनत्व की भावना से ग्रसित है। इन क्रियाओं द्वारा बड़प्पन की, शरीर तथा आत्मा की निर्बलता ही प्रकट किया करता है।

जो व्यक्ति मुँह खोल कर डकार, या जमुहाई लेते हैं अथवा अपान वायु अधिक निकाला करते हैं वे प्रायः आन्तरिक पेट की बीमारियों के मरीज होते हैं । अधिक खाने से आलस्य तथा उसी प्रकार की घृणित बीमारियां उत्पन्न होती हैं।

जो व्यक्ति जरा जरा सी बात पर ही ही कर दाँत निकाला करते हैं, अथवा वे बात करते समय मखोल करते रहते हैं, वे अस्थिर और थोथे ज्ञान वाले होते हैं। किस बात पर हंसना उचित है, किस पर नहीं हंसना चाहिए, उन्हें इतना विवेक नहीं होता।

कुछ व्यक्ति आपसे अल्पकाल में ही मित्रता गाँठ लेते हैं। हंसकर, कुछ चीजें जैसे-लैमन सोडा, सिगरेट पान, या सिनेमा दिखा कर आपको अपना परम मित्र दिखाना चाहते हैं, ऐसे व्यक्ति स्वार्थी होते हैं। अपनी स्वार्थ सिद्धि के निर्मित प्रायः यह उपकरण किया करते हैं। मतलब पूर्ण होने के पश्चात् किसी से न बोलते हैं, न लेन देन स्थिर रखते हैं। ऐसे व्यक्ति खतरनाक होते हैं। आपकी हानि-लाभ से उन्हें कोई अभिप्राय नहीं।

अधिक थूकने वाला व्यक्ति एक घृणित आदत का गुलाम है। उत्तम स्वास्थ्य वाले व्यक्ति कभी नहीं थूकते फिरते। जिन्हें खाँसी जुकाम आदि कोई बीमारी है, उन्हें भी नियत स्थान पर ही थूकना चाहिए। खाँसी के समय रुमाल का प्रयोग करने वाले सभ्य, सुनिश्चित होते हैं।

कुछ व्यक्ति दूसरों के प्राइवेट कमरों में, या आफिस में बिना पूर्व सूचना चले जाते हैं। किसी के प्राइवेट कमरे में यों ही चले जाना बड़ी भारी असभ्यता है। जाने से पहले पूर्व सूचना तथा समय सम्बन्धी बातें तय कर लेनी चाहिए। इसी प्रकार दूसरों के गुप्त या साधारण पत्र पढ़ना, या कमरे की वस्तुओं को उलट-पलटना एक बुरी आदत है।

कुछ व्यक्ति चलते समय दोनों ओर हाथ फैला कर हाथी की सी शान दिखाते हुए अपनी शक्ति, सौंदर्य, तथा महत्त्व का प्रदर्शन करते हुए चलते हैं। जूतों को पटक पटक कर रखते हैं, चूँ चूँ करने वाले जूतों का व्यवहार करते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रदर्शन के शौकीन, झूठी शान, व्यर्थ की टीपटाप रखने वाले, साँस्कृतिक दृष्टिकोण से अविकसित होते हैं। पूर्ण विकसित व्यक्ति साधारण सी चाल से चलता है। उसमें शक्ति, उत्साह, क्षिप्रता रहती है, पर व्यर्थ की शेखी नहीं।

अधिक चूड़ियाँ, कान नाक हाथ में भारी गहने पहनने वाली स्त्रियाँ, आभूषणों की चमक दमक में अपनी कुरूपता छिपाया करती हैं। पूर्ण सुन्दर स्त्री आभूषण पहनना बिल्कुल ही नहीं पसन्द करती, या अत्यधिक कम करती है। वह प्राकृतिक रूप से ही सहज सुन्दर है। इसी प्रकार अंगूठियां, या गले में सोने की जंजीर डाले फिरने वाले पुरुष भी कुरूपता के शिकार होते हैं। इस कुरूपता को ढ़कने के लिए तरह तरह के बाह्य प्रसाधन काम में लाये जाते हैं। पाउडर, क्रीम, सुर्खी इत्यादि कुरूपता को छिपाने के बाह्य साधन हैं। प्राचीन असंस्कृत आदिम जातियों के जो अंग अवशेष रह गये हैं, वे आज भी चाँदी, गिलट लकड़ी या हाथी दाँत के अधिक से अधिक गहनों का व्यवहार करते हैं। आभूषणों से क्षणिक, आकर्ष उत्पन्न हो सकता है, किन्तु शरीर की स्थायी कुरूपता नहीं ढ़क सकती। अपने शरीर को सहज, स्वाभाविक स्वास्थ्य मूलक सौंदर्य दिखाने वाली स्त्री या पुरुष ही परिष्कृत और सुसंस्कृत रुचि के परिचायक हैं।

आकर्षक वस्त्र, आभूषण, या मकान आदि में रह कर मनुष्य यह आकाँक्षा करता है कि उक्त वस्तुओं के लिए उसकी प्रशंसा की जाए। वह इन वस्तुओं के लिए विशेष गर्व करता है। ऐसे व्यक्ति प्रशंसा के भूखे रहते हैं। यदि कोई इन वस्तुओं के संबंध में कुछ बातचीत करता है, तो वे बहुत बढ़ा चढ़ा कर उनका बखान करते हैं। आपके इर्द गिर्द का प्रत्येक व्यक्ति इस प्रकार की कोई न कमजोरी अवश्य रखता है। तीतर का पिंजरा हाथ में लेकर निकलने वाले चाहते हैं कि उनके तीतर की प्रशंसा की जाए। पहलवान नग्न बदन रख कर यह आकाँक्षा करते हैं कि उनके पुट्ठों की तारीफ की जाए। दुकानदार की “शो विन्डो” ग्राहकों को खींच खींच कर लाया करती है। स्त्रियों में प्रशंसा की भूख उग्र होती है यदि कोई प्रातः से लेकर साँय तक उनकी पोशाक, घर की सफाई, प्रबन्ध, भोजन बाल शिक्षा आदि की प्रशंसा करता रहे, तो वह दुगुना चौगुना कार्य सम्पादित कर सकती है। बच्चे प्रशंसा की खुराक पाकर कठिन कार्यों की ओर अग्रसर हो जाते हैं। ये अपने पढ़ने लिखने में प्रशंसा से ही विकसित हो सकते हैं। उनके प्रत्येक सुधार पर प्रोत्साहन देने वाली माता अपने बच्चे को ऊँचे से ऊँचा उठा सकती है।

शरीर का मोटापन, या दुबलापन चरित्र के विषय में कुछ संकेत दे सकता है। मोटा व्यक्ति आराम तलब, आलसी, शक्तिशाली, मानसिक रूप से कम भावुक होता है। वह काम करने में झींकता है, जल्दी थक जाता है, साहसिक कामों में कम दिलचस्पी लेता है, क्रुद्ध कम होता है। दैनिक जीवन में प्रायः आलस्य में पड़ा रहता है। इनके विपरीत दुबला आदमी अधिक फुर्तीला, काम करने वाला, विचारशील और दीर्घायु होता है। वह आनन्दप्रिय नहीं होता। आलस्य की मात्रा कम होती है, विचारशीलता और दूरदर्शिता अधिक होती है। वह उग्र स्वभाव का होता है, आसानी से क्रोधित हो जाता है। शेर देखिए, पतला दुबला होते हुए भी शक्ति, स्फूर्ति, तेजी, उग्रता, क्रोध से परिपूर्ण होता है, इसके विपरीत हाथी स्थूल शरीर हो कर भी आलसी, शान्त, शक्तिशाली, गंभीर, बुद्धि का मोटा, काम से चिढ़ने वाला, धीमा होता है। ये ही गुण प्रायः पतले मोटे मनुष्य में पाये जाते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ एक सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक प्रभाव लाता है। जब वह आपके सम्मुख आता है, तो आपकी अन्तरात्मा तुरन्त यह बताती है कि वह अच्छा है, बुरा है, पवित्र है, या लफंगा है। गन्दी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति अपने हाव भाव, नेत्रों, मुख, क्रियाओं, तथा दृष्टि भेद से अपनी आन्तरिक गन्दगी स्पष्ट कर देता है। स्त्रियों में मनुष्य के चरित्र को पढ़ लेने की अद्भुत क्षमता होती है। वे गन्दे व्यक्ति को एक दम ताड़ लेती है। सात्विक मनुष्य का दिव्य प्रभाव भी सूक्ष्म तरंगों में निकल कर दूसरों पर पड़ता है। उसकी क्रियाओं तथा वेशभूषा एकदम उसकी सत् प्रवृत्तियाँ प्रकट कर देती हैं। दूसरे के विषय में आपका अन्तःकरण जो गवाही देता है वह सौ में नब्बे प्रतिशत ठीक होता है।


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