निर्धन होकर बहुत की कामना करना और बल हीन होकर क्रोध करना शरीर को सुखा देने वाले दो काँटे हैं।
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उदार होना, दृढ़ रहना, बड़ों का मान करना और मीठे वचन बोलना सर्वप्रिय बनने के साधन है।
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राग,द्वेष, मोह, हर्ष, शोक, अभिमान, क्रोध और आलस्य अज्ञान से उत्पन्न होते हैं। इसलिए इन्हें छोड़ना चाहिए। - भीष्म
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जैसे कछुआ अपने अंगों को अपने अन्दर समेट लेता है, वैसे ही इन्द्रियों को उनके विषयों से खींच लेने पर मनुष्य की बुद्धि स्थिर हो जाती हैं *****
काम, क्रोध और लोभ ये तीनों नरक के दरवाजे हैं। ये आत्मा का नाश करने वाले है इसलिए इनसे बचना चाहिए।
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संसार में यज्ञ, दान और तप ये तीनों ही ऐसे कर्म हैं जिनके करने से मनुष्य पवित्र हो जाता है। इसलिए इन्हें कभी नहीं छोड़ना चाहिए। - गीता