अधिक दिन जीना है तो कुछ भूखे रहिए।

May 1950

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अमेरिका में कार्नस विश्वविद्यालय के विख्यात डॉक्टर मैके ‘भोजन और अधिक जीने’ के विषय पर आठ वर्ष से प्रयोग कर रहे थे। इन प्रयोगों के फलस्वरूप डॉक्टर साहब इस निर्णय पर पहुँचे हैं कि भूखे रहने वाले अधिक समय तक जीयेंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि ये एक दम बिल्कुल खाना ही बंद कर दें। खाये तो लेकिन पेट भर कर न खायें। वह भोजन जिसमें शरीर के लिये आवश्यक पदार्थ तो सब हों किन्तु भोजन की मात्रा कम होनी चाहिए। कम खाने से तुम पतले तो हो जाओगे-बहुत पतले नहीं-किन्तु यह पतला होना तुम्हारे जीवन-काल को बढ़ा देगा। यह प्रयोगशाला में 2,500 सफेद चूहों पर किया था। क्योंकि चूहों पर भोजन का प्रभाव मनुष्यों के समान ही होता है इसलिये प्रयोग के लिये इनको चुना गया था। चूहे के जीवन के दस दिन मनुष्य के जीवन के एक वर्ष के समय के समान समझने चाहियें।

सब चूहों को खाने के लिये एक से ही भोज्य पदार्थ दिये गए थे। उनको खाने के लिये के तीन, अनाज का श्वेतसार, काड मछली के यकृत का तेल, खमीर, चीनी, चावल, अल्प घास के पत्तों से बना भोजन, यकृत और कुछ फालतू भाग जैसे पिसी हुई हरिद्रा मिला हुआ भोजन दिया गया था। जिन चूहों को भूख से आधा भोजन मिलता था वे अधिक समय तक जीवित रहे, किन्तु उनके भूखे रहने के कारण उनकी शारीरिक शक्ति क्षीण हो गई थी। उनके रक्त में श्वेत अणु कम हो गए थे तथा उनके हृदय की धड़कन 400 के स्थान पर 300 रह गई थी। इस प्रकार उनका जीवन धीरे-धीरे चलता है जिसके कारण आयु बढ़ जाती है। किन्तु उनका मस्तिष्क उस समय में अधिक कार्य करता था। शरीर की कार्य करने की शक्ति कम हो गई थी किन्तु मस्तिष्क की कार्य करने की शक्ति में वृद्धि हो गई थी।

एक प्रयोग में 200 चूहों को चार 50-50 के समूह में रखा गया। ये सबके सब चूहे एक ही कमरे में और एक ही परिस्थिति में रखे गए थे सबको खाने की चीजें भी एक सी दी गई थी। यह भोजन शरीर के लिये आवश्यक पदार्थों से तो पूर्ण था किन्तु मात्रा में कम दिया जाता था। ये चूहे प्रयोग के प्रारम्भ होने के समय ढलती उम्र के अर्थात् उस अवस्था के थे जिस अवस्था के 40 वर्ष के मनुष्य होते हैं। क्या इन चूहों को आधे पेट भोजन दिया जाता इसलिए ये भूखे रह जाते हैं इस भूख को पूरा करने के लिए इनको केवल एक भोज्य पदार्थ दिया गया। एक समूह को एक भोज्य पदार्थ दिया गया। तो दूसरे को और कोई तीसरा। चूहों के एक समूह को भूख पूरी करने के लिए जो भोजन दिया गया वह केवल चीनी थी, दूसरे समूह के लिए श्वेत सार था, तीसरे समूह के लिए दूध का चूर्ण था और चौथे समूह के लिए यकृत था। चूहों के एक समूह को भूख पूरी करने के लिए जो भोजन दिया गया वह केवल चीनी थी, दूसरे समूह के लिए श्वेतसार था, तीसरे समूह के लिए दूध का चूर्ण था और चौथे समूह के लिए यकृत था।

इस प्रकार का भोजन इसलिए दिया गया था कि जिससे यह मालूम हो सके कि किस प्रकार के भोजन से अधिक दिन जीवित रहा जा सकता है और किस प्रकार के भोजन से जल्दी मृत्यु हो जाती है। क्योंकि जो चूहे अधिक दिन जीवित रहते उनका भोजन अधिक दिन जीवित रहने के लिये अच्छा होता और जो चूहे शीघ्र मर जाते वह भोजन हानिकारक होता, किंतु इन दोनों में से एक भी बात न हुई। प्रायः सभी चूहे बराबर दिनों तक जीवित रहे। इसके अतिरिक्त इस प्रकार भर पेट भोजन देने के कारण सब चूहे जल्दी मर गए। जिन चूहों को आवश्यक पदार्थों से पूर्ण भोजन कम मात्रा में दिया गया था और फिर पेट भरने के लिये कोई दूसरा पदार्थ जैसे चीनी, स्टार्च इत्यादि नहीं दिया गया था वे चूहे अधिक दिन जीवित रहे। इससे यह सिद्ध हुआ कि अधिक भोजन चाहे वह कुछ भी क्यों न हो हमेशा आयु को कम करता है।

इस प्रयोग के फलस्वरूप एक बात और भी हुई। जिन चूहों को पेट भरने के लिए बाकी खाना दूध का चूर्ण और यकृत दिया गया था वे अधिक दिनों तक बच्चे पैदा कर सकते थे। जिन चूहों को पेट भरने के लिए चीनी और स्टार्च (श्वेतसार) दिया गया था वे इन चूहों से केवल सीधे दिनों तक बच्चे पैदा करने के योग्य रहे थे। दूध चूर्ण और यकृत खाने वाले चूहे 600 दिन तक बच्चे पैदा कर सकते थे किन्तु चीनी और स्टार्च खाने वाले केवल 300 दिन तक ही बच्चे देने योग्य रहे।

इन प्रयोगों के फलस्वरूप और भी बहुत से प्रश्नों का उत्तर प्राप्त हो सका है, क्या प्रोटीन वाले भोजन आयुवर्द्धक हैं। क्या फालतू भोजन जैसे छिद्रोज अधिक दिन जीवित रहने में सहायक है ? क्या व्यायाम का भी कुछ प्रभाव पड़ता है ?

आठ वर्षों तक प्रयोग करने के पश्चात् डॉ. मैके ने बताया कि अधिक प्रोटीन या कम प्रोटीन वाले भोजनों का आयुवर्द्धन या आयु कम करने पर कोई प्रभाव होता नहीं देखा गया। इससे पहले वैज्ञानिकों का मत था कि अधिक प्रोटीन वाले भोजन जैसे माँस जीवन को कम कर देते है। डॉ. मैके के अनुसार व्यायाम का आयुवर्द्धन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होता। प्रयोगशाला में 65 मन भोजन में जो चूहों का प्रतिवर्ष दिया जाता था, फालतू पदार्थ-ब्रैन और गोल-छिद्रोज के रूप में भिन्न-भिन्न मात्रा में मिलाकर दिया गया इस प्रकार की मिलावट से चूहों की आयु पर कोई विशेष प्रभाव नहीं मालूम हो सका।

डॉ. मैके से एक प्रश्न पूछा जाता था कि यदि भूखे रहने से मनुष्य अधिक दिनों तक जीवित रहता है तो चीन निवासी जिनका भोजन ऐसा है कि वे सदा भूखे ही रहते हैं, संसार की अन्य जातियों के मनुष्यों से अधिक समय तक क्यों नहीं जीवित रहते ? इसका उत्तर यह है कि चीन निवासियों के भोजन में शरीरवर्द्धन के लिए आवश्यक सब पदार्थ मौजूद नहीं होते हैं। प्रयोगशाला के चूहों को भोजन तो भर पेट से कम दिया गया किन्तु उनके भोजन में शरीर के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सब पदार्थ मौजूद थे। जब इन चूहों को भरपेट से आधा भोजन दिया गया था शरीर से ये कमजोर हो गए थे किन्तु जीवित अधिक दिनों तक रहे। यदि 800 दिन या 1000 दिन तक के बाद भी - वह चूहों की आयु मनुष्यों की 80 या 100 वर्ष की आयु के समान है - इन चूहों को पूरा भरपेट भोजन दिया जाय तो वे शरीर से वैसे ही मोटे हो जाते हैं जैसे भरपेट भोजन खाने वाले चूहे रहते हैं। इस प्रयोगशाला में एक चूहा 1,460 दिन तक जीवित रहा। यदि इस अनुपात से आदमी जीवित रहे तो उसकी आयु 153 वर्ष की होगी।

डॉ. मैके की खोजों का अमेरिका में बड़ा स्वागत हुआ है। एक संस्थान ने उन्हें प्रयोग जारी रखने के लिए 160,000) रुपये प्रदान किये हैं।

उनके प्रयोगों का फल थोड़े में इस प्रकार कहा जा सकता है-


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