आपकी फुलवारी मनोरम हो।

May 1949

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(श्रीमती रत्नेश कुमारी नीराँजना, मैनपुरी)

बच्चे ही राष्ट्र की भावी आशा हैं उनका उपयुक्त विकास हो सके इस महान कार्य में सहायता देना यों तो प्रत्येक नागरिक का साधारण कर्त्तव्य है पर जन्मदाता माता-पिता पर इसके विशेष उत्तरदायित्व का भार रहता है। उन भावी नागरिकों का जीवन-पथ प्रशस्त हो, वे उपयुक्त पाथेय अपने माता-पिता से पा सकें यह उनका जन्म सिद्ध अधिकार है। और उनके माता-पिता की उनके तथा राष्ट्र के प्रति एक महान सेवा है।

पिछले किसी लेख में मैं एक बार विस्तृत विवेचन कर चुकी हूँ कि किस प्रकार क्रोधावेश के खीझ भरे कटु वाक्य उन कोमल मक्खन से हृदयों पर दारुण आघात करके उनकी आशा तथा उत्साह को कुचल डालते हैं फलस्वरूप या तो वे भावी नागरिक निराशा और हीनता के तीव्र भावावेश से ग्रसित होकर सदैव के लिए जीवन समर से मुँह मोड़ लेते हैं। जीवन में कोई महत्वपूर्ण कार्य करने योग्य उनके पास साहस, उत्साह तथा धैर्य ही शेष नहीं रह जाता। अशान्ति की गोद में ही वे अपने जीवन की शेष घड़ियाँ अपने को अयोग्य मानते हुए किसी न किसी प्रकार व्यतीत कर डालते हैं।

अथवा यह विद्रोह समाज विरोधी कार्यों में फूट पड़ता है वे सोच लेते हैं वे तो बुरे हैं ही समाज उनको कभी भी अच्छा मान ही नहीं सकता है तो वे अच्छा बनने का व्यर्थ प्रयत्न ही क्यों करें? वे तो वैसे ही काम करेंगे जिनको समाज बुरा मानता है देखें समाज उनको रोक तो ले यह चुनौती देते हुए वे अपने में बड़प्पन की भावना अनुभव करते हैं।

ये दोनों ही रास्ते अपने जीवन की सुख शान्ति को मिटा डालने के मार्ग हैं जिनको कोई भी विवश होकर ही ग्रहण करता है और इस का बहुत कुछ उत्तरदायित्व माता-पिता तथा गुरु पर रहता है।

इस लेख में मैं यह बताने जा रही हूँ कि भावनाओं को दबाने का कैसा कुप्रभाव उन नन्हें-2 सुमनों पर पड़ता है जो कि आपसे उपयुक्त सहायता पाकर जग कानन को सुरभित कर सकते हैं।

बचपन में तीन भावनाएं विशेष रूप से रहती हैं (1) जिज्ञासा, (2) कर्म करने की तीव्र इच्छा, (3) प्रशंसा प्राप्ति की लालसा। जो सहृदय बुद्धिमान जननी-जनक अपने लाडलों की इन मुख्य प्रवृत्तियों को क्रोध अथवा उपेक्षा से कुचलते नहीं हैं वरन् इनका सदुपयोग करते हैं उनके ही बच्चे कार्य- कुशल, बुद्धिमान आत्म-विश्वासी, कर्त्तव्यनिष्ठ, प्रशंसित, धैर्यशाली, साहसी तथा दृढ़ विचारों वाले होते हैं।

यदि बच्चा आपसे किसी विषय में प्रश्न करता है तो उसे न तो झिड़किये और न उसका मजाक ही बनाइये। यदि प्रश्न किसी कठिन विषय पर हो और वह शीघ्रतापूर्वक उसको न समझ सके तो भी झुँझलाइये मत, जितना भी समझा सकें प्यार से समझा दीजिए और कह दीजिये जब तुम जरा और बड़े हो जाओगे तब तुम इसको और भी अच्छी तरह से समझ सकोगे। अगर जिस समय बालक आप से प्रश्न पूछता है, आपको अवकाश नहीं है तो उससे स्नेहपूर्वक ही कह दीजिये कि अमुक समय पर मैं तुमको इस विषय पर समझाऊँगा फिर अपना वायदा अवश्य ही पूरा कीजिए जिससे बच्चा भी आपकी तरह बहानेबाजी न सीख सके।

यदि बच्चा कुछ काम अपने हाथ से करना चाहता है तो उसको रोकिए मत बल्कि उसकी सहायता कीजिए। उसको सुचारु रूप से करना धैर्य तथा प्रेमपूर्वक ही सिखलाइये। यदि काम खतरे का हो जैसे आग चाकू आदि से सम्बन्धित तो बच्चा अगर समझ सकता हो तब तो युक्तिपूर्वक मधुर भाव से उसे समझा दीजिये नहीं तो कोई दूसरी चमकीली चीज देकर बहला दीजिये। यदि कुछ और भी बड़ा हो तो अपने सामने ही सावधानी पूर्वक उसको उनका उपयोग करना बतलाइए इसमें कुछ भी खतरा नहीं होगा पर बालक का आत्म-विश्वास तथा उत्साह अवश्य ही बढ़ेगा।

मेरा तो विचार है कि यदि बच्चे में कर्मप्रियता की भावना कुछ कम भी हो तो भी धीरे-धीरे उसको छोटे-छोटे कामों की मधुरतापूर्वक शिक्षा देकर जैसे अपने जूते के फीते बाँधना, जूते पहनना, कपड़े पहनना, भोजन करना, जल पीना, मुँह धोना इत्यादि-2 अगर कुछ और बड़ा हो तो अपने छोटे भाई या बहिन की सम्हाल करने का भार भी उतनी हद तक डाला जा सकता है जहाँ तक कि उसकी दिलचस्पी और इस विषय में उत्पन्न कर सकें। कोई भी काम विवश करके कठोरता पूर्वक नहीं कराना चाहिये जिससे कि कुसंस्कार पड़े।

जो बच्चे बचपन से ही धीरे-2 काम करने के अभ्यस्त हो जाते हैं उनको फिर नागरिक बनने पर कुछ भी असुविधा नहीं होती वरन् वे प्रत्येक कार्य को प्रसन्नता से तथा सरलतापूर्वक कर लेते हैं। मैंने दो लड़कियों को देखा है जिनमें से एक की माँ ने तो बचपन से ही सारे काम सिखा दिए और दूसरी ने प्यार के मारे उसको कोई भी काम नहीं छूने दिया। वह कर्मशीला तो आदत होने के कारण अपनी ससुराल में भी सारा काम हँसते-हँसते तथा सुन्दर रीत से कर लिया करती थी सब घर वाले उससे खुश रहा करते थे। और दूसरी बेचारी ससुराल में सारे दिन काम में लगी रहती थी पर एक जो अभ्यास न होने से उससे ठीक से बनता ही नहीं था दूसरे आत्म-विश्वास तथा उत्साह न होने से वह शीघ्रतापूर्वक कर भी नहीं पाती थी। अस्तु सारा घर उससे असन्तुष्ट रहा करता था और वह अपना जीवन भार मानती थी।

इस तरह जो लड़के भी बचपन से काम करने के आदी रहते हैं फलस्वरूप उनको कार्यशीलता वयस्क होने पर और भी निरन्तर अभ्यास तथा शक्ति वृद्धि के कारण बढ़ जाती है। उनको कभी भी कार्य करना खलता नहीं बल्कि प्रसन्न चित्त सहज भाव से करते हैं।

कोई भी अच्छा काम बच्चा करे तो प्रशंसा करके उसे उत्साहित अवश्य ही कीजिये। और उसकी योग्यता तथा शक्ति अनुसार अच्छे कार्यों की ओर उसका ध्यान आकर्षित किया करिये। इन्हें पुरस्कार भी दिये जा सकते हैं पर बच्चे के मन पर कार्य की बनिस्बत पुरस्कार का ही महत्व अधिक गहराई से अंकित न होने पाये इसका ध्यान रखिए।

अपनी परिवार रूपी फुलवारी के माली आप ही हैं हर पेड़ पौधे को उचित, परिमित स्थान पर हृदयाकर्षक ढंग से रखिए। दर्शकों की दृष्टि में इसे प्रशंसित रखने का उत्तरदायित्व आप पर ही है इसका भली-भाँति ध्यान रखिए।


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