मैं अकम्पित दीप प्राणों का लिए-
यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?
बन्द मेरी पुतलियों में रात है।
ह्रास बन बिखरा अधर पर प्रात है।
मैं पपीहा मेघ का, मेरे लिए-
जिन्दगी का नाम ही बरसात है।
साँस में मेरी उनचासा पवन-
यह प्रलय पवमान मेरा क्या करेगा?
यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?
कुछ नहीं डर वायु जो प्रतिकूल है।
और पैरों में कसकता शूल है।
क्योंकि मेरा तो सदा अनुभव यही -
राह पर हर एक काँटा फूल है।
बढ़ रहा जब मैं लिए विश्वास यह-
पंथ फिर वीरान मेरा क्या करेगा?
यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा?
मुश्किलें मारग दिखाती हैं मुझे।
आफतें बढ़ना बताती हैं मुझे।
पंथ की उत्तुँग दुर्गम घाटियाँ-
ध्येय-गिरि चढ़ना सिखाती हैं मुझे।
एक भूपर, एक नभ, पग मेरा-
यह पतन उत्थान मेरा क्या करेगा? यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा? -हिन्दुस्तान