धार्मिक क्रान्ति की आवश्यकता

May 1949

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(श्री राजा महेन्द्र प्रताप)

आज वह दुनिया नहीं जो पाँच सहस्र वर्ष पहले थी। न आज वह संसार है जो एक हजार बरस पीछे था। पिछले दो सौ साल में हमारे भूमण्डल का रंग ही बदल गया। ऐसे वायु विमान, रेडियो, रेल, तार इत्यादि कहीं इतिहास में नहीं दीखते जहाँ तक दृष्टि काम करती है। पिछले पैंतीस वर्ष में दो महाभारत हुए और दुख के साथ कहना पड़ता है कि तीसरे जगत-व्यापी महायुद्ध की तैयारियाँ जारी हैं। कम्युनिस्टों और धन पूजकों में खींचातानी समस्त संसार में चल रही है। धर्म के नाम पर अभी हमारे देश में सहस्रों स्त्री पुरुष और बालक मार डाले गये। वह हिन्दू मुसलमान जो एक सहस्र वर्ष हिन्दुस्तान में साथ रहे आज एक दूसरे से अलग हो रहे हैं। धर्म के नाम पर प्यारे देश को काट डाला गया। सिख पंथ जो हिन्दू मुसलमानों में मेल कराने को उत्पन्न हुआ था आज आप जुदा हो बैठा है। वह बुद्ध धर्म जो संसार के उद्धार के लिए इस देश में जन्मा था आज यहाँ हिन्दुस्तान में ढूँढ़े नहीं मिलता। ईसाई धर्म कुछ आया पर उसका प्रभाव इस देश में बहुत ही कम है। आज हमारा राज कहता है कि वह दुनियावी है अर्थात् उसका धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं।

धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता और वह धर्म ही नहीं जो रोटी के प्रश्न को हल न करे। ईसाई धर्म की मुख्य प्रार्थना में जो प्रत्येक ईसाई को प्रतिदिन करनी चाहिए, वह ईश्वर से माँगता है कि हे पिता तू हम को हमारी आवश्यक रोटी देता रह। हम आज धर्म द्वारा ऐसा समाज प्रबंध रच देना चाहते हैं कि कोई भी बिना रोटी के कभी न रहे। सब की धर्म एक ही ईश्वर की इच्छानुसार पैदा हुआ है। उन सबका उद्देश्य मनुष्य की भलाई था। उनके जो विचारों में या क्रियाकाण्ड में अन्तर है वह इसलिए कि वह भिन्न-भिन्न समय में उत्पन्न हुए और उनका जन्म स्थान भी एक न था। एक ही डॉक्टर जैसे समय का, स्थान का विचार करके ही अपनी दवा बताता है इसी प्रकार ईश्वर ने भी धर्म की दारु देते समय वायुमण्डल का लिहाज रखा है। और भिन्न-भिन्न स्थानों के मनुष्यों की प्रकृति का भी ध्यान रखा गया है। आज भी सब मनुष्य एक से नहीं। और इसलिये उनको कुछ भिन्न-भिन्न विचार ही अच्छे लगते हैं।

धर्म के नामों पर लड़कर धर्म को बदनाम मत करिये। धर्म बुराई को मिटाकर मनुष्य को मनुष्य के हितार्थ समयानुसार सच्चे सीधे रास्ते पर चलाने के लिए उत्पन्न हुए थे और आज तक उपस्थित हैं। मनुष्य को लड़ाता है अन्धा स्वार्थ या सामूहिक जातीय मूर्ख विचार। आप देखते हैं प्रति दिन, कैसे वह एक नादान मनुष्य चार पैसे के लिए लड़ कर अपनी जान तक को खो बैठता है।

आज हम धर्मों में मेल कराकर उनकी समस्त शक्ति सब की भलाई में लगाना चाहते हैं। यदि आप अपने ही धर्म को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं तो अपने ही धर्म वालों को सच्चे साधु प्रकृति के व्यक्ति बनायें। थोथे ढोल मत पीटिये। और यदि आप हमारी भाँति यह समझ सकते हैं कि प्रत्येक धर्म अपना स्थान रखता है और उसका मनुष्य जीवन में अपना कुछ कर्त्तव्य है तो दूसरे धर्म वालों से मिल कर बुराई के विरुद्ध धर्म युद्ध अथवा जिहाद कीजिये।

वह सब बुराई है जो मनुष्य को दुख देती है अथवा मनुष्य को दुखी बनाती है। उद्देश्य है और अवश्य ही सब धर्म, राजनीति और विद्या का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए-मनुष्य को सुखी बनाना। विद्या आविष्कार करती है। राजनीति ऐसा राज प्रबंध बनाती है कि सब शान्तिपूर्वक रहें, आर्थिक और सामाजिक उन्नति कर सकें। धर्म ऐसा विश्वास उत्पन्न करता है कि मनुष्य भलाई करने को अपना कर्त्तव्य मानता है और दैवी दुर्घटना में भी प्रसन्न रहता है।

आज हम धार्मिक विश्वास के साथ सुखी समाज की रचना करने चले हैं। हमें विश्वास हो गया है कि नया युग आ गया है। आज हम अपनी सारी बुद्धि लगा कर विचारों की खोज करेंगे। उन विचारों को निकाल फेंकेंगे जो बीमारी के कीटाणुओं की भाँति आपस में झगड़े कराकर समाज को रोगी बनाते हैं। यह किसी धर्म या कम्युनिज्म का कसूर नहीं कि हम लड़ते हैं, यह बुराई है अन्याय की और अन्याय से उपजे विचारों की। इसका एक मात्र इलाज है कुटुम्ब व्यवस्था।

प्रत्येक विद्यालय, कारखाना, ग्राम, मोहल्ला नगर, प्रान्त, देश और समस्त संसार कुटुम्ब के सिद्धान्त पर रच दिये जायेंगे। बड़ों का आदर होगा। बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलेगी। हट्टे कट्टे काम करें। धर्म कुटुम्ब की शिक्षा दें और धर्म राजनैतिक प्रबन्ध ऐसा बनवाये कि कुटुंब प्रथा प्रत्येक जन-समूह में चले और सब समूहों में संघ स्थापित रहे।

यह है हमारी धार्मिक क्रान्ति। कहो कि-आप धार्मिक क्रान्तिकारी हो! आप समस्त देश में कुटुंब प्रथा को चलायेंगे और सर्व संसार में भी कुटुंब प्रथा को ही कायम करेंगे। आप समस्त वर्तमान धर्मों का आदर करते हैं। उनके मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारे इत्यादि में एक समान जाकर भजन पूजा कर सकते हैं। आप न पूँजीपतियों के शत्रु हैं और न कम्युनिस्टों के। आप अमरीका की मशीन उन्नति का आदर करते हैं और रूस के नये समाज को भी मित्र भाव सहित अवलोकन करते हैं। आप तो चाहते हैं कि अमरीका, एशिया, यूरोप, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया इत्यादि टापुओं में सब ही स्थान पर कुटुंब प्रथा चले। आपकी किसी से लड़ाई नहीं। कोई व्यक्ति या जन समूह आप का शत्रु नहीं। हम धर्म युद्ध करते हैं और जिहाद करते हैं उन सब बुराइयों के विरुद्ध जो कुटुम्ब प्रथा चलने से रोकती हैं। वह बुराइयाँ आज धर्मों में भी घुसी हुई हैं और राज्यों में भी प्रचलित हैं। हमारे कुछ त्रुटिपूर्ण विचार उन्हीं बुराइयों के कड़वे फल हैं। हम उन विचारों को बदलेंगे।


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