(वैद्य श्री गंगा प्रसाद जी स्वर्णकार, हटा)
स्त्रियों के लिए पति ही सर्वस्व है, पति से ही गति है, पति ही देवता तथा पति ही प्रभु है, पति ही धर्म और पति ही गुरु है, बाल्मीकि रामायण में अनेक स्थलों पर यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है, अनुसूया के द्वारा पतिव्रत धर्म का उपदेश किये जाने पर आदर्श महारानी सीता कहती हैं कि मुझे भी यह मालूम है कि स्त्री का गुरु पति ही होता है।
विदितं तु ममाप्येतद्यथा नार्याः पतिर्गुरुः
(बाल्मीक रा.अयो. 11 व 2)
रावण के द्वारा भगवान राम की निन्दा किये जाने पर फिर कहती हैं।
दीनोश्च राज्यहीनो वै योमे भर्ता स में गुरुः
(बा.रा.उ. 78।17 )
निर्वासित होने पर भी वह कहती हैं कि स्त्री के लिए तो पति ही देवता व पति ही बन्धु तथा पति ही गुरु है।
पतिर्हि देवता नार्याः पतिर्बन्धुर्पतिर्गुरुः
प्राणैरपि प्रियं तस्माद्भर्तुः कार्यविशेषतः।
7।48।17
यद्वैकिंच्मनुरवदत्त र्द्भतुः
(तैत्तिरीय सं. 2।2।10।2)
इस वेद वाक्य से समर्थित मनु महाराज भी कहते हैं कि स्त्रियों के निमित्त पति की सेवा ही गुरुकुल वास है।
पति सेवा गुरौ वासः
(मनु. 2।67)
बृहस्पति जी ने भी अगस्त पत्नी लोपामुद्रा की प्रशंसा करते हुए कहा है कि पति ही देवता, पति ही गुरु तथा धर्म, तीर्थ और व्रत है इसलिए सब छोड़कर स्त्री एक पति ही की सेवा करे।
भर्ता देवो पुरुर्भर्ता धर्म तीर्थ व्रतानि च।
तस्मार्त्सवं परित्यज्य पतिरेकं समर्चयेत्॥
(स्कंद पु.का.सं. 4।48)
तिर्यग्योनि गता कपोती भी अपने पति से कहती है कि ब्राह्मणों का गुरु अग्नि है सब वर्णों का गुरु ब्राह्मण है, स्त्रियों का गुरु उसका पति है और अभ्यागत सबका गुरु है।
गुरुरग्निर्द्विजातीनाँ वर्णानाँ ब्राह्मणो गरुः।
पतिरेव गुरुः स्त्रीणाँ सर्वस्याभ्यागतो गुरुः॥
(ब्रह्म पु.80। 45)
ब्रह्म पुत्री मोहनी भी राजेन्द्र रुक्माँगद से कहती हैं कि पति ही गति, स्वामी देवता तथा गुरु है।
भर्ता नाथो गतिर्भर्ता दैवतं गुरुरेव च।
तस्य वश्यं चरेद्यातु सा कथं सुखमाप्नुयात्॥
(वृहन्नार. पु. उ. भाग 14।40)
महर्षिशाता तप ने भी कहा है, कि स्त्री का एक पति ही गुरु है।
पतिरेको गुरुः स्त्रीणाम्।
निर्णय- सिन्धुकार ने भी कहा है कि बाल्मीकि रामायण में पति को गुरु कहा गया है और इस पर उन्होंने रामायण और शाता तप के प्रमाण भी दिये हैं वह लिखते हैं।
पित्रा दयोमहागुरवः स्त्रीणाँ पतिरेव गुरु रुक्रश्च
(रामायणे)
पतिर्बन्धुर्गतिर्भर्ता दैवतं गुरुरेव च।
पतिरेको गुरुः स्त्रीणाँसर्वस्याभ्यागतो गुरुः॥
(शाता तपः)
चाणक्य नीति में भी उपर्युक्त श्लोक को चाणक्य ने दुहरा दिया है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामायण में कहा है कि-
एकै धर्म एक व्रत नेमा।
काय बचन मन पति पद प्रेमा॥
स्त्रियों का तो एक पतिव्रत ही सच्चा धर्म है देखो मनुस्मृति अ. 5।154 में लिखा है कि स्त्री का सच्चा देवता पति ही है।
सततं देववत्पतिः॥125॥
श्रीमद्भागवत स्कन्ध 3 अध्याय 18 श्लोक 33 में कश्यप जी ने दिति से कहा है कि केवल एक पति ही स्त्री का परम देवता है।
पतिरेव हि नारीणाँ दैवतं परमं स्मृतम्॥126