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September 1946

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जब अन्तःकरण में शान्ति होती है तो दुनिया का कोई कोलाहल मनुष्य को स्पर्श नहीं कर सकता।

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जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जागृत हो।

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जो व्यक्ति दूसरों से जितनी घृणा करता है समझिए कि परमात्मा से उतनी ही दूर है।

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यदि सफलता चाहते हो तो अध्यवसाय को मंत्र, अनुभव को सलाहकार, सावधानी को सहचर और आशा को अभिभावक बनाओ।

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भोगी पुरुष खाने के लिए जीते हैं और योगी पुरुष जीने के लिए खाते हैं।

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अपने नियम की सुदृढ़ जंजीर से जकड़ा हुआ पक्षपात रहित, सृष्टि संचालक, पाषाण हृदय जो न्यायधीश है वही ईश्वर है।


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