स्त्रियाँ और व्यायाम

September 1946

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(लेखिका- श्री देवी श्यामलता ‘कमलिनी’)

आजकल स्त्रियों का स्वास्थ्य बहुत खराब रहता है, वे आए दिन रोगों से घिरी रहती हैं। आज एक रोग है तो कल दूसरा अपना आक्रमण कर देता है- इसका मुख्य कारण है उनमें शारीरिक व्यायाम का सर्वथा अभाव। शरीर को स्वस्थ और सुन्दर बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को कुछ व्यायाम अवश्य करना चाहिए। स्त्रियों के शरीर में एक प्रकार की स्वाभाविक कोमलता होती है और इसके विपरीत पुरुषों के शरीर में एक प्रकार की दृढ़ता और कठोरता। कुछ स्त्रियाँ व्यायाम करने से इसलिए घबराती हैं कि ऐसा करने से उनकी स्वाभाविक कोमलता नष्ट हो जायेगी, किन्तु ऐसा समझना भूल है। व्यायाम से तो उनकी कोमलता तथा सौंदर्य को विशेष रूप से जीवन मिलता है, हाँ यह अवश्य है कि उनके लिये भिन्न प्रकार के व्यायाम की आवश्यकता है।

प्राचीनकाल में भारतीय महिलाएं अपना और अपने कुटुम्ब का सब काम अपने हाथ से किया करती थीं, पर आज अपने हाथ से पानी पीना भी दुष्कर मालूम होता है, यही कारण है कि उनका स्वास्थ्य बराबर भंग होता जा रहा है और युवावस्था में ही उन्हें अपना जीवन नीरस प्रतीत होने लगता है। पहले चक्की चलाना, पानी भरना आदि कामों के करने से पर्याप्त व्यायाम हो जाता था, उन्हें अन्य किसी व्यायाम की आवश्यकता नहीं रहती थी- आज यह सब काम मशीन और भृत्यों द्वारा सम्पादित होने लगे, विलास प्रियता दिन पर दिन बढ़ने लगी अतएव स्वास्थ्य भी बराबर गिरता गया। स्वास्थ्य सुख को पुनः प्राप्त करने के लिए व्यायाम करना नितान्त आवश्यक है अतएव यहाँ कुछ स्त्रियोपयोगी साधारण व्यायामों का उल्लेख किया जाता है जिन्हें नियमपूर्वक करके वे अपने स्वास्थ्य और सौंदर्य में आश्चर्यजनक परिवर्तन कर सकेंगी।

प्रथम अभ्यास

प्रायः सभी स्त्रियाँ यह चाहती हैं कि उनकी कमर स्थूल न होने पाये। विदेशों में तो कमर को पतला बनाए रखने के लिए लड़कियाँ आरंभ से ही पेटियाँ पहनती हैं किन्तु इस अप्राकृतिक ढंग का अनुसरण करने की अपेक्षा यह अच्छा है कि प्राकृतिक व्यायाम द्वारा कमर को पतला बनाया जाय। ऐसा करने से कमर में किसी प्रकार की भी निर्बलता नहीं आयेगी। अभ्यास के लिए जमीन पर बैठ जाओ और दोनों पैरों को सामने की तरफ जमीन पर फैलाओ। पाँव एक दूसरे से कुछ अन्तर पर रहें। दोनों हाथों को कन्धों की सीध में ही ऊपर उठाओ। ऐसा करने से शरीर को ऊपर खींचने में सहायता मिलेगी। एक सेकिंड तक अपने शरीर को इसी स्थिति में रखो। फिर शरीर को बायीं ओर घुमाओ और कमर को इस प्रकार झुकाओ कि दोनों हाथों को कंधों की सीध में रखते हुए बायें हाथ से दोनों पैरों के बीच की जमीन को छू सको। एक सेकिंड तक इसी स्थिति में रहो, फिर पहली स्थिति में आ जाओ और अब दाहिनी ओर को घूम कर यही क्रिया करो। शरीर को झुकाते और घुमाते समय दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। दोनों हाथ कंधों की सीध में रहें और शरीर को झुकाते समय कमर का नीचे का भाग ही मुड़े कमर और गर्दन एक सीध में रहें।

इस अभ्यास को दस बारह बार करना चाहिए, आरंभ में शुद्धता का विचार रखते हुए धीरे-धीरे करना चाहिए। अभ्यास हो जाने पर अधिक बार और शीघ्रता से कर सकती हैं।

द्वितीय अभ्यास

पृथ्वी पर सिर और टाँगे, ऊपर को करके सीधी खड़ी हो जाओ। प्रारंभ में इसका अभ्यास 1 मिनट तक करना चाहिए, धीरे-धीरे बढ़ाते जाना चाहिए। इसे शीर्षासन कहते हैं। यह स्त्री और पुरुष दोनों ही के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इसका नियमित रूप से अभ्यास करने से कोष्ठबद्धता (कब्ज) रोग कभी नहीं होता। शरीर में स्फूर्ति रहती है, भूख खुलकर लगती है और बल की वृद्धि होती है।

तृतीय अभ्यास

कमर के बल लेट जाओ। दोनों पैर मिले और हाथ कन्धों की सीध में रहें। दाहिने पैर को ऊपर उठाओ और ऊपर की ओर बिल्कुल सीधा खड़ा कर लो। फिर इसे सीधा रखे हुए ही बायें पैर के ऊपर ले जाओ और पैर के बायीं ओर की भूमि छूने दो। फिर पहली स्थिति में लाकर जमीन में सीधा खड़ा कर लो। तत्पश्चात् पैर को सबसे पहली हालत में ले जाओ। इसी प्रकार बायें पैर से अभ्यास करो। इस अभ्यास को दस बार करो।

चतुर्थ अभ्यास

जमीन में बैठ कर पाँव फैला दो और हाथों से पाँव की उंगलियाँ पकड़ने का प्रयास करो और ध्यान रखो कि पैर में बल न पड़ने पावें और न घुटने ऊपर को उठे। अपना सिर घुटनों पर टेकने का प्रयत्न करो।

उपर्युक्त भारतीय व्यायाम पद्धति के आसन हैं, इस प्रकार के अनेकों आसन हैं। यदि आपको अन्य प्रकार के व्यायाम ज्ञात हो और वे उपयोगी भी हो तो उन्हीं को कीजिए।

इसके अतिरिक्त स्त्रियों के लिये संगीत और नृत्य भी सुन्दर व्यायाम हैं। नृत्य बहुत उपयोगी, सस्ता और अच्छा व्यायाम है। यह जितना सरल है उतना ही मनोरंजक भी है, यह व्यायाम स्त्री शरीर को परिपुष्ट और सुसंगठित बना देता है, मैं स्वयं प्रतिदिन नियम पूर्वक आधे घण्टे नृत्य किया करती हूँ। संसार के प्रायः सभी देशों में इसका प्रचार है विशेष कर पाश्चात्य देशवासी स्त्रियाँ इसे खूब पसन्द करती हैं। आयुर्वेद के मतानुसार भी यह स्त्रियों के लिये अत्यन्त लाभप्रद है, स्त्रियों के अनावश्यक मोटे पन को दूर करने, जंघाओं, बहुमूल्यों और वक्षस्थल को परिपुष्ट बनाने, कमर व उदर प्रदेशों को क्षीण करने के लिए नृत्य अत्यन्त सुन्दर व्यायाम है। नृत्य से शरीर में दृढ़ता और सम्पूर्ण अंगों में कोमलता उत्पन्न होती है, नृत्य की भाँति संगीत भी बड़ा उपयोगी व्यायाम है, यह भी एक कला है- गाना गाने से फेफड़ों को बल मिलता है, फेफड़ों का विकास होकर उनकी पुष्टि होती है और सदा स्वस्थ रहते हैं।

जो स्त्रियाँ अस्वस्थ हों या वृद्ध हों और किसी भी प्रकार का व्यायाम करने में असमर्थ हो, उन्हें चाहिए कि वे सवेरे और शाम दोनों समय वायु में भ्रमण करें टहलना भी एक बहुत ही उत्तम व्यायाम है, मील आध मील स्वच्छ वायु में भ्रमण करना स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त लाभदायक है। लम्बे-लम्बे डग रखते हुए निश्चित गति से चलना चाहिए। इससे अंग सुडौल होते हैं और रगों में चुस्ती आती है।

व्यायाम करने के बाद निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है।

1. व्यायाम करने के पश्चात कम से कम एक घण्टे बाद स्नान करना चाहिए या कोई चीज खानी चाहिए।

2. व्यायाम अपनी सामर्थ्य से अधिक नहीं करना चाहिए पर प्रतिदिन नियमपूर्वक करना चाहिए और बीच में छोड़ देना नहीं चाहिए।

3. मासिक धर्म के समय 7 दिन तक व्यायाम नहीं करना चाहिए।

4. गर्भावस्था में या प्रसुप्तावस्था में भी व्यायाम नहीं करना चाहिये।

-वैद्य


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