वनस्पति घी

September 1946

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(श्री जयदयाल जी गोयन्दका)

आजकल जो वेजीटेबल (वनस्पति) घी का प्रचार उत्तरोत्तर बढ़ रहा है, यह हमारे देश के लिए बड़ा ही घातक है। इससे स्वास्थ्य और धर्म की बड़ी हानि हो रही है। असल में यह घी है ही नहीं। यह तो जमाया हुआ तेल है। यह मूँगफली, नारियल तथा बिनौले आदि के तेलों से एवं मछली के तेल से तैयार होता है। इसके बनाने में निकिल धातु तथा हाइड्रोजन गैस काम में लिया जाता है। वह चीजें अपवित्र तो हैं ही, पर स्वास्थ्य के लिये भी महान हानिकर हैं। निकिल में एक प्रकार का विष होता है। इनसे तेल जम जाता है। उसकी गन्ध नष्ट हो जाती है और सफेद रंग बन जाता है।

इस विषय में बंगाल के प्रसिद्ध रासायनिक तथा ‘खादी प्रतिष्ठान’ के संचालक सोदपुर निवासी श्री सतीशबाबू से गीता प्रेस के मंत्री श्री घनश्याम दास जालान तथा मैनेजर श्री बजरंगलाल चाँदगोठिया मिले थे। उन्होंने यही कहा कि यह वेजीटेबल घी सभी प्रकार के तेल या चर्बी आदि से बन सकता है और निकिल डाल देने के कारण इसके बनने पर इसकी परीक्षा करने के लिए कोई ऐसा यंत्र नहीं है जिससे यह पता चल सके कि यह मूँगफली के तेल से बनाया गया है या मछली के तेल से। जिस समय जो तेल सस्ता होता है उसी से यह बनाया जा सकता है। इस समय बंगाल आदि में मूँगफली का तथा मछली का तेल अन्य सब तेलों से सस्ते हैं, इसलिए इस समय यह मूँगफली तथा मछली के तेल से बनाया जाता है।

वेजीटेबल घी बनाने वाले भाई कई गारंटी भी देते हैं कि यह मूँगफली के तेल से बना है किन्तु उस गारंटी का कोई मूल्य नहीं, क्योंकि इस घी के बनने पर इसकी कोई परीक्षा नहीं कर सकता कि यह किससे बना है। रही विश्वास की बात सो विश्वास इसलिये नहीं किया जा सकता कि जिस समय मूँगफली के तेल की अपेक्षा मछली का तेल सस्ता होगा उस समय वे मूँगफली के तेल से ही यह चीज बनाये यह बात नहीं समझ में आती। क्योंकि मनुष्य लोभ के वश में होकर कौन सा पाप नहीं कर सकता?

मछली का तेल महान अपवित्र तो है ही, इसके अलावा, इसमें निरपराध मछलियों की हिंसा भी होती है और फिर इसे बनाने के लिए इसमें जो निकिल धातु का प्रयोग किया जाता है, उससे धर्म की हानि के साथ-साथ स्वास्थ्य की हानि भी होती है। देश के पशुओं की हानि भी होती है क्योंकि इसके सामने गाय-भैंस का घी मूल्य में नहीं टिक सकता। असली घी की बिक्री हुये बिना किसान लोग गाय-भैंस नहीं पाल सकेंगे। गायों के बिना बैल नहीं मिलेंगे, बैलों के बिना खेती नहीं हो सकेगी और खेती के बिना प्रजा का जीवन बहुत ही कष्टमय और निराशापूर्ण हो जायेगा। यह बात बहुत लोग अनुभव कर चुके हैं कि वेजीटेबल घी के खाने से अनेकों बीमारियाँ होकर मनुष्य की आयु का ह्रास होता है। अतः यह वस्तु देश, धर्म खेती, पशु और स्वास्थ्य सभी के लिये महान ही हानिकारक है।

बाजार में असली घी के नाम से जो घी बिकता है, उस घी में भी लोग सस्ता होने के कारण लोभवश इसका मिश्रण करते हैं। घी में इसका मिश्रण कर देने पर इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है। असल-नकल की जाँच के लिये मशीनें भी आयीं किन्तु उनसे भी इसका पूरा निर्णय न हो सका। नारियल और मूँगफली दोनों के तेलों को मिलाकर अथवा मछली का तेल तथा मूँगफली या नारियल का तेल मिलाकर वेजीटेबल घी बनाया जाये तो इन मशीनों से उसका कुछ भी पता नहीं लगाया जा सकता।

इस वेजीटेबल घी के इतने अधिक चल पड़ने के कारण देश धर्म और स्वास्थ्य की रक्षा चाहने वाले भाइयों को आजकल पवित्र घी मिलना बहुत ही कठिन हो गया है। मेरी तो यह राय है कि ‘देश धर्म और स्वास्थ्य की रक्षा के लिये मिले, तो शुद्ध घी रखना चाहिये नहीं तो मूँगफली का तेल खाना चाहिये। वेजीटेबल घी खाने से व्यर्थ ही अधिक खर्च लगता है और धर्म तथा स्वास्थ्य की हानि होती है, शुद्ध मूँगफली का तेल खाने से पैसों की बचत होती है तथा धर्म तथा स्वास्थ्य की भी हानि नहीं होती। अतः वेजीटेबल की अपेक्षा तो शुद्ध मूँगफली का तेल ही खाना अच्छा है। हो सके तो दूध खरीदकर उसमें से मक्खन क्रीम या घी निकाल कर उसे खाना चाहिये। इससे पशु, खेती, देश, धर्म और स्वास्थ्य इन सबकी रक्षा हो सकती है। इस वेजीटेबल घी को किसी प्रकार से भी नहीं खाना चाहिए, चाहे वह केवल वेजीटेबल हो अथवा असली घी में मिला हुआ। न इस घी का लोभवश व्यापार ही करना चाहिये। बल्कि देश, धर्म, पशु, कृषि और स्वास्थ्य की रक्षा चाहने वाले देशसेवक तथा धर्मप्रेमी को इस घी का प्रचार रोकने के लिए कानून की रक्षा करते हुए, यथाशक्ति घोर विरोध करना चाहिये। खेद की बात है कि लोभ कारण हमारे व्यवसायी सज्जन इसके व्यापार में अधिक अग्रसर हैं। उनसे मेरी खासतौर से प्रार्थना है कि वे इसे देश और धर्म के लिए महान हानिकारक समझ कर इसको सर्वथा त्याग देने की कृपा करें।


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