भावना ही प्रधान है।

September 1946

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

यह कुछ नियम नहीं है कि छोटे काम का फल छोटा हो और बड़े काम का फल बड़ा हो। विचार की सृष्टि में तो ऐसा नियम है कि किस उद्देश्य से काम किया गया है इसको देखते हैं। इससे एक छोटा सा काम भी शुभ उद्देश्य से किया हो तो उसका बहुत बड़ा फल मिलता है और बहुत बड़ा काम भी अगर खराब निष्ठा से किया हो तो उसका अच्छा फल नहीं मिलता। कितने ही बार मन्दिर बनाने वाले अभिमानियों के काम की ईश्वर के दरबार में जितनी कीमत होती है उससे अधिक ऊंची दशा उसी मन्दिर में भली निष्ठा से झाडू देने वाली अज्ञान स्त्रियों की होती है। हराम के पैसे जोड़कर पीछे उससे सदावर्त चलाने वाले सेठ साहूकारों को जो फल मिलता है उससे अच्छा फल उन लोगों को मिलता है जो सदावर्त में खिचड़ी खाकर परमात्मा का पूर्ण उपकार मानते हैं इसका बदला चुकाने के लिये अच्छे कामों में लगे रहते हैं इसी प्रकार हर एक विषय में समझना चाहिये क्योंकि हमारे कामों से ईश्वर के दरबार में हमारी परीक्षा नहीं होती बल्कि किस इच्छा से हमने काम किया है। यही वहाँ देखा जाता है। अगर ईश्वर के घर यह कानून हो कि जो बड़ा काम करे उसी को फल मिले और उसी का उद्धार हो तब फिर गरीबों का क्या हाल हो? वे बेचारे कैसे तरें? संसार में सभी आदमियों को तालाब खुदवाने, ‘धर्मशाला बनवाने’, दवाखाना खुलवाने, ‘सदावर्त चलाने’, मन्दिर भी स्थापित करने, पुस्तक लिखने, व्याख्यान देने और ऐसे ही ऐसे बड़े काम करने का सुभीता थोड़ा है? नहीं है। ऐसे बड़े काम न करने वालों को अगर दया फल न मिले तो जीव कैसे तर सकता है। अगर ऐसा ही होता तो फिर प्रभु की प्रभुता क्या होती? परन्तु उसकी दया है कि भली इच्छा से किये हुए छोटे से छोटे काम से भी मनुष्य आगे बढ़ सकता है और भली इच्छा से किये हुए छोटे काम का भी बड़ा फल मिल सकता है। इसलिये हमें छोटे बड़े करम का स्थल करने जरूरत नहीं है। क्योंकि छोटा या बड़ा काम संयोग के आधार पर है।

जिसके पास जिस किस्म का साधन है और जिसके मन में जितना बल है तथा जिसकी आत्मा जितनी खिली हुई है उसी के हिसाब से वह छोटा या बड़ा काम कर सकता है। इतना ही नहीं बल्कि कितनी ही बार खराब निष्ठा से भी दानी अभिमान के कारण मान पाने के लिए, खिताब लेने के लिये, परिवार के किसी आदमी को खुश रखने के लिये या ऐसे ही किसी दूसरे कारण से लोग कोई बड़ा या अच्छा काम कर देते हैं पर जो काम भली इच्छा से अपना कर्त्तव्य समझ कर किया जाता है उसकी बात ही कुछ और है? इसलिये अगर आपसे कभी बड़ा काम न हो सके तो कुछ परवाह नहीं पर भली इच्छा से छोटे-छोटे शुभकर्मों को सदा किया करें। भली इच्छा से किये हुए छोटे कामों का भी परिणाम बहुत बड़ा है और ईश्वर दयालु है कि अगर हम अच्छी इच्छा से किसी को एक लोटा पानी दें तो उससे ईश्वर तालाब बनवाने का पुण्य दे देता है। किसी लाचार दुखिया को दिलासा दें तो उससे वह शास्त्र अध्ययन करने का फल दे सकता है। दे देता है। किसी मरते हुए आदमी की सुश्रूषा करें तो उससे वह औषधालय को खुलवाने का फल दे देता है और किसी लावारिस गरीब लड़के का पोषण करें या उसे किसी अनाथालय में भेज दें तो वह एक आदमी की जिन्दगी सुधारने का फल दे देता है। इसी प्रकार छोटे से छोटे काम भी भली इच्छा से किये हुए हों तो उनका बड़ा फल है और हजारों लाखों रुपये की लागत के बड़े काम भी अगर खराब विचार से किये हों तो उनका कुछ अच्छा फल नहीं मिलता।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: